PM Modi In US: पहले रूस, फिर यूक्रेन और अब अमेरिका... पीएम मोदी की इन यात्राओं के क्या हैं मायने? क्या होती है बहुमुखी कूटनीति
PM Modi US Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया कूटनीतिक गतिविधियों ने भारत को ग्लोबल अटेंशन के केंद्र में ला दिया है. पीएम मोदी की इटली में जी-7 शिखर सम्मेलन में उपस्थिति, उसके बाद रूस और यूक्रेन की यात्रा और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा, साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मास्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बर्लिन यात्रा ने कूटनीतिक बढ़त हासिल की है.
PM Modi Multifaceted Diplomacy: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरे कार्यकाल के शुरुआती कुछ महीने में विदेश नीति के मोर्चे पर भी बड़ा कदम उठाया है. उनकी हालिया कूटनीतिक गतिविधियों ने एक बार फिर से भारत को वैश्विक ध्यान के केंद्र में ला दिया है. नई सरकार बनने के बाद इटली में जी7 शिखर सम्मेलन में उनकी मौजूदगी, उसके बाद युद्धग्रस्त रूस और यूक्रेन की यात्रा और फिर अब संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा से दुनिया भर में भारत का बढ़ता प्रभाव दिख रहा है.
पीएम मोदी की यात्रा के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मास्को में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की बर्लिन यात्रा भी युद्ध में फंसे दो देशों के बीच संवाद को सुगम बनाने और संभावित रूप से मध्यस्थता करने में भारत की बढ़ती भूमिका का संकेत देती है. इसके साथ ही पीएम मोदी की बहुआयामी कूटनीति देखकर दुनिया के कई देश दंग हैं.
पीएम मोदी की बहुआयामी कूटनीति का करिश्मा
रूस-यूक्रेन संघर्ष की पृष्ठभूमि में, पीएम मोदी को इस वर्ष की शुरुआत में जी7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. इस मंच पर उनकी लगातार पांचवीं उपस्थिति ने भारत के बढ़ते आर्थिक प्रभाव, अंतरराष्ट्रीय नीति और चर्चाओं को आकार देने में बढ़ते महत्व को दिखाया. विशेष रूप से जब रूस और यूक्रेन यूद्ध के प्रभाव वैश्विक अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा तक को प्रभावित कर रहे हैं. ऐसे समय में उन्होंने ऐतिहासिक रूप से रूस के कार्यों की बड़े पैमाने पर निंदा करने वाले पश्चिमी शक्तियों के वर्चस्व के बीच यह करिश्मा किया.
चीन की 'गंदी' चालों के चलते पश्चिम के लिए भी महत्वपूर्ण समय
यह पश्चिम के लिए भी एक महत्वपूर्ण समय है क्योंकि वह चीन को आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है. भारत को जी7 देशों से बहुत लाभ होगा जो अपने आर्थिक संबंधों को चीन से हटाकर मित्र देशों की ओर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन, आर्थिक स्थिरता, चीन और रूस जैसी साझा चिंताओं पर सहयोग करने की भारत की इच्छा और इन सबके बावजूद स्वायत्तता की अपनी अनूठी स्थिति को बनाए रखना विश्व मंच पर भारत की नई और अहम भूमिका का सबूत है.
हालांकि, पीएम मोदी की रूस और यूक्रेन की बाद की यात्राओं ने वास्तव में उनके कूटनीतिक दृष्टिकोण को बड़े पैमाने पर प्रदर्शित किया. दोनों देशों के बीच चल रहे सैनिक संघर्ष की पृष्ठभूमि में की गई ये यात्राएं भारत के लिए एक नाजुक और संतुलन साधने वाली नीति को प्रस्तुत करती हैं. क्योंकि भारत का दोनों देशों के साथ लंबे समय से द्विपक्षीय संबंध है.
