Adipurush Review: बाजार के लिए बनी फिल्म नहीं करती रामकथा से न्याय, देखने से पहले रिव्यू पढ़ा जाए
Adipurush Film Review: निर्माता-निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने क्लासिक शोले (1975) का रीमेक करते हुए 2007 में ‘राम गोपाल वर्मा की आग’ बनाई थी. निर्देशक ओम राउत (Om Raut) उसी रास्ते हैं. हर हिंदू जन-मन की रामकथा को उन्होंने कुछ ऐसे अंदाज में पर्दे पर उतारा है, जिसे आज बोलचाल की भाषा में लंका लगाना कहते हैं. आदिपुरुष को आप ‘ओम राउत की लंका’ कह सकते हैं.
Adipurush Movie Review: आदिपुरुष अपनी तकनीक में आधुनिक है. हर पौराणिक और ऐतिहासिक कहानी का अपना देश-काल होता है. तकनीक से इसे फिल्म में सुंदर तो दिखाया जा सकता है, लेकिन अगर आप उसे बदल ही देंगे तो कहानी से अन्याय करेंगे. लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला (Manoj Muntashir Shukla) और निर्देशक ओम राउत ने रामायण (Ramayan) पर आधारित फिल्म आदिपुरुष (Adipurush) के साथ यही किया है. इस कहानी को उन्होंने कहीं-कहीं बच्चों के वीडियो गेम और कहीं हॉलीवुड फिल्मों के एक्शन-वीएफएक्स दृश्यों में बदल दिया है. रामायण का अर्थ वह रामकथा है, जिसका एक आदि है और एक अंत. लेकिन यहां लेखक-निर्देशक ने जहां से मन हुआ कहानी उठा ली और जहां मन हुआ खत्म कर दी. राम-सीता की कहानी को उन्होंने राघव-जानकी की कहानी में बदल दिया. रावण यहां लंकेश हो गया, हनुमान (Hanumanji) बजरंगी बन गए. मुश्किल तो तब होती है जब आपको यहां पर्दे पर लक्ष्मण का नाम ‘शेष’ समझने के लिए चार बार ध्यान से सुनना पड़ता है.
जैसे सेल की लूट
आदिपुरुष बेहद कमजोर फिल्म है. हर लिहाज से. यह वह रामायण नहीं, जो आपने पढ़ी होगी. यह वह रामायण भी नहीं, जिसके बारे में आप चाहेंगे कि आपके बच्चे इससे रामकथा को समझें. दोनों लिहाज से आप इस फिल्म को छोड़ सकते हैं. सिनेमा के निर्माण में सिनेमाई छूट होती है, लेकिन यहां निर्देशक ने इस छूट को साड़ियों की सेल समझ कर कहानी को लूट के तार-तार कर दिया. रामायण के तमाम प्रसंग और किरदार उन्होंने अपने मन से तोड़-मरोड़ दिए. फिल्म की शुरुआत राम को एक्शन हीरो बताने से होती है. फिर तत्काल सीता हरण हो जाता है. सीता हरण, जटायु का रावण से युद्ध, सीता द्वारा अपने आभूषण आसमान से नीचे फेंकना जिस तरह से दिखाए गए हैं, वह बेहद हास्यास्पद हैं. लेखक-निर्देशक यहीं नहीं रुके. फिल्म आपको तब मजाक जैसी लगने लगती है, जब रावण आसमान में सीता को लिए उड़ा जा रहा है और नीचे जंगल में राम-लक्ष्मण यानी राघव-शेष पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं. विमान उनकी आंखों के सामने से निकल कर दूर क्षितिज में खो जाता है.
भारी-भरकम गलतियां
मनोज मुंतशिर शुक्ला और ओम राउत ने रामायण को थोड़ा भी समझा होता, तो वे जानते कि इस कथा में पुष्पक विमान का क्या महत्व है. वे जानते कि लंका सोने की थी, तो उसके जिक्र से क्या प्रभामंडल बनता हैं. लेकिन मजे की बात यह कि रावण फिल्म में सीता-हरण के लिए चमगादड़ और डायनोसौर के मिक्स किसी विशाल काले पक्षी पर आता है. लंका में उस पक्षी को हाथों से मांस खिलाता है. रामायण में लंका भले सोने की है, लेकिन आदिपुरुष में लंका कोयले जैसी काली है. एक सफेद पत्थर तक उसमें नहीं लगा. सीढ़ियों से सिंहासन तक सब काले हैं. हैरानी तो तब बढ़ती है, जब युद्ध में रावण की तरफ से लड़ने वाले सैनिक राक्षस नहीं बल्कि हॉलीवुड फिल्मों में किसी दूसरे ग्रह से आए प्राणी नजर आते हैं. यह आदिपुरुष के मेकर्स की क्रिएटिविटी और कल्पनाशीलता है. निर्माताओं को थोड़ी भी समझ होती कि महान कथाओं के कुछ ‘बेसिक्स’ होते हैं, तो ऐसी भारी-भरकम गलतियां नहीं करते.
