R. Madhavan Film: देश भर में जब सिनेमा डे मनाया जा रहा हो, तो हॉल में आप बाकी शुक्रवार से ज्यादा दर्शकों की उम्मीद करते हैं. लेकिन टिकटों के घटे हुए रेट के बावजूद भीड़ हो, जरूरी नहीं. धोखा राउंड द कॉर्नर में यह दिखा. फिल्म में भरोसा करने लायक एक ही चेहरा था, आर. माधवन. जबकि टी सीरीज के सर्वेसर्वा भूषण कुमार की बहन खुशाली कुमार इस फिल्म से डेब्यू कर रही हैं. ऐसे में अगर कम रेट के टिकटों के बाद भी पहले दिन हॉल में भीड़ नहीं दिखती, तो इसकी वजह है फिल्म का खराब पीआर-प्रमोशन. न तो वह फिल्म के प्रचार से लोगों में उत्साह पैदा कर सके और न सिनेमा डे से प्रेरित कर सके. खैर, इस थ्रिलर में धोखे की बात तो ठीक है, लेकिन चालू किस्म के प्लॉट से कहानी की चमक कुछ ही मिनटों में उतर जाती है.


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कितने झूठ, कितने धोखे
यथार्थ सिन्हा (आर.माधवन) और सांची (खुशाली कुमार) की शादी टूटने के कगार पर दिखती है. इसकी कुछ वजहें भी सामने आती हैं. लेकिन रिश्ते में निर्णायक मोड़ आए, इससे पहले ही पुलिस की गिरफ्त से भागा आतंकी हक गुल (अपरीक्षित खुराना) इनके फ्लैट में तब घुस जाता है, जब सांची अकेली है. यर्थाथ नौकरी पर है. घर की नौकरानी बाजार गई है. आतंकी के पीछे-पीछे पुलिस पूरी बिल्डिंग को घेर लेती है और आतंकी सांची को पिस्तौल की नोंक पर बंधक बना लेता है. अब हिंदी फिल्मों का कोई भी दर्शक बता देगा कि आतंकी की क्या-क्या मांगें हो सकती है. साथी को बुलाना, गाड़ी मंगाना और एक मोटी रकम वगैरह-वगैरह. पुलिस बंदूकें लिए सिर्फ बिल्डिंग का घेरा डाले खड़ी रहती है. ट्विस्ट तब आता है, जब यथार्थ पुलिस अफसर से कहता कि उसकी पत्नी मानसिक रूप से बीमार है और उसे कुछ घंटों के अंतराल पर दवाई देनी पड़ती है, वर्ना वह कुछ भी कर सकती है. उधर, सांची आतंकी को अपनी कहानी सुनाते हुए कहती है कि मेरा पति मुझे दवाएं दे-देकर पागल करना चाहता है क्योंकि उसका उसी मनोचिकित्सक महिला से अफेयर है, जो मेरा इलाज कर रही है. कौन है झूठा है, कौन किसको धोखा दे रहा है. इस स्थिति में क्या करेगी पुलिस और क्या होगा आतंकी काॽ


थोड़ा फार्मूला, थोड़ा थ्रिल
कुकी गुलाटी ने निर्देशन के साथ कहानी भी लिखी है. नीरज सिंह ने स्क्रिप्ट में उनका साथ दिया. यहां बहुत कुछ फार्मूला थ्रिलर फिल्मों जैसा मामला है. कई सीन लंबे चलते हैं. ढीली पड़ती फिल्म अचानक किसी किरदार के तैश में आते ही खुद को संभालने की कोशिश करती है. फिल्म में पुलिस की भूमिका अजीब लगती है कि वह क्यों कुछ नहीं करती. इसका ठोस तर्क भी सामने नहीं आता. समस्या यह है कि पूरा ड्रामा एक ही जगह पर चल रहा है और वह बहुत देर तक ऐसी थ्रिलर के लिए जरूरी तनाव को संभाले नहीं रख पाता. इसलिए बार-बार फिल्म से दर्शक का कनेक्शन टूटता है. आखिरी मिनटों में जरूर पुलिस इंस्पेक्टर मलिक (दर्शन कुमार) का सस्पेंस से पर्दा उठाना और क्लाइमेक्स में आते मोड़ आकर्षित करते हैं.



थोड़े एक्टर, थोड़ा बैकग्राउंड
इस फिल्म की ताकत हैं, एक्टर. आर.माधवन को भले ही बहुत खास स्पेस नहीं मिला, लेकिन वह अपना रोल निभा जाते हैं. अपारशक्ति खुराना और खुशाली कुमार ने जरूर मौके का फायदा उठाया है. डेब्यू के लिहाज के खुशाली का काम अच्छा है, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी. उन्हें हाव-भाव के उतार चढ़ाव के साथ संवाद अदायगी पर काम करना होगा. अपारशक्ति खुराना जमे हैं. उन्होंने यह रोल निभाने में परिश्रम किया है और वह नजर आता है. जरूरी है कि वह अपने लिए अच्छे किरदारों को चुनाव करें. दर्शन कुमार भी बढ़िया हैं. फिल्म में गीत-संगीत के मौके ज्यादा नहीं हैं, लेकिन जो भी है वह ठीक है. थ्रिलर का मूड बनाए रखने में फिल्म में अमर मोहिले का बैकग्राउंड म्यूजिक काफी मददगार साबित होता है. कैमरावर्क अच्छा है. एडिटिंग से फिल्म थोड़ी और कसी जा सकती थी. कुकी गुलाटी इससे पहले अभिषेक बच्चन के साथ द बिग बुल लेकर आए थे. वह भी एवरेज फिल्म थी. धोखा राउंड द कॉर्नर भी उसी श्रेणी में खड़ी है.


निर्देशकः किकी गुलाटी
सितारेः आर.माधवन, खुशाली कुमार, अपरीक्षित खुराना, दर्शन कुमार
रेटिंग **1/2


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