Maharashtra Poltics: राजनीति के शौकीन विद्वानों और छात्रों ने पिछले दसेक सालों में राज्यों की पॉलिटिक्स में कई मजेदार घटनाक्रम देखें हैं. मजे की बात यह है कि इनमें सबसे ज्यादा दिलचस्प नजारे महाराष्ट्र की राजनीति से दिखे हैं. याद करिए वो दिन जब अचानक तत्कालीन गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी दो धुर विरोधी खेमे के अगुआ फडणवीस और अजीत पवार को शपथ दिलाते दिखे. फिर कुछ ही दिनों में अजीत पवार ने उद्धव ठाकरे वाले खेमे की तरफ से फिर से शपथ ली. यह सब चलता रहा और इधर शरद पवार के साथ ही खेला हो गया. पार्टी टूट गई. अजीत पवार फिर से बीजेपी के साथ हो लिए, डिप्टी सीएम बने. अब लोकसभा चुनावों के बाद फिर से महाराष्ट्र की स्क्रिप्ट तैयार हो रही है. चर्चा गरम है कि बीजेपी अजीत पवार से किनारा करने के मूड में है.


महाराष्ट्र में करारे झटके


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असल में अजीत पवार वाली एनसीपी ने लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक़ प्रदर्शन नहीं किया और सिर्फ एक ही सीट जीत पाई. यहां तक कि अजीत पवार की पत्नी खुद बारामती सीट सुप्रिया से हार गईं. उधर शरद पवार की एनसीपी ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए वापसी की. अब चूंकि बीजेपी को भी महाराष्ट्र में करारे झटके मिले हैं ऐसे में अजीत पवार से गठबंधन टूट की कगार पर आ गया है. इधर आरएसएस ने भी कुछ ऐसा ही इशारा किया है.


महाराष्ट्र की हार का आइना 


एक तरफ बीजेपी संगठन महाराष्ट्र में अपने प्रदर्शन की समीक्षा करने में लगा ही हुआ है तो उधर आरएसएस के मुखपत्र कहे जाने वाले ऑर्गनाइजर में एक लेख की चर्चा जबरदस्त है. इसमें लिखा गया कि महाराष्ट्र में बीजेपी की लोकसभा चुनाव में हार का एक कारण अजित पवार भी हैं. इस लेख ने मानों बीजेपी को महाराष्ट्र की हार का आइना दिखा दिया है. 


बीजेपी खुद अलग होगी या अजीत दादा किनारा करेंगे?


अब सवाल यह है कि अजीत पवार से बीजेपी खुद अलग होगी या अजीत दादा ही किनारा करेंगे. यह सवाल इसलिए भी है कि दबी जुबान से ही सही लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह ना मिलने से एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों खेमा नाराज बताया जा रहा है. शिंदे की शिवसेना के एक नेता ने तो यह भी कह दिया है कि हमने 15 में से 7 सीटें जीतीं फिर भी हमारे ऊपर ध्यान नहीं दिया. उधर अजीत पवार की पार्टी तो सिर्फ एक ही सीट जीत पाई. अब देखना होगा कि अजीत पवार का अगला कदम क्या होता है. 


फिर होने वाला है खेला


अजीत पवार के लिए एक मुश्किल यह भी है कि वे पहले से ही शरद पवार से घरेलू दुश्मनी ठानकर बैठे हैं. उधर उद्धव गुट से भी उनके संबंध ठीक नहीं है. संजय राउत खुलकर अजीत पवार पर निशाना साधते रहे हैं. यह बात भी सही है कि महाराष्ट्र में अभी वे सत्ता के साझेदार हैं लेकिन शिंदे और फडणवीस से उनकी जुगलबंदी लोकसभा चुनाव के बाद फीकी पड़ गई है. ऐसे में बीजेपी का भी अगला कदम देखने लायक होगा.