लगा दी लंका
आदिपुरुष को न सही ढंग से लिखा गया और न ही संतुलित ढंग से बनाया गया. ओम राउत ने समझा कि वीएफएक्स मतलब ही फिल्म है. कुछेक दृश्यों को छोड़ दें, तो फिल्म जबर्दस्त ढंग से डार्क कलर में है. लेखक-निर्देशक में भी तालमेल नहीं है. जब लंका यहां काली दिखाई तो दो बार जानकी लंकेश से लंका के बारे में बात करते हुए, सोने की बात करती हैं. जानकी का एक डायलॉग हैः तेरी लंका में इतना सोना नहीं कि जानकी का प्रेम खरीद सके. मनोज मुंतशिर कहानी-स्क्रिप्ट के साथ संवादों में भी जबर्दस्त मात खा गए. ऐसा लगता है कि वह यहां एजेंडे के साथ डायलॉग लिख रहे थे. लंका से लौटे बजरंगी से जब पूछा जाता है कि वहां क्या हुआ तो वह जवाब देते हैः उन्हें समझा दिया है कि जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे उनकी लंका लगा देंगे.
क्या बजरंगी, क्या लंकेश
आदिपुरुष की कथा-पटकथा-संवादों में दृश्य-दर-दृश्य कमियां हैं ही, एक्टरों ने भी अच्छा काम नहीं किया. प्रभास में राघव वाली बात नजर नहीं आती. वह साधु-वेश में एक्शन हीरो दिखते हैं. उनके चेहरे पर न राम जैसी सौम्यता है और न ओज. यही स्थिति कृति सैनन की है. शुरुआती दृश्य से ही वह एक्टिंग करती नजर आती हैं. सैफ अली खान को जिस तरह से ओम राउत ने दिखाया है, वह रावण कम और कॉमिक कैरेक्टर ज्यादा नजर आते हैं. राउत ने रावण के दस सिर अनोखे ढंग से दिखाए हैं. वे एक कतार में नहीं हैं. नीचे पांच हैं और ऊपर पांच. यहां खास तौर पर सैफ की बॉडी लैंग्वेज अनाकर्षक है. निर्देशक ने ध्यान ही नहीं रखा कि साधु-वेश से बजरंगी जब अपने असली रूप में आते हैं, तो वह बॉडी लैंग्वेज ठीक वैसी होती है जैसी लंकेश के साधु-वेश से असली रूप में आने पर होती है. रूप बदलते हुए दोनों एक जैसे एक्शन करते हैं. दोनों के कंधे और बांहें एक जैसी उचकती हैं. बॉडी लैंग्वेज में बजरंगी और रावण का भेद मिट जाता है.
बाजार का प्रोडक्ट
आदिपुरुष के पहले टीजर में किरदारों के जिन लुक्स पर विवाद हुआ था, वे वैसे के वैसे हैं. कुछ नहीं बदला. वे सीन भी ज्यों के त्यों हैं. फिल्म में जयश्री राम... गाने और इसकी धुन को छोड़ दें तो कुछ ऐसा नहीं, जो फिल्म देखने के बाद आपके मन में रह जाता हो. आदिपुरुष बेहद निराश करती है. कहीं रामायण को न गंभीरता से पर्दे पर उतारने की कोशिश है और न ही इस कहानी के संदेश को सामने लाने का प्रयास है. यह बाजार के लिए बनाया गया प्रोडक्ट है, जो बाजार ही शर्तों पर खरा नहीं उतरता.
निर्देशकः ओम राउत
सितारे: प्रभास, सैफ अली खान, कृति सैन, सनी सिंह, देवदत्त नागे, वत्सल सेठ
रेटिंग**