युद्ध के बाद मॉस्को जाने और पुतिन से मिलने वाले दूसरे विश्व नेता
पीएम मोदी ने मॉस्को में रूस के साथ रक्षा, व्यापार और ऊर्जा में दशकों के सहयोग पर आधारित संबंध और अपनी ऐतिहासिक साझेदारी के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की. वहीं, संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए भी पीएम मोदी ने सीधे तौर पर रूस के कार्यों की आलोचना करने से परहेज किया. पीएम मोदी युद्ध के बाद से मॉस्को जाने और पुतिन से मिलने वाले शी जिनपिंग के बाद दूसरे विश्व नेता भी बन गए.
यूक्रेन की संप्रभुता और अखंडता के लिए भारत का समर्थन
इसके उलट, कीव की अपनी यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए भारत के अटूट समर्थन को जाहिर किया. उन्होंने हिंसा की निंदा की और यूक्रेनी लोगों को मानवीय सहायता की पेशकश की. साथ ही दुश्मनी को फौरन समाप्त करने की जरूरतों पर जोर दिया. पीएम मोदी की यह यात्रा यूक्रेन की स्वतंत्रता के बाद से किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी. इसने सैन्य आक्रमण का सामना कर रहे राष्ट्र के साथ भारत की एकजुटता, अंतरराष्ट्रीय कानून और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों को बनाए रखने की प्रतिबद्धता का संकेत दिया.
पहली नजर में विरोधाभासी लग सकते हैं भारतीय दृष्टिकोण
कुछ ही समय के अंतराल पर दिखे भारत के ये अलग-अलग दृष्टिकोण पहली नजर में विरोधाभासी लग सकते हैं. हालांकि, वे दोनों पक्षों के साथ भारत के संबंधों को बनाए रखने के मकसद से एक सावधानीपूर्वक कैलिब्रेटेड कूटनीतिक रणनीति को दर्शाते हैं. साथ ही साथ शांति और स्थिरता की वकालत भी करते हैं. रूस और यूक्रेन दोनों के साथ जुड़कर पीएम मोदी ने अलग-अलग देशों के बीच पुल के रूप में काम करने और संभावित रूप से संवाद को सुविधाजनक बनाने की भारत की इच्छा को प्रदर्शित किया.
क्या है भारत की बहुमुखी कूटनीति?
भारत का दृष्टिकोण ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के अपने दीर्घकालिक विदेश नीति सिद्धांत पर आधारित है, जो स्वतंत्र निर्णय लेने को प्राथमिकता देता है और किसी विशेष शक्ति समूह के साथ गठबंधन से बचता है. यह दृष्टिकोण व्यावहारिक है और भारत के हितों को पहले रखता है. इसे ही भारत की बहुमुखी कूटनीति कहते हैं.
भारत का नाजुक और संतुलन बनाने का शानदार कदम
भारत की विदेश नीति का 'रणनीतिक स्वायत्तता' सिद्धांत लंबे समय से उसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों की नींव रहा है. यह दृष्टिकोण, राष्ट्र के औपनिवेशिक अनुभव और शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता में निहित है, जो विदेशी मामलों में स्वतंत्र निर्णय लेने को प्राथमिकता देता है, महाशक्तियों की प्रतिद्वंद्विता में उलझने से बचता है और वैचारिक होने के बजाय राष्ट्रीय हित के आधार पर साझेदारी बनाने की क्षमता को बनाए रखता है. इसने भारत को विभिन्न देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने की इजाजत दी है.
इस नाजुक संतुलन का एक प्रमुख उदाहरण यह है कि रूस और पश्चिम, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों के साथ भारत के संबंध हैं. ऐतिहासिक रूप से, भारत ने सोवियत काल से ही रूस के साथ घनिष्ठ रणनीतिक साझेदारी कायम रखा है. इस साझेदारी को मजबूत रक्षा संबंधों प्रदर्शित किया गया है, जिसमें रूस भारत को सैन्य उपकरणों का एक प्रमुख सप्लायर है.
पश्चिम के साथ अपने जुड़ाव को गहरा करने की भी कोशिश
हालांकि, हाल के दशकों में, भारत ने अपने आर्थिक विकास और सुरक्षा हितों के लिए इन संबंधों के महत्व को पहचानते हुए, पश्चिम के साथ अपने जुड़ाव को गहरा करने की भी कोशिश की है. विशेष रूप से अमेरिका भारत के लिए एक प्रमुख भागीदार के रूप में उभरा है, जिसके साथ रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ रहा है. हाल ही में, दोनों देशों ने आपूर्ति सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो दोनों देशों के लिए एक-दूसरे से महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करेगा. इससे अप्रत्याशित संकटों के दौरान भी एक विश्वसनीय सप्लाई सीरीज सुनिश्चित होगी.
