सोंधी-सोंधी सी मिट्टी की खूशबू, सरसों के पीले खेत और उदित नारायण-लता मंगेशकर की आवाज. बस जी करता है कि इन दृश्यों और आवाज को कोई दूर न करे. 2 दशक के बाद फिर से 'वीर जारा' देखकर दिल भी बाग-बाग हो जाता है. कभी आप के दिल की धड़कनें तेज हो जाती है तो कभी आंखों से टप-टप आंसू बहने लगते हैं. हर एक सीन को कैसे आइकॉनिक बनाया जाता है ये यश चोपड़ा से बेहतर कोई नहीं जानता. तो चलिए 20 साल के बाद 'वीर जारा' देखने का कैसा एक्सपीरियंस था ये बताते हैं.


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दिन की ड्यूटी खत्म करने के बाद हम तीन दोस्त ने प्लान बनाया कि 'वीर जारा' देखी जाए. फिर नोएडा के एक थिएटर में रात 10 बजे के शो की टिकटें बुक कर ली. सोचा था कि री-रिलीज फिल्म है. 20 साल पुरानी. इतना लेट का शो है तो खाली होगा. मगर जब मॉल पहुंचे तो काफी भीड़ दिख रही थी. हैरानी तब हुई जब पूरा सिनेमा हॉल 'वीर जारा' के लिए खचाखच भरा था. भीड़ में बच्चों से लेकर बूढ़े तक शामिल थे. एक बुजुर्ग महिला का चेहरा तो अभी भी याद है, जिनकी उम्र तो करीब 80 से भी ज्यादा रही होगी. ठीक से चल भी नहीं पा रही थीं.



पीले सरसों के खेत, झरने, पहाड़ और खुशनुमा सा नजारा...


अब शो शुरू होता है,  यश चोपड़ा की आवाज में एक कविता से. पीले सरसों के खेत, झरने, पहाड़ और खुशनुमा सा नजारा... बस यहीं से दर्शक फिल्म में डूबते चलते हैं. शाहरुख खान की एंट्री होती है तो तालियां की गड़गड़ाहट से थिएटर गूंजने लगता है. फिल्म का पहला गाना सोनू निगम और लता मंगेशकर की आवाज 'क्यों हवा यूं आज गा रही है' आता है. शुरुआत से अंत तक यश चोपड़ा अच्छे से जानते हैं कि एक-एक सीन को आइकॉनिक कैसे बनाना है. खेत-खलियान का इस्तेमाल उनसे बेहतर शायद ही किसी ने किया हो.



मोटी-मोटी आंखें, काला मस्कारा, सफेद सूट, पांव में लाहौरी जूती


'वीर जारा' की कहानी शुरू होती है, एक बस का एक्सीडेंट से. इस दुर्घटना से निपटने के लिए इंडियन एयरफोर्स की टीम आती है. स्क्वाड्रन लीडर वीर प्रताप (शाहरुख खान) सभी लोगों को सुरक्षित निकालने का काम करता है. तभी वीर एक लड़की को बचाता है. जिसकी मोटी-मोटी आंखें, काला मस्कारा, सफेद सूट, पांव में लाहौरी जूती और घुंघराले बाल हैं. इस लड़की का नाम है जारा (प्रीति जिंटा). वीर और जारा की पहली मुलाकात में कुछ ठहराव है. मगर फिर दोनों की पहली बातचीत शुरू होती है नोकझोंक से. जब वीर को जारा की सच्चाई पता चलती है तो उसका दिल पिघल जाता है. जारा अपनी बिजी (नैनी) की अस्थियां लेकर भारत आई है ताकि वह उनकी आखिरी ख्वाहिश को पूरा कर सके. अब वीर उसे बिजी के गांव पहुंचाने में मदद करता है. ये सिर्फ एक मुलाकात नहीं थी. दोनों एक दूसरे की ओर झुकने लगे थे. प्यार सा हो गया था. मगर एहसास तब हुआ जब जारा का पाकिस्तान लौटने का समय आ गया था.


