नई दिल्लीः बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और राइटर कादर खान का 81 साल की उम्र में निधन हो गया. बॉलीवुड की 300 से ज्यादा फिल्मों में अपने अभिनय, पटकथा लेखन और डायलॉग के जरिए 4 दशक तक राज करने वाले कादर खान का जाना एक युग के अंत के समान है. 80 और 90 के दशक में बॉलीवुड की फिल्मों का मुख्य पात्र एक ऐसा आम आदमी था जो कभी समाज की हिकारत झेलता दिखता था, तो कभी संघर्षों के पथ पर खुद का लोहा मनवाने की जद्दोजहद में लगा रहता. समाज में अमीरी-गरीबी के बीच की लकीर हो या सरकारी और राजनीतिक भ्रष्टाचार से लुंज-पुंज हो चुकी व्यवस्था की जिक्र. कादर खान ने अपने लेखन के जरिए सारी बातों को पर्दे पर मानो उकेर दिया हो.


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मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा जैसे फिल्मकारों की फिल्मों में कादर खान का लिखा स्क्रिनप्ले आज भी सीन से पलक झपकने नहीं देता है. ये एक ऐसा दौर रहा जब डायलॉग पर सिनेमाघरों में सीटियां बजाने के लिए लोगों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता था. जहां कहीं भी दो पक्षों का सामना (हीरो-विलेन,हीरो हिरोइन,गरीब-अमीर,पुलिस-बदमाश,पुलिस-हीरो) पर्दे पर हुआ वहीं यह पता चल जाता था कि अब एक जोरदार डायलॉग आने वाला है. अमर अकबर एंथनी, लावारिस, शराबी और मुकद्दर का सिंकदर के अलावा मुकुल आनंद की अग्निपथ और हम के डायलॉग आज भी हमारे जहन से नहीं भुलाए जा सकते हैं.


कादर खान ने अपनी डायलॉग के जरिए जहां मर्द की खुद्दारी झकझोरने की कोशिश की, वहीं उन्होंने औरत के प्रतिशोध की आग को भी शब्द दिए. निर्देशक राकेश रोशन की खुदगर्ज, खून भरी मांग, काला बाजार के डायलॉग इसके बेहतरीन उदाहरण है. 


एक कार्यक्रम के दौरान कादर खान ने ये बात कही थी कि आजकल फिल्मों में सबकुछ पहले से उच्च क्वालिटी की हो गई है. लेकिन चीज़ खराब हो गई है...जुबान...



कादर खान ने कहा था, 'आज की फिल्मों में सबकुछ बेस्ट हो गया है, कलर, एक्टिंग...लेकिन जुबान बहुत खराब हो गई है. आज से 15-20 साल पहले मैंने गलत भाषा इस्तेमाल की फिल्मों में, वो कवायद ग्रैमर(व्याकरण) बन गई और आज तक इस्तेमाल हो रही है. मैं सोचता हूं कि वापस आऊंगा और फिर से इसे ठीक करूंगा...मैं आऊंगा करूंगा और फिर इस दुनिया से चला जाऊंगा... '