Pankaj Udas Ghazals:  मैं शायद 10 बरस का था, जब पहली बार कलर टीवी पर वीसीआर में मम्मी और पापा की शादी की कैसेट देखी थी. एक घंटा कैसेट आगे बढ़ी और उस दौर के तमाम नए पुराने बॉलीवुड के गाने बजे. लेकिन चंद सेकंड बाद एक गाना आया 'चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल'. जैसे-जैसे उम्र बढ़ी तो गानों की दुनिया से इश्क भी बढ़ता गया. उस दौर में न तो आज की तरह यू-ट्यूब था और ना ही म्यूजिक ऐप्स. तब टीवी पर पहली बार मैंने उसी कैसेट में चले गाने की वीडियो देखी और सिंगर का नाम था पंकज उधास. आज उसी मखमली आवाज का सरताज लंबी बीमारी के कारण हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया से रुखसत हो गया. 


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'मयखाने से शराब से साकी से जाम से', 'यूं मेरे खत का जवाब आया, लिफाफे में एक गुलाब आया', 'चिट्ठी आई है वतन से' और 'छुपाना भी नहीं आता' जैसे गाने जब भी पंकज उधास भी आवाज में सुने तो मानो वक्त ठहर सा गया. रूह को सुकून और शब्दों का नया फलसफा पता चला. शायद ही ऐसी कोई गजल नाइट हो, जिसमें पंकज उधास से 'चांदी जैसा रंग' गाने की फरमाइश ना की जाती हो. 


तीन भाइयों में सबसे छोटे


गुजरात के जेतपुर में 17 मई 1951 को जन्मे पंकज उधास  अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे. पिता का नाम केशुभाई और माता का नाम जितुबेन उधास था. उनके दो बड़े भाई निर्मल और मनहर उधास भी गायक रहे हैं. लेकिन जो मुकाम पंकज ने हासिल किया, उसका कोई तोड़ नहीं था. 


पंकज उधास ने अपने करियर की शुरुआत की आहट नाम की एक गजल एब्लम के साथ. इसके बाद मुकरार, महफिल, नायाब और आफरीन जैसे फिल्मों के गानों को अपनी आवाज दी. तब तक एक गजल गायक के तौर पर पंकज उधास को पहचाने जाने लगा था. लेकिन उनकी किस्मत तब बदली जब महेश भट्ट ने 1986 में आई फिल्म में उनको एक गाने चिट्ठी आई है को रिकॉर्ड करने के लिए बुलाया. यह गाना इतना जबरदस्त हिट हुआ कि लोग इससे सुनने के लिए तरसने लगे. रेडियो पर इसके लिए फरमाइशें आया करती थीं.     


आवाज में झलकता था दर्द


पंकज उधास की गजलों में मोहब्बत, दर्द, नशा और शराब बातें होती थीं. जिएं तो जिएं कैसे और छुपाने भी नहीं आता जैसे गाने में उनकी आवाज में भी साफ झलकता है. जबकि यूं मेरे खत का जवाब आया में पहली मोहब्बत जैसी ताजगी नजर आती है. अपनी महबूबा की तारीफ करने के लिए चांदी जैसा रंग है तेरा गाने से बेहतर भला क्या हो सकता है. वाद्य यंत्रों से निकले संगीत पर आवाज का मोती कैसे पिरोना है, यह तो पंकज उधास को बेहद कम उम्र में ही मालूम चल गया था. 


चार साल की उम्र में जोड़ा संगीत से नाता


दरअसल उधास का परिवार चरखड़ी नाम के कस्बे में रहने वाला था. उनके दादा जमींदार थे और अपने गांव से पहले ग्रेजुएट. वह भावनगर के दीवान बने थे. उनके पिता केशुभाई भले ही सरकारी कर्मचारी थे लेकिन उनको भी संगीत में बेहद दिलचस्पी थी. केशुभाई तार वाला वाद्ययंत्र दिलरुबा बजाया करते थे, जो उन्होंने मशहूर वीणा वादक अब्दुल करीम खान से सीखा था. जब केशुभाई ने देखा कि उनके तीनों बेटों की संगीत में ही दिलचस्पी है तो उन्होंने राजकोट की म्यूजिक अकैडमी में पंजे पैने करने तीनों को भेज दिया. उधास ने 4 साल की उम्र में तबला सीखने से शुरुआत की लेकिन धीरे-धीरे गुलाम कादिर खान की सरपरस्ती में उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया.      


...जब मिले थे 51 रुपये


बाद में उन्होंने मुंबई का रुख किया और ग्वालियर घराने के गायक नवरंग नागपुरकर से संगीत के और गुर सीखे. पंकज उधास को आगे बढ़ाने में उनके भाई मनहर ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. मनहर मंच कलाकार थे और अकसर अपने साथ पंकज को भी ले जाया करते थे. भारत-चीन युद्ध के बाद एक मंच कार्यक्रम में पंकज उधास ने ऐ मेरे वतन के लोगो गाया, जिसके बाद एक दर्शक ने उनको पुरस्कार के तौर पर 51 रुपये दिए. इसके बाद पंकज उधास ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वक्त के साथ सफलता की सीढ़ी चढ़ते चले गए. अपने पूरे करियर में एक से बढ़कर एक गीत गाए और म्यूजिकल नाइट्स में तो लोग उनकी गायकी के दीवाने हो जाया करते थे. साल 2006 में उनको पद्मश्री से नवाजा गया. लेकिन 26 फरवरी को उनका यूं अचानक जाना संगीत की दुनिया में एक खालीपन छोड़ गया है जो शायद कभी भर नहीं पाएगा. लेकिन उनकी गजलों और गानों को उनके चाहने वाले हमेशा याद रखेंगे. अलविदा पंकज उधास.