Cannes Best Film: इस साल प्रतिष्ठित कान फिल्म फेस्टिवल के 75 साल पूरे होने पर इसे भारत (India) पर विशेष रूप से केंद्रित किया गया. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर की फिल्मों के लिए श्रेष्ठता की कसौटी कहलाने वाले इस समारोह में केवल एक भारतीय फिल्म ही आज तक सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का खिताब, पाम डी’ओर (Palm D'Or) जीत सकी है. कान के पहले फिल्म समारोह में, 1946 में निर्माता-निर्देशक चेतन आनंद (Chetan Anand) की नीचा नगर (Neecha Nagar) को यह अवार्ड मिला था. 1947 में आजादी मिलने से पहले इस फिल्म ने देश के फिल्ममेकर्स के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच के रास्ते खोले. असल में उस साल कान के पहले फेस्टिवल में 18 फिल्में आई थीं और संयुक्त रूप से 11 को विजेता घोषित करते हुए पाम डी’ओर अवार्ड दिया गया था. उनमें नीचा नगर शामिल थी. जीतने वाली फिल्मों में उस साल रॉबर्टो रोसेलिनी की रोम-ओपन सिटी (इटली), डेविड लीन की ब्रीफ एनकाउंटर (यूके) और बिली वाइल्डर की द लॉस्ट वीकेंड (यूएसए) भी शामिल थी.


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भारत का समाज
नीचा नगर का संगीत पंडित रविशंकर (Pandit Ravi Shankar) ने तैयार किया था और इसमें चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद, रफीक अहमद, रफी पीर और जोहरा सहगल ने अभिनय किया था. यह फिल्म मैक्सिम गोर्की (Maxim Gorky) के नाटक द लोअर डेप्थ्स से प्रेरित थी. फिल्म में उस दौर के भारत की सामाजिक और आर्थिक विषमताओं को दिखाया गया था. फिल्म ने मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों का जीवन दिखाने के साथ बताया गया था कि समाज का अभिजात यानी अमीर वर्ग कैसे उन्हें कीड़ों-मकोड़ों की तरह समझता है. उनसे कैसा बुरा बर्ताव करता है. उस दौरान यह वर्ग या तो अंग्रेज थे या फिर उनकी सरपरस्ती रहने वाली अमीर.



दो दुनिया का फासला
फिल्म में निर्देशक ने एक काल्पनिक शहर दिखाया था, जिसे सब नीचा नगर बुलाते हैं. यह ऊंचाई पर बसे अमीरों के शहर की ढलान पर बसा हुआ है. पड़ोसी होने के होने के बावजूद इन दोनों दुनियाओं के बीच गहरा अंतर है. अमीरों के शहर में योजना बनती है, जिसके मुताबिक शहर की गंदगी को एक गंदे नाले के रूप में नीचा नगर के बीच से निकालने का फैसला किया जाता है. नीचा नगर के लोग विरोध करते हैं, लेकिन उन्हीं के बीच से कुछ लोग अपने स्वार्थों के कारण इसे मंजूरी देते हैं. कहा जाता है कि गंदे नाले में खराब पानी के अलावा कुछ और नहीं होगा. बदले में कुछ मुआवजा भी मिलेगा. नाला बनने के बाद जल्द ही नीचा नगर में महामारी फैल जाती है. अब यहां अस्पताल (Hospital) बनाए जाते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना होता है. फिल्म अंत में यही बताती है कि आखिर कैसे नीचा नगर के लोग एकजुट होकर शक्तिशाली व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हैं.


अंग्रेजों को आईना
इस फिल्म का निर्माण ब्रिटिश शासन (British India) के आखिरी दिनों में किया गया था. प्रतीकात्मक रूप से यह फिल्म ब्रिटिश सत्ता के द्वारा भारतीयों के साथ किए जाने वाले बर्ताव की पोल खोलती थी. कड़े नियमों और प्रतिबंधों के बावजूद सीमित बजट में यह फिल्म बनाई गई. जिसने दुनिया भर के सिनेमा का ध्यान भारत की तरफ खींचा. चेतन आनंद को विश्व सिनेमा में पहचान मिली. बाद में उन्होंने हकीकत, हीर रांझा और कुदरत जैसी चर्चित फिल्में बनाईं. जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अच्छी खासी कमाई की. लेकिन यह विडंबना ही है कि जिस फिल्म से उन्होंने अपने सिनेमाई करियर की नींव रखी, वह भारत में कभी थियेटरों में रिलीज नहीं हो सकी.