Pakistan Iran News: पहले ईरान फिर पाकिस्तान की एयरस्ट्राइक के चलते बलूचिस्तान काफी चर्चा में है. इस क्षेत्र की अपनी कहानी है. खास बात यह है कि बलूचिस्तान का क्षेत्र तीन देशों में बंटा है. पाकिस्तान में यह बलूचिस्तान प्रांत है, अफगानिस्तान में हेलमंद- कंधार और निमरुज का इलाका तो ईरान में सिस्तान-बलूचिस्तान कहा जाता है. बलूचिस्तान पहले कलात, लास बुरा, मकरान और खरान रियासतों में बंटा था. बताते हैं कि अंग्रेजों ने यहां की रियासतों को आंतरिक फैसले लेने के अधिकार दे रखे थे. 1947 में ये रियासतें भारत या पाकिस्तान के साथ जा सकती थीं या स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर सकती थीं. बलूचिस्तान अलग रहना चाहता था लेकिन गेम हो गया. एक साल के भीतर पाक फौज ने एक ऑपरेशन के तहत कलात के हुक्मरानों को सरेंडर के लिए मजबूर कर दिया और बलूचिस्तान पाकिस्तान के पास आ गया. यह पाक का सबसे बड़ा प्रांत है. 


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बलूचों ने क्यों उठाए हथियार?


शुरू से ही बलूचों में राष्ट्रवाद की भावना पाकिस्तान की सरकार को चुनौती देती रही. वे स्वतंत्र होने की मांग करते रहे लेकिन कभी इतने ताकतवर नहीं हुए कि आजादी हासिल कर सकें. ये अपनी लड़ाई को आजादी का आंदोलन कहते हैं. हालांकि पाकिस्तान और ईरान ने इन्हें आतंकी संगठन घोषित कर दिया है. इनमें से ही एक बलूच आतंकी समूह जैश-अल अदल पर ही ईरान ने पिछले दिनों मिसाइलें दागी थीं. 


पाक का बलूचिस्तान


बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और उसका 40 प्रतिशत गैस उत्पादन वहीं से होता है. यह चीन- पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का महत्वपूर्ण चेक पॉइंट भी है. इसका ग्वादर पोर्ट ओमान की खाड़ी के काफी करीब है. सामरिक महत्व के बावजूद पाकिस्तान की लीडरशिप ने इसे नजरअंदाज किया और स्वतंत्रता का आंदोलन शुरू हो गया. पाकिस्तान ने कब्जा किया तो विरोध बढ़ता गया. आज बलूच दुनिया के कई देशों में रहते हैं. ये भारत भी आते रहते हैं और भारतीयों को अपना मित्र कहते हैं. हिंदी बोलते और समझते भी हैं. 


आज के समय में बलूचिस्तान में आतंकवाद एक बड़ी समस्या बन चुका है. बलूचिस्तान के लोगों का समूह बलूच कबायली कहा जाता है और ये लोग तीनों देशों में फैले हुए हैं. अंग्रेजी हुकूमत के समय भी यहां शांति नहीं रही. 


तस्करी का अड्डा


बलूचों का मानना है कि बंटवारे के बाद पाकिस्तान ने उन पर जबरन कब्जा किया. यह समूह उन पंजाबियों और सिंधियों से अलग है जो पाकिस्तान की राजनीति में हावी हैं. पूर्वी पाकिस्तान 1971 में बांग्लादेश के रूप में नया राष्ट्र बन गया. उसी तर्ज पर इस क्षेत्र को आजाद कराने के लिए बलूच सशस्त्र समूह लड़ाई लड़ रहे हैं. पाकिस्तानी सेना और इन आतंकियों के बीच कई बार झड़प हुई. इन समूहों ने डर पैदा करने के लिए चीनी इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी निशाना बनाया. नफरत और लड़ाई के चलते यहां हथियारों और ड्रग्स की तस्करी बढ़ती गई. 


पिछड़ा रह गया बलूचिस्तान


बलूचिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र पर ईरान ने कब्जा जमाया. शिया सत्ता में आए और अयातुल्ला खमैनी ने सुन्नी बलूचियों को अपना दुश्मन माना. इस क्षेत्र में विकास कम हुआ, ईरान के दूसरे इलाकों की तुलना में बलूचों का जीवन स्तर बेहतर नहीं है. ऐसे ही हालात पाकिस्तान की तरफ वाले बलूचिस्तान के भी हैं. 


दशकों की उपेक्षा और दमन के कारण ईरान में भी बगावत शुरू हो गया. आगे जुनदुल्ला और जैश-अल अदल जैसे सुन्नी बलूची आतंकी समूह खड़े हुए. इन्होंने पाकिस्तान में जाकर शरण ली. ईरान और पाकिस्तान दोनों तरफ के लोग एक दूसरों की मदद करते हैं और दोनों तरह के सीमावर्ती इलाके आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गई. आज बलूच आतंकवाद दोनों देशों की साझा समस्या बन चुका है. 


बलूचिस्तान का ग्वाद पोर्ट और ईरान का चाबहार पोर्ट 'सिस्टर पोर्ट्स' कहे जाते हैं. दोनों देश इसे खतरे में नहीं डाल सकते हैं. ग्वादर को काउंटर करने के लिए भारत और ईरान मिलकर चाबहार का विकास कर रहे हैं. इजरायल-हमास युद्ध के चलते इजरायल के खिलाफ अरब वर्ल्ड एकजुट दिख रहा है. गाजा के सपोर्ट में ईरान समर्थित हूती विद्रोही लाल सागर में जहाजों को निशाना बना रहे हैं. अब ये तनाव बढ़ता दिख रहा है. (फोटो- lexica AI)