रूस-यूक्रेन संघर्ष के बीच इस नाजुक संतुलन को बनाए रखने की भारत की क्षमता पर महत्वपूर्ण दबाव डाला है. संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी शक्तियों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. सक्रिय रूप से रूस को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश की है.
रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत की व्यवहारिक प्रतिक्रिया
रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रति भारत की प्रतिक्रिया एक सूक्ष्म और व्यावहारिक दृष्टिकोण की विशेषताओं से भरी रही है. इसने रूस के कार्यों की स्पष्ट रूप से निंदा करने से परहेज किया है. आक्रमण की आलोचना करने वाले संयुक्त राष्ट्र के वोटों से परहेज किया है और मास्को के साथ अपने आर्थिक संबंधों को बनाए रखा है. इसमें रियायती रूसी तेल की खरीद भी शामिल है. इस रुख की कुछ पश्चिमी देशों ने आलोचना की है और भारत से रूस के खिलाफ अधिक सशक्त रुख अपनाने का आग्रह किया है. हालांकि, भारत ने अपनी स्थिति का बचाव करते हुए तर्क दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हित में काम कर रहा है और संघर्ष के शांतिपूर्ण समाधान के लिए संवाद और कूटनीति ही एकमात्र रास्ता है.
वैश्विक परिदृश्य में बहुध्रुवीयता की ओर बड़ा बदलाव
भारत का दृष्टिकोण वैश्विक परिदृश्य में बहुध्रुवीयता की ओर व्यापक बदलाव को दर्शाता है. चीन के उदय और रूस के पुनरुत्थान ने शीत युद्ध के बाद के युग की विशेषता वाली अमेरिका की एकध्रुवीयता को चुनौती दी है. इस विकसित विश्व व्यवस्था में, भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है और किसी एक शक्ति पर अत्यधिक निर्भर होने से बचना भी चाहता है. हालांकि, रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता चुनौतियों से रहित नहीं है. रूस के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने के लिए पश्चिमी शक्तियों का दबाव जारी रहने की संभावना है.
अजीत डोभाल और एस जयशंकर की कूटनीतिक पहल
रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान खोजने में भारत की सक्रिय भागीदारी पीएम मोदी की प्रत्यक्ष भागीदारी से कहीं आगे तक फैली हुई है. मॉस्को में पुतिन के साथ डोभाल की बैठक और जयशंकर की बर्लिन यात्रा संघर्ष के समय में भारत की अधिक सक्रिय और स्पष्ट भूमिका को उजागर करती है. यह इस बात का भी संकेत है कि भारत को शांति मध्यस्थ के रूप में गंभीरता से देखा जा रहा है. यह एक ऐसा दर्जा है जिसे अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंच पर गंभीर महत्व वाले देशों को दिया जाता है.
मास्को में पुतिन के साथ डोभाल की बैठक में तनाव कम करने और रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत को फिर से शुरू करने के संभावित रास्ते तलाशने पर ध्यान केंद्रित किया गया. यह चर्चा युद्धविराम और सार्थक बातचीत का रास्ता खोलने वाले साझा आधार की पहचान करने और भरोसे की बहाली के उपायों की खोज करने पर केंद्रित थी.
एस जयशंकर की बर्लिन यात्रा का मकसद क्या था?
दूसरी ओर, जयशंकर की बर्लिन यात्रा का मकसद रूस-यूक्रेन संघर्ष के व्यापक निहितार्थों पर यूरोपीय नेताओं के साथ बातचीत करना और शांतिपूर्ण समाधान को सुविधाजनक बनाने में भारत की संभावित भूमिका का पता लगाना था. विदेश मंत्री एनालेना बैरबॉक सहित जर्मन अधिकारियों के साथ अपनी बैठकों के दौरान, जयशंकर ने एक ऐसे कूटनीतिक समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया जो इसमें शामिल सभी पक्षों की सुरक्षा चिंताओं की बात करता हो. उन्होंने संघर्ष के मानवीय प्रभाव, विशेष रूप से विकासशील देशों पर भारत की बढ़ती चिंता को भी उजागर किया, जो वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावटों के चलते फूड आइटम्स और ऊर्जा की कमी का सामना कर रहे हैं.
