B`day Special: जब मशहूर म्यूजिक डायरेक्टर Madan Mohan के पीछे पड़ गई थी पुलिस
फौज में कुल दो साल काम करने के बाद मदन मोहन लखनऊ पहुंच गए और ऑल इंडिया रेडियो में काम करने लगे.
नई दिल्ली: फिल्म 'वो कौन थी' का सदाबहार गाना 'लग जा गले के फिर ये हसीं रात हो न हो' को कुछ समय पहले सदी के सबसे बेहतरीन प्रेम गीत का व्यूवर्स पोल अवॉर्ड मिला है. इस गीत को धुन देने वाले संगीतकार मदन मोहन (Madan Mohan) का आज जन्मदिन है. संगीतकार मदन मोहन और गीतकार राजा मेहंदी अली खान की जोड़ी को आज भी संगीत प्रेमी सराहते नहीं थकते. मदन मोहन जी शक्ल से बिलकुल एक हीरो की तरह लगते थे. लंबे, गोरे, खूबसूरत तराशा हुआ चेहरा, बलिष्ठ शरीर और बुलंद आवाज. जाहिर है अपने अच्छे दोस्त राज कपूर की तरह वे भी एक अभिनेता बनना चाहते थे, पर उनके पिता ने सख्त मना कर दिया. जबकि मदन मोहन के पिता उन दिनों मुंबई के चर्चित बॉम्बे टॉकीज, जिसमें नामी-गिरामी स्टार्स काम करते थे, में जनरल मैनेजर थे. वे चाहते तो अपने बेटे को तगड़ा ब्रेक दे सकते थे. पर पिता ने यह करने के बजाय मदन मोहन को फौज में भेज दिया.
मदन मोहन ने सीखा नर्गिस की मां से
मुंबई में मैरीन लाइंस में जहां मदन मोहन रहते थे, बगल की कोठी नर्गिस की मां जद्दन बाई की थी. मदन मोहन रोज शाम को उनके घर जद्दन बाई का गाना सुनने जाते थे. संगीत की समझ और शऊर उन्हें वहीं से लगी. नर्गिस से दोस्ती हुई, राज कपूर भी उनसे मिलने वहां आते रहते थे, तो उनसे भी अच्छी दोस्ती हो गई. वे सब मिलकर अक्सर बॉम्बे टाकीज में घूमते-फिरते पाए जाते थे. पर मदन मोहन की हिम्मत कभी अपने पिता से यह कहने की नहीं हुई कि वे फिल्मों में अपना करियर बनाना चाहते हैं.
ऑल इंडिया रेडियो से जुड़ गए
फौज में कुल दो साल काम करने के बाद मदन मोहन लखनऊ पहुंच गए और ऑल इंडिया रेडियो में काम करने लगे. वहां उनकी मुलाकात बेगम अख्तर, विलायत खान, तलत महमूद जैसे शख्सियतों से हुई. इस दौरान मदन मोहन के मन में संगीतकार बनने की चाह आई. फिर लौटकर जब वे मुंबई गए तो वहां के हालात बदल चुके थे. पिता ने दूसरी शादी कर ली थी. गुस्से में मदन मोहन घर छोड़कर अपने दोस्तों के साथ एक चाल में रहने लगे. जब पहली बार उनके पिता ने उनका दिया संगीत सुना तो आंखों में आंसू भर कर बोले- मुझे नहीं पता था तुम इतने होनहार हो. मुझे लगा था तुम मुझे बेवकूफ बनाने के लिए फिल्मों में जाने की बात करते थे.
अपने पिता के नाम और काम से मदन मोहन को कोई फायदा नहीं हुआ. बल्कि उन्हें हमेशा इस बात की शिकायत रही कि हिंदी फिल्मों में उनके काम की लोगों ने कभी ठीक से कद्र नहीं की. इसी गम और फ्रस्ट्रेशन में वे चल बसे. उनके गुजरने के बाद उनका कंपोज किया गया म्यूजिक मौसम, लैला मजनू और यश चोपड़ा की फिल्म वीर-जारा में खूब सराहा गया.
दिलचस्प किस्सा
मदन मोहन ने एक रोचक किस्सा एक बार बताते हुए कहा था- मैंने तब नीले रंग की नई गाड़ी ली थी. बच्चों को उसमें कभी नहीं बिठाता था. एक बार बच्चों ने जिद की तो मैं अपनी मां और बच्चों को लेकर लॉन्ग ड्राइव पर निकला. बेटे के कहने पर थोड़ा तेज चलाने लगा. तभी मैंने देखा मेरे पीछे पुलिस की गाड़ी लग गई है. कुछ देर बाद मैंने गाड़ी रोक दी. पुलिस वाला मेरे पास आया. मैं तेज चलाने के लिए माफी मांगने ही वाला था कि पुलिस वाले ने पूछा, आप संगीतकार मदन मोहन हैं न? मैंने जबसे फिल्म 'अनपढ़' में आपके गाने सुने हैं, आपसे मिलने को बेताब हूं. आज आप दिख गए तो सोचा मिल ही लेता हूं. उस दिन उन्हें लगा कि उनका संगीतकार होना सफल हो गया है.
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