Maharani Season 2 Review: रानी भारती के बिहार में है राजनीति का फुल ड्रामा, हुमा कुरैशी ने जमाया रंग
Bihar Politics In Web Series 2022: बिहार की राजनीति की कहानी कहने वाली महारानी का दूसरा सीजन पहले से रोचक है. हुमा कुरैशी किरदार में रमी नजर आती हैं. कहानी भले ही असली जमीन से ली गई है लेकिन नए सीजन में उस पर काफी फिल्मी रंग चढ़ चुका है.
Huma Qureshi Web Series: थोड़े दिन पहले ही बिहार की राजनीति ने ऐसी करवट ली थी, जिसने दिल्ली को चौंका दिया. वेब सीरीज महारानी के पहले सीजन का चर्चित डायलॉग था, ‘बिहार इज नॉट अ स्टेट. इट्स अ स्टेट ऑफ माइंड.’ दूसरे सीजन में बात आगे बढ़ती है कि ‘जब-जब आपको लगता है कि आप बिहार को समझ गए हैं, बिहार आपको झटका देता है.’ सुभाष कपूर के शो का दूसरा सीजन भी आपको चौंकाता है. यहां राजनीति और राजनेताओं के रंग एपिसोड-दर-एपिसोड बदलते हैं. पहले सीजन में एक हमले में घायल हुए राज्य के मुख्यमंत्री भीमा भारती (सोहम शाह) ने गांव-गोबर-गृहस्थी संभालने वाली तीन बच्चों की मां अपनी पत्नी रानी भारती (हुमा कुरैशी) को राजनीतिक वारिस बनाया था. दूसरे सीजन में रानी के हिचकोले खाते राजनीतिक सफर की कहानी है. मगर शुरुआत यहां एक झटके के साथ होती है. तीन सदस्यों की जांच कमेटी रानी से सवाल करती है, ‘क्या आप अपने पति, पूर्व मुख्यमंत्री भीम सिंह भारती की हत्या की साजिश में शामिल हैं?’
किस करवट पर बैठेगा ऊंट
महारानी का दूसरा सीजन आपका समय लेगा. दस एपिसोड देखने में साढ़े सात से आठ घंटे आपको लगेंगे. सोनी लिव आई इस सीरीज का अगर पहला सीजन आपने देखा है तो दूसरा देखना बनता है. यह सीजन पहले से बेहतर है. इसमें राजनीति ज्यादा मुखर है. जेल से लौटे पति के लिए रानी भारती कुर्सी छोड़ने से इंकार कर देती है. फिर रानी को कमजोर करने के लिए प्रतिद्वंद्वियों द्वारा बिछाए जा रहे जाल, राज्य में कानून व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिशें, पिछड़ी जातियों को आरक्षण के मुद्दे पर भड़काने के प्रयासों से लेकर विधानसभा चुनाव में भीमा भारती का नई राजनीतिक पार्टी बना कर मैदान में उतरना और उसकी जिंदगी में नई स्त्री का आना जैसे रोचक प्रसंग यहां पर हैं. हर मामले पर अंत में सवाल यह कि इस बार बार ऊंट किस करवट पर बैठेगा?
त्रिकोणीय मुकाबला
महारानी की कहानी जमीन से जुड़ी है और इसमें आने वाले प्रसंग तथा संवाद आपको असली राजनीति की भी याद दिलाते हैं. ऐसे में जिनकी दिलचस्पी राजनीतिक कहानियों में है, असली राजनीतिक उठा-पटक जिन्हें पसंद है, उन्हें इसमें काफी मजा आएगा. सीरीज उन्हें राजनीति को समझने के भी कुछ पाठ पढ़ाती है. लेकिन अगर आप राजनीति में रुचि नहीं रखते, तब भी महारानी को इसके किरदारों के लिए देख सकते हैं. 17 साल से बिहार का मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले नवीन बाबू (अमित सियाल) का ट्रेक रोचक है. इस बार महारानी में मुख्यमंत्री की कुर्सी का मुकाबला त्रिकोणीय है. राजनीतिक धुरंधरों के रूप में विनीत कुमार और अतुल तिवारी के किरदार भी रोचक ढंग से गढ़े गए हैं. निःसंदेह महारानी के दूसरे सीजन को सिनेमाई टच के साथ पिछले सीजन से बेहतर लिखा गया है. इसीलिए यह राजनीति की जमीन पर खड़े होकर भी मनोरंजक है.
थोड़ा लार्जर दैन लाइफ
हालांकि कुछ बातें यहां खटकती है. मेकर्स ने सीरीज की लंबाई का ख्याल नहीं रखा. कई दृश्यों को बेहतर ढंग से संपादित करके कसा जा सकता था. साथ ही कुछ ऐसे दृश्य हैं, जो पर्दे पर लार्जर दैन लाइफ अंदाज में सुंदर लगते हैं. ऐसे दृश्यों में यहां वह अभाव झलकता है. साफ नजर आता है कि निर्देशक जो प्रभाव दृश्य में पैद करना चाह रहे हैं, वह नहीं हो पा रहा. ऐक्टिंग के स्तर पर हुमा कुरैशी पहले सीजन से अधिक सहज हैं. वह नए सीजन में इस रोल में रम गई हैं. सोहम शाह, अमित सयाल, विनीत कुमार और अतुल तिवारी ने अपनी भूमिकाओं को अच्छे से निभाया है. मुख्यमंत्री रानी भारती की सहायक के रूप में कनी कुश्रुति भी इस सीजन में निखर कर आई हैं.
अगले सीजन की तैयारी
महारानी के दूसरे सीजन का आखिरी एपिसोड और उसमें भी क्लाइमेक्स जरूर बाकी कड़ियों से कुछ ज्यादा सिनेमाई लगता है, लेकिन जिस जगह पर यह खत्म होता है, उससे तीसरे सीजन के दरवाजे-खिड़कियां खुलते हैं. लेकिन यह भी साफ हो जाता है कि पहले सीजन में असली राजनीति को पकड़े वाली कहानी, तीसरे सीजन में दूसरे सीजन से ज्यादा फिल्मी होगी. यह लेखक-निर्देशक की मजबूरी भी है क्योंकि पीछे लौटना किसी के लिए संभव नहीं होता.
निर्देशकः रवींद्र गौतम
सितारेः हुमा कुरैशी, सोहम शाह, अमित सयाल, विनीत कुमार, अतुल तिवारी, कनी कुश्रुति
रेटिंग ***
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