भारत के मौजूदा कूटनीतिक प्रयासों का चार सूत्री सिद्धांत
भारत के मौजूदा कूटनीतिक प्रयास चार सूत्री सिद्धांत से निर्देशित होते हैं, जिसे जयशंकर ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर व्यक्त किया है. यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है:
1. यह युद्ध का युग नहीं है: भारत का मानना है कि 21वीं सदी में युद्ध अंतरराष्ट्रीय विवादों का व्यवहारिक समाधान नहीं है और बातचीत तथा कूटनीति ही स्थायी शांति का एकमात्र रास्ता है.
2. युद्ध के मैदान में कोई समाधान नहीं है: भारत मानता है कि सैन्य समाधान शायद ही कभी स्थायी शांति प्राप्त कर सकते हैं और संघर्ष के अंतर्निहित कारणों को दूर करने के लिए बातचीत के माध्यम से समाधान आवश्यक है.
3. रूस को बातचीत के लिए मेज पर होना चाहिए: भारत स्वीकार करता है कि रूस संघर्ष में एक प्रमुख हितधारक है और किसी भी शांति प्रक्रिया में इसकी भागीदारी एक स्थायी समाधान के लिए आवश्यक है.
4. भारत चिंतित है और समाधान खोजने के लिए प्रतिबद्ध है: भारत संघर्ष के मानवीय परिणामों के बारे में गहराई से चिंतित है और सभी पक्षों की वैध सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करने वाले शांतिपूर्ण समाधान की तलाश में सक्रिय रूप से लगा हुआ है.
भारत की कूटनीति में दुनिया के लिए भी सबक
रूस-यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में भारत की कूटनीतिक भागीदारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए कई सबक देती है. सबसे पहले, भारत की विविध शक्तियों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने की क्षमता, यहां तक कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर विपरीत विचारों वाली शक्तियों के साथ भी, एक जटिल और बहुध्रुवीय दुनिया में आगे बढ़ने की चाह रखने वाले अन्य देशों के लिए एक मॉडल प्रदान करती है.
दूसरे, एक लंबे और अड़ियल संघर्ष के बावजूद भारत का संवाद और कूटनीति पर जोर, शांतिपूर्ण समाधान के महत्व और बढ़ते तनाव से बचने की आवश्यकता को बतलाता है. तीसरे, न केवल अपने क्षेत्र में, बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए भारत की प्रतिबद्धता, एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में इसकी बढ़ती भूमिका को प्रदर्शित करती है.
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वैचारिक विभाजन के बजाय राष्ट्रीय हित के आधार पर साझेदारी
भारत की अनूठी स्थिति उसे संघर्ष में मध्यस्थता करने और संभावित रूप से शांतिपूर्ण समाधान को सुविधाजनक बनाने में रचनात्मक भूमिका निभाने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है. रूस और यूक्रेन, साथ ही पश्चिमी शक्तियों के साथ जुड़ने की इसकी क्षमता, इसे विरोधी खिलाड़ियों के बीच एक पुल के रूप में काम करने और संभावित रूप से संवाद और समझ को बढ़ावा देने की इजाजत देती है. रिश्तों का यह जटिल जाल भारत की रणनीतिक स्वायत्तता की दीर्घकालिक नीति, गुटनिरपेक्षता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता और वैचारिक विभाजन के बजाय राष्ट्रीय हित के आधार पर साझेदारी बनाने की उसकी क्षमता से उपजा है.
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सभी पक्षों के साथ संचार और सहयोग के लिए भारत का खुला चैनल
दुनिया के कई देशों को संघर्ष में पक्ष चुनने के लिए मजबूर किया गया है. उन्होंने या तो रूस या पश्चिम के साथ गठबