ओटीटी के दीवाने हैं तो आपने अब तक 'भक्षक' देख ही ली होगी. इस फिल्म की कहानी रोंगटे खड़े कर देती हैं. डायरेक्टर और एक्टर्स की टोली ने बेहतरीन काम किया है और यही इस फिल्म की सफलता का राज है. तो चलिए आपको 'भक्षक' के 'मेहमान जी' से मिलवाते हैं जिन्होंने भूमि पेडनेकर के साथ अहम रोल प्ले किया है. इनका असली नाम है दानिश इकबाल. जो मंजे हुए कलाकार, थिएटर आर्टिस्ट और एक्टिंग टीचर हैं. 


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दानिश इकबाल छोटी सी उम्र में ही रंगमंच से जुड़े थे, फिर NSD और इंग्लैंड से एक्टिंग के गुर सीखे. आपने इन्हें 'महारानी 2', 'आखिरी सच', 'फराज', 'अरण्यक' से लेकर 'द ब्रैड' जैसे प्रोजेक्ट में देखा होगा. 'जी न्यूज' के साथ खास बातचीत में 'भक्षक' के दानिश इकबाल ने फिल्म की कास्ट, अपने करियर, काम, इंडस्ट्री और कई विषयों पर बात की है. तो पढ़िए एक्टर दानिश इकबाल का इंटरव्यू.


'भक्षक' मिली कैसे?
एक दिन मैं शूट पर था. तब मुझे मुकेश छाबड़ा का फोन आया. उन्होंने मुझे इस रोल को करने के लिए कहा. उन्होंने मुझे फोन पर ही कह दिया था कि ये फिल्म बहुत जरूरी और खास है. मैंने भी फौरन हां कह दिया. फिर भक्षक के डायरेक्टर पुलकित जी के साथ मीटिंग हुई. अब इसकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि ये कितनी अहम फिल्म है. इसे पुलकित जी ने बनाया भी बहुत दिल के साथ है. 



भूमि पेडनेकर के साथ काम करके कैसा लगा?
'भक्षक' जैसे बेहतरीन कंटेंट भूमि पेडनेकर जी दर्शकों को दे रही हैं. इस फिल्म के मार्मिक दृश्यों को उन्होंने संजीदगी के साथ किया है. लगता ही नहीं है कि वह एक्टिंग कर रही हैं. ऐसा लग रहा है जैसे सबकुछ हकीकत सा लग रहा है. मैं थिएटर बैकग्राउंट से हूं. हमने कई चीजे इम्प्रोवाइज की, ताकि बेहतरीन सीन्स निकलकर आए. भूमि जी काफी मेहनती हैं और वह बहुत ही सपोर्टिंग एक्टर भी हैं.


'लोग मेरे काम को पसंद कर रहे हैं'
मैं तो यही मानता हूं कि मैं अभी भी एक्टिंग सीख रहा हूं. एक्टिंग एक ऐसी कला है कि आप ये नहीं कह सकते कि आपको पूरी तरह से एक्टिंग आ गई है. थिएटर हो या ओटीटी या फिर फिल्में, मैंने हर बार कुछ न कुछ सीखा है. लोग मेरे काम को पसंद कर रहे हैं ये चीज मेरे कॉन्फिडेंस को बढ़ाता है और हम बेहतर काम करते हैं.



क्यों आशुतोष राणा से डर गए थे दानिश इकबाल
हां, काम के दौरान कई बार मुझे मेरे स्टूडेंट भी मिलते हैं. लेकिन मैं ये नहीं दिखाता कि मैं उनका सीनियर या प्रोफेसर रहा हूं. यही चीज मुझे भी सीनियर से मिली है. जब मैं 'अरण्यक' में आशुतोष राणा सर के साथ काम कर रहा था तो पहले मैं काफी डरा हुआ था. लेकिन उन्होंने मुझे सहज करवाया. यही चीज मैं अपने जूनियर और सह-कलाकारों के साथ करता हूं. कुल मिलाकर फोकस यही होता है कि काम बढ़िया हो.


रोल छोटा हो या बड़ा... नहीं पड़ता फर्क
देखिए, कैरेक्टर की लैंथ छोटी बड़ी हो सकती है. लेकिन किसी भी किरदार का प्रभाव ज्यादा मायने रखता है. रोल सिर्फ लंबा है और कोई असर नहीं है तो क्या ही फायदा. हमारे थिएटर में एक वाक्य कहा जाता है कि क्या फायदा बस भाला लेकर खड़ा कर दिया गया है. तो यही बात है सिर्फ रोल की लैंथ जरूरी नहीं होती. अब 'भक्षक' में मेरे रोल को देख लीजिए. उतना लंबा नहीं है. लेकिन जरूरी है. जो सीधे कहानी से कनेक्ट करता है. इसका असर ये भी हुआ कि लोग मुझे मेरे किरदार के नाम 'मेहमान जी' से बुलाने लगे हैं.



स्टूडेंट्स को क्या देंगे सलाह?
जैसा मैं कहता हूं कि मैं खुद सीख रहा हूं. हर कोई टीचर है. हर व्यक्ति जो अच्छा काम करना चाहता है, वह कुछ न कुछ सीख रहा है. मेहनत करते रहना होता है. कभी कभी तुरंत फल मिल जाता है तो कभी देर से मिलता है.