'रंग दे बसंती' के 'बटुकेश्वर दत्त', 'कमीने' में 'मिखैल', 'बंगिस्तान' के 'तमीम हुसैन' से लेकर 'जबरिया जोड़ी' का 'गुड्डू'...ये सब किरदार एक्टर चंदन रॉय सान्याल ने निभाए हैं. वह करीब डेढ़ दशक से इंडस्ट्री का हिस्सा हैं, मगर 'आश्रम' के 'भोपा सिंह' बनकर वह घर-घर में छा गए. इस नेगेटिव रोल से उन्होंने ऐसी छाप छोड़ी कि आजतक लोग उन्हें 'भोपा' के रूप में ही पसंद करते हैं. इस बार वह जरा हटकर किरदार ला रहे हैं. अरबाज खान के प्रोडक्शन हाउस में बनी 'पटना शुक्ला' में वह वकील बने हैं. ऐसा किरदार जो सीधे रवीना टंडन से टक्कर लेता है. कानून के मैदान में जंग किसकी होगी, ये तो 'पटना शुक्ला' में देख लीजिएगा. अभी हमारे एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में पढ़िए आखिर चंदन रॉय सान्याल की मुंह जुबानी उनकी जर्नी.


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क्यों 'पटना शुक्ला' करने में आया मजा?
- हर अभिनेता को जब नया रोल मिलता है तो उसे एक लालसा रहती है. यही चीज 'पटना शुक्ला' के साथ भी हुई. शूटिंग करते हुए बहुत मजा आया. वजह थी कि मैंने दिग्गज कलाकारों के साथ काम किया है. रवीना टंडन से लेकर सतीश कौशिक जी के साथ काम करने का अनुभव रहा. रवीना टंडन के साथ काम करना तो मेरा सपना था. हम उनकी 'अंदाज अपना अपना' से लेकर 'मोहरा' देखकर बड़े हुए हैं. वहीं, सतीश कौशिक के साथ मैंने पहली बार काम किया है. बहुत अच्छा अनुभव रहा है. हमने 'पटना शुक्ला' की करीब डेढ़ महीना शूट किया. मुंबई से लेकर भोपाल में शूटिंग हुई.



रवीना टंडन बहुत हंसमुख हैं
- फिल्म में मेरा 90 प्रसेंट काम रवीना टंडन के साथ ही है. रवीना जी के साथ काम करने का मजेदार एक्सपीरियंस था. वह काफी हंसमुख और चंचल है. उन्होंने काम के दौरान ये फील होने नहीं दिया कि वह इतनी सीनियर हैं और तीस-चालीस साल से काम कर रही हैं. काम के साथ-साथ मेरी उनकी दोस्ती भी अच्छी हुई है. मैं तो आशा करूंगा कि मैं फिर से उनके साथ काम करूं.



'नेगेटिव नहीं है मेरा रोल'
मेरा रोल काफी दिलचस्प है. ये नेगेटिव रोल नहीं है. हो सकता है कि लोग इसे विलेन के तौर पर लें. पर ऐसा नहीं है. मेकर्स ने जब इस वकील के रोल के लिए कास्टिंग की तो यही चैलेंज था कि इसे इस तरह निभाना है कि नेगेटिव न लगे. मैं सिर्फ एक आम इंसान बड़े वकील के रूप में हूं.



'मैं हर रोल में भोपा सिंह जितनी मेहनत करता हूं'
- हर एक्टर के लिए खास पल होता है कि उनके निभाए कुछ रोल खास छाप छोड़े. मेरे साथ भी हुआ कि 'आश्रम' का 'भोपा सिंह' इतना पॉपुलर हुआ कि लोग आज भी इसकी बातें करते हैं. ये तो ऊपर वाले की देन है कि कुछ रोल्स में फैंस ने इतना प्यार दिया. मगर बतौर कलाकार हम हर केरेक्टर में उतनी ही जान डालते हैं जितना 'भोपा सिंह' के रोल में डाली थी. ये ऑडियंस का प्यार है जो कुछ किरदारों को बहुत सराहाते हैं.



विद्या बालन की 'कहानी' फिल्म हुई थी ऑफर
'भोपा सिंह' यानी 'आश्रम' करने के बाद मुझे बहुत सारे नेगेटिव रोल ऑफर हुए. मगर मैंने कुछ रोल्स एक्सेप्ट किए और बहुत से मैंने रिजेक्ट कर दिए. क्योंकि मैं हमेशा डिफरेंट रोल्स करना चाहता था. एक बार मैं 'फालतू' फिल्म कर रहा था, तब मुझे 'कहानी' फिल्म ऑफर हुई थी. तब सुजॉय घोष ने पुलिस इंस्पेक्टर वाले रोल के लिए अप्रोच किया था. मगर डेट्स की वजह से कर नहीं सका था.


इन स्टार्स के साथ काम करने का सपना है
मैं अमिताभ बच्चन, कमल हासन और आमिर खान जैसे एक्टर तो माधुरी दीक्षित, तब्बू और आलिया भट्ट के साथ काम करना चाहूंगा. ये सभी बहुत बेहतरीन कलाकार हैं.


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क्यों एपिक फिल्मों का क्रेज दोबारा आ गया है?


फिल्में उसी तरह की बनती हैं जिस तरह की फिल्में, ऑडियंस पसंद करते हैं. फिल्मों का बाजार से काफी लेना देना है. 'बाहुबली' के बाद से काफी चेंजेंस आए हैं. राम-सीता हो या रोमियो जूलियट... कोई भी किरदार जो बहुत फेमस हो, उन्हें लेकर खूब कहानी गड़ी गई तो खूब फिल्में बनी हैं. ये इतने डीप टॉपिक हैं कि बहुत कुछ बनाया जा सकता है. मगर हर कंटेंट के पीछे एक डायरेक्टर की खास भूमिका होती है.याद होगा 'रामायण' जब बचपन में आती तो सड़क तक खाली हो जाती है. आज भी इस तरह की फिल्मों को लोग पसंद करते हैं. बस यही वजह है कि मेकर्स भी ऐसे कंटेंट को बनाते हैं. एपिक और माइथोलॉजिकल विषय पर फिल्में हमारी सोसाइटी में हमेशा बनती रही है. ऑडियंस अच्छी कहानी की भूखी होती है.