Unique School: छत्तीसगढ़ का ऐसा स्कूल, जहां साफ-सुथरी यूनिफॉर्म पहनने के लिए प्रेरित करने का टीचर ने निकाला अनोखा तरीका
Anokha School: एक टीचर स्कूल ड्रेस में स्कूल आने लगीं, ताकि बच्चों को सही तरीके से स्कूल यूनिफॉर्म पहनने की सीख दी जा सके. इससे न केवल स्टूडेंट्स साफ-सुथरी यूनिफॉर्म पहनने को लेकर जागरूक हुए, बल्कि टीचर के पढ़ाए हुए लेसन भी तेजी से सीखने लगे हैं.
Unique School: भारत में एक से बढ़कर एक शिक्षण संस्थान है. इनमें सरकारी और प्राइवेट दोनों की तरह के संस्थान हैं, जो अपने स्टूडेंट्स को बेहतर एजुकेशन और फैसिलिटी देने के लिए जाने जाते हैं. आज भी हम आपको एक ऐसे ही स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं, जो साधारण होकर भी बहुत चर्चा में है. हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के एक सरकारी स्कूल की, जहां एक शिक्षिका अपने स्टूडेंट्स को एक बेहतर संदेश देने के लिए खुद यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल आने लगीं. आइए जानते हैं इस साधारण से स्कूल का अनोखा माजरा
रायपुर के गुढ़ियारी इलाके में स्थित है शासकीय गोकुलराम वर्मा प्राथमिक शाला. यहां मुलाकात स्टूडेंट्स के बीच आपकी नीले रंग की फ्रॉक और आसमानी रंग की शर्ट पहने और गूंथकर दो चोटी बनाए हुए शिक्षिका जान्हवी यदु नजर आएंगी. 30 वर्षीय शिक्षिका जान्हवी स्कूल ड्रेस पहने अपनी क्लास में बच्चों को पढ़ाते और उनके साथ खेलते नजर आती हैं. बच्चे भी उनकी हर बात पर अमल मिलते हैं.
ऐसे आया स्कूल ड्रेस पहनने का विचार
टीचर जान्हवी के मुताबिक वह छात्रों को साफ-सुथरे तरीके से स्कूल ड्रेस पहनने के लिए प्रेरित करना चाहती थीं. स्कूल में आने वाले अधिकतर बच्चे गरीब परिवार से आत हैं. जान्हवी कहती हैं, "ज्यादातर विद्यार्थी गरीब तबके से हैं. उनमें से कई बिना खाना खाए ही स्कूल आते हैं, ऐसे में उन्हें स्कूल ड्रेस के प्रति जागरूकता समझाने के लिए मुझे खुद स्कूल ड्रेस पहनकर दिखाने का विचार आया, ताकि बच्चे बेहतर तरीके से समझ सकें, जिसके बाद मैंने हर शनिवार स्कूल ड्रेस में स्कूल आना शुरू कर दिया."
टीचर का यूनिफॉर्म पहनकर आने पर बच्चों का रिएक्शन
पहली बार जब ऐसा करने पर बच्चों की प्रतिक्रिया को लेकर यदु कहती हैं, "मैं वह भूल नहीं सकती. जब बच्चों ने मुझे पहली बार स्कूल ड्रेस में देखा तो वे खुश तो हुए, लेकिन हैरान भी थे. कुछ ने तो मुझे गले भी लगाया. फिर मैंने उनसे पूछा कि क्या वे अच्छे से स्कूल ड्रेस पहनकर स्कूल आएंगे तब उन्होंने 'हां' कहा." बकौल यदु उनके इस तरीके से बच्चों के व्यवहार में काफी बदलाव आया है.
जान्हवी कहती हैं, "छात्र पहले मुझे अपने अभिभावक के रूप में देखते थे, लेकिन अब वे मुझे अपना दोस्त मानते हैं. वह एक शिक्षक परिवार से आती हैं, इसलिए विद्यार्थियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना वह बेहतर तरीके से जानती हैं. "
परिवार ने जान्हवी के निर्णय का किया स्वागत
जान्हवी कहती हैं, "शुरुआत में मुझे डर था कि मेरा परिवार मेरे फैसले को अस्वीकार कर देगा, लेकिन सभी ने सकारात्मक तरीके से मेरा समर्थन किया. इतना ही नहीं स्कूल में बाकी शिक्षक-शिक्षिकाओं का भी मुझे पूरा सहयोग मिला.