धड़कनें तेज और आंखों में आंसू 


जारा पाकिस्तान के नामी और राजनैतिक परिवार की इकलौती बेटी है. उसका रिश्ता हो चुका है. मगर इश्क समय और दस्तूर थोड़ी देखकर होता है. एक जगह जारा कहती भी है कि बिजी तो एक बहाना है वरना तकदीर में लिखा था वीर से मिलना. इसलिए वह पाकिस्तान की सरहदें पार कर भारत आई है. बस जारा को अलविदा कहने का समय आ गया था. जारा को लेने उसका मंगेतर रजा आया है. उसे देख वीर की धड़कनें तेज और आंखों में आंसू आ गए हैं. ये वो मौका है जब वह अपने अंदर पल रहे इश्क को महसूस कर सकता है. वहीं अंदर ही अंदर जारा के दिल-दिमाग में भी वही चल रहा है. दोनों को देख रजा ने पूछ ही लिया आखिर चक्कर क्या है. वीर ने कहा, मेरे दिल से जारा के लिए बस दुआ निकलती है. रजा ने पूछा क्या जारा से मोहब्बत तो नहीं हो गई है? वीर बोला- ये मोहब्बत है या नहीं, ये तो नहीं पता लेकिन वह उसके लिए अपनी जान भी दे सकता है. 


जारा पाकिस्तान लौट चुकी है तो वीर भी ड्यूटी पर. पाकिस्तान में जारा के निकाह की जोर शोर से तैयारी चल रही है. मगर उसका दिल तो सिर्फ एक ही नाम पुकार रहा था वीर-वीर... आखिर में जारा मां से पूछ ही लेती है कि क्या उन्हें अब्बू इतना प्यार करते हैं कि उनके लिए अपनी जान दे दें? मां भी सोचती है कि ये कैसा बेहूदा सवाल है... वह तुरंत जारा को समझाती है कि वह ये उम्मीद रजा से भी न करे. प्यार तो औरत करती है. अपना सबकुछ न्योछावर कर देती है. जारा ने आखिरकार मां को बता ही दिया कि हिंदुस्तान में ऐसा कोई है जो उसके लिए जान दे सकता है.


घर में उबाल का माहौल है


शब्बो ने वीर को फोन करके बता दिया है कि जारा इस प्यार में अकेले कदम नहीं उठा पाएगी, उन्हें भी आना पड़ेगा. वीर जानता था कि वह इंडियन एयरफोर्स में है. वह पाकिस्तान नहीं जा सकता. इसलिए उसने नौकरी छोड़ दी और तुरंत लाहौर के लिए रवाना हो गया. जारा भी वीर को देख दरगाह में जोर से गले लगा लेती है. अब घर में उबाल का माहौल है. वीर को झूठे जासूसी के केस में बंद करवा दिया गया है. साथ ही धमकी दी है कि अगर वह सच बोलेगा तो इससे जारा और उसके परिवार की इज्जत तार तार होगी. 


इश्क का एक मतलब तो त्याग भी है


इश्क में सिर्फ हासिल ही थोड़ी करते हैं. इश्क का एक मतलब तो त्याग भी है जो वीर ने भी किया. 22 साल तक पाकिस्तान की जेल में बिता दिए. एक शब्द तक नहीं बोला. वीर की पहचान तक मिटा दी गई. वहां दूसरी ओर, जारा भी पाकिस्तान छोड़ भारत में वीर के घर आ गई है. वीर के माता पिता का सपना पूरा करती है. दोनों एक दूसरे के देश में अपनी यादों के सहारे जिंदगी काट रहे हैं. दोनों को ही किसी भी चीज का अफसोस नहीं है. अब सालों साइमा (रानी मुखर्जी) वीर का केस लड़ती है और वीर-जारा का मिलन करवाती है.  



192 मिनट की ये फिल्म सिर्फ प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि हर एक सीन है जो कहानी की गहराई में आपको डूबाते चलता है. गाने के एक-एक बोल पर परफेक्ट सीन आते हैं. संगीत तो इस फिल्म के लिए वरदान है. कुल 11 गाने हैं, जो कहानी को नदी की तरह कल कल बहाने का काम करते हैं. मदन मोहन के म्यूजिक और लता मंगेश्कर, जगजीत सिंह, उदित नारायण, सोनू निगम, गुरदास मान, रूप कुमार राठौर, अहमद और मोहमद हुसैन की जितनी तारीफ करें उतनी कम है.


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