New Film On OTT: हिंदी के दर्शकों के लिए नायिका प्रधान सिनेमा के नाम पर बॉलीवुड के प्रोड्यूसर वीरे दी वेडिंग, जहां चार यार और फोर मोर शॉट्स प्लीज (तीन सीजन) जैसी फिल्में और वेब सीरीज बनाते हैं. लेकिन बॉलीवुड के दर्शकों को खराब-मसाला कंटेंट देने वाले यही प्रोड्यूसर जब साउथ में जाते हैं तो वहां महिलाओं के संवेदनशील मामलों से जुड़ी कहानियों में पैसा लगाते हैं. यह अलग बात है कि वह कसौटी पर कितनी खरी उतरती हैं. मुद्दा यह कि क्या हिंदी का दर्शक फूहड़ कहानियों के योग्य हैॽ जिनमें विवाहपूर्व यौन स्वच्छंदता, विवाहेतर संबंध, अर्द्धनग्न पार्टियां और भरपूर शराब छलकती है. जबकि साउथ के सिनेमा में रिश्ते, मानवीय संबंध, संवेदनाएं और आम जीवन की झलक होती है. अगर तुलना करना चाहें तो आपको हिंदी और दक्षिण की भाषाओं का ऐसा तमाम कंटेंट ओटीट पर मिल जाएगा. साउथ की निर्देशक अंजली मेनन की आज ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनी लिव पर रिलीज फिल्म, वंडर वुमन को भी आप इस तुलना में रख सकते हैं.


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सबके अलग हालात
फिल्म की खूबी यह है कि ये आपका ज्यादा समय नहीं लेती और अपनी बात संक्षेप में कहती है. लेकिन समस्या यह है कि 73 मिनिट की फिल्म में कोई ठोस कहानी नहीं है. न ही सशक्त किरदार हैं. थोड़े में ज्यादा कहने वाली इस फिल्म में छह प्रेग्नेंट महिलाएं ऐसी क्लास या ग्रुप का हिस्सा हैं, जो उन्हें आपस में जोड़ता है. सब कमोबेश एक स्थिति में हैं, लेकिन उनकी सामाजिक और निजी-मानसिक परिस्थिति अलग-अलग हैं. नोरा (नित्या मेनन) खुशमिजाज है मगर प्रेग्नेंसी में करियर को पूरी तरह नजरअंदाज करके आने वाले शिशु के प्रति समर्पित है. वेणी (पद्मप्रिया) इसलिए परेशान है कि उसके पति का फोकस काम पर है और हर जगह अपनी मां को पत्नी के साथ भेजता है. खुद नहीं जाता. प्रेग्नेंट मिनी (पार्वती थिरुवोथु) पति से तलाक चाह रही है. ग्रामीण-सी हिंदी भाषी जया (अमृता सुभाष) सहमी हुई है कि मां बनने की उसकी तीन कोशिशें अधूरी रही हैं. साया (सायोनारा फिलिप) बॉयफ्रेंड के साथ लिव-इन में प्रेग्नेंट होकर खुश है. जबकि सुमना नाम की इस क्लास या ग्रुप को संचालित करने वाली नंदिता (नादिया मोइडु) की होम-हेल्पर ग्रेसी (अर्चना पद्मिनी) दूसरी बार मां बनने वाली है.



लडखड़ाती गाड़ी
वंडर वुमन कहानी और कथ्य के स्तर पर कमजोर है क्योंकि इसमें कोई किरदार या परिस्थिति बड़ा आकार नहीं लेती. यहां ड्रामा नहीं है, जो भावनाओं में हलचल पैदा करे. जिन जोड़ों की कहानी है, उनकी जिंदगी में ऐसा कोई संघर्ष नहीं दिखता जो उनसे जोड़े. फिल्म कई जगहों पर प्रेग्नेंसी में जनरल नॉलेज देने वाले वीडियोज की तरह बढ़ती है. गर्भावस्था की वजह से पति-पत्नी के रिश्तों पर असर को लेकर सब कुछ ऐस बुना गया, जैसे प्रेग्नेंसी के साथ जीवन की सहजता चली जाती है. पति-पत्नी के जीवन की दो-पहिया गाड़ी में यह फिल्म पूरा फोकस एक पहिये पर करते हुए, लड़खड़ा जाती है. ऐसा लगता है कि सिर्फ थोड़े में ज्यादा कहने की ही नहीं बल्कि जल्दी-जल्दी बताने की भी कोशिश है. एक भी किरदार यहां ऐसा नहीं कि जिसकी कहानी दिलचस्पी जगाए, सिवाय मिनी के जीवन के. कहानी की धुरी होकर भी नंदिता अनसुलझी रह जाती है.


भाषा अलग-अलग अलग
निर्देशक के साथ अंजली मेनन फिल्म की लेखक भी हैं. उन्होंने किरदारों की मातृभाषा को संवादों का आधार बनाया है. संवाद यहां तमिल, मलयालम और हिंदी या अंग्रेजी में हैं. अच्छा यही है कि अंग्रेजी सब-टाइटल्स आपको बात समझने में मदद देते हैं. लेकिन अपने अच्छे उद्देश्य के बावजूद कमजोर राइटिंग की वजह से फिल्म पकड़ नहीं पाती. कुछ परिस्थितियां बेहद महानगरीय हैं और ऐसे में दूर-दराज इलाकों में रहने वालों को इनसे कनेक्ट कर पाना मुश्किल होगा और कुछ स्थितियां उनके हिसाब से हास्यास्पद रहेंगी. लेकिन इसमें संदेह नहीं कि हर कलाकार ने बहुत अच्छा अभिनय किया है. अपने किरदारों में वे उतरे हैं और छाप छोड़ जाते हैं. बतौर निर्देशक अंजली मेनन की पकड़ दिखती है. संवेदनशीलता नजर आती है. फिल्म को खूबसूरती से शूट किया गया है और ब्रैकग्राउंड म्यूजिक दृश्यों के अनुकूल है.


निर्देशकः अंजली मेनन
सितारेः नादिया मोइडु, पद्मप्रिया, नित्या मेनन, अमृता सुभाष, पार्वती थिरुवोथु, अर्चना पद्मिनी, सायानोरा फिलिप
रेटिंग **1/2


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