फिल्म निर्देशक: निखिल नागेश भट्ट


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स्टार कास्ट: लक्ष्य, राघव जुयाल, तान्या मनिकतला, अभिषेक चौहान, आशीष विद्यार्थी और हर्ष छाया आदि


कहां देख सकते हैं: थिएटर्स में


स्टार रेटिंग: 3.5


इस फिल्म को कोई शायद देखने भी नहीं जाता, अगर इसके प्रोडयूसर्स में करण जौहर और ऑस्कर विजेता गुंजीत मोंगा नहीं होते. लेकिन ये दोनों फिल्म को हिट करने की भी गारंटी नहीं हो सकते. काफी हद तक आप ये श्रेय फिल्म के निर्देशक निखिल नागेश भट्ट को दे सकते हैं, बिना बड़ी स्टार कास्ट, बिना स्पेशल इफैक्ट्स, गानों, बोल्ड सींस, आइटम सोंग आदि के भी निखिल अपने दर्शकों को इस मूवी से बांधे रख पाए तो वो है फिल्म की स्पीड, जो उन्होंने लगातार बनाए रखी और दर्शकों को कुर्सियों से चिपकाए रखा.


'किल' की कहानी
Kill Movie Story: कहानी इतनी छोटी है कि कम ही मूवीज की फिल्मों में इतनी सीधी कहानी होती है. हालांकि बताया जा रहा है कि ये किसी वास्तविक घटना से प्रेरित होकर मूवी बनाई गई है. कहानी है एक ऐसे फौजी कमांडो अमृत की जिसे खबर मिलती है कि उसकी जान तूलिका (तान्या मनिकतला) की उसके पापा ठाकुर बलदेव सिंह (हर्ष छाया) ने शादी तय कर दी है और सगाई भी होने जा रही है. बलदेव सिंह बिहार की दमदार हस्ती हैं. अमृत तूलिका के बुलावे पर अपने कमांडो दोस्त वीरेश (अभिषेक चौहान) के साथ उसे भगाने के लिए निकल पड़ता है.


लेकिन सगाई के दिन तूलिका भागने से इंकार कर देती है और कोई और वक्त तय करने को बोलती है. लेकिन जब पूरा परिवार ट्रेन से लौट रहा होता है, तो अमृत वहां ये कोशिश करता है. ऐसे में उनका पाला पड़ता है, चलती ट्रेनों में डकैती करने वाले एक ऐसे आधुनिक डाकुओं से जो गिनती में 40 थे और बैनी (आशीष विद्यार्थी) की अगुआई में काफी खतरनाक मिजाज वाले थे, हथियारों से लैस थे. बैनी का बेटा फानी (राघव जुयाल) तूलिका से बदतमीजी करने की कोशिश में उसका कत्ल कर देता है और फिर दोनों कमांडोज बन जाते हैं किलिंग मशीन, जो बदला लेते हैं, वैसा हिंसक बदला हाल फिलहाल की किसी मूवी में देखा नहीं गया.
 
यूं भले ही ट्रेन आज के दौर की दिखाई गई है, लेकिन कहानी आज के दौर की नहीं दिखती क्योंकि पूरी ट्रेन में केवल दो सिपाही दिखाए गए हैं, जबकि आजकल ऐसा नहीं है. हालांकि फिल्म देखते वक्त किसी के दिमाग में ऐसे सवाल ना आएं कि इतना कत्ले आम होता रहा, किसी ने फोन क्यों नहीं किया, किसी ने ट्रेन क्यों नहीं रोकी. इसके जवाब शुरूआत में ही निर्दैशक ने जैमर आदि से दे दिए हैं.


'किल' का रिव्यू
लेकिन पूरी फिल्म तर्क वितर्क से ऊपर है क्योंकि फिल्म की स्पीड सब पर भारी पड़ती है और केवल 106 मिनट की मूवी में आपके मन में केवल एक ही सवाल उठता है कि अब क्या होगा? लक्ष्य ने कमांडो के रोल में काफी जबरदस्त रोल किया है, राघव जुयाल तो विलेन के रोल में एक कदम आशीष विद्यार्थी से आगे निकल गए हैं. हर्ष छाया का किरदार जरूर दबता सा लगा है, लेकिन निर्देशक ने तकरीबन हर किरदार को उभारने के लिए स्पेस दिया है. तभी मनिका छोटे से रोल में भी असर छोड़ती हैं.


तकनीकी पक्ष
कोशिश की गई है कि अब तक ट्रेनों में बनी तमाम फिल्मों जैसा बड़ा सैटअप या स्पेशल इफैक्टस आदि ना दिखाया जाए और ना ही ट्रेन में क्या हो रहा है इसकी खबर बाहर जा पाई, जिससे फिल्म के बाहर असर दिखाने का स्कोप भी खत्म हो गया कि लोग प्रार्थना कर रहे हैं या किसी का इंतजार कर रहे हैं. फोकस किया गया कि कैसे मूवी ज्यादा से ज्यादा रीयल लगे.


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'किल' की खास बात


फिल्म में संदेश है कि डराने वाले को ही इतना ज्यादा डरा दो कि उसे भी डर लगने लगे और वो तभी होगा, जब आप डरना बंद करेंगे और मौत का भय खो देंगे. ऐसे में एक्शन फिल्मों के शौकीन युवाओं को ये मूवी काफी पसंद आएगी. एक्शन, थ्रिल, सस्पेंस और स्पीड इस मूवी की जान है. भले ही ये मूवी कोई कीर्तिमान स्थापित नहीं करेगी, लेकिन आप इसे नजरअंदाज भी नहीं कर पाएंगे. हो सकता है देखते देखते आपको भी क्रिमिनल्स पर इतना गुस्सा आने लगे कि आप भी बोलें, सही किया, यही होना चाहिए इन कुत्तों के साथ और यही फिल्म की जीत है. सुनने में आ रहा है कि इस मूवी का हॉलीवुड में इंगलिश रीमेक बनने जा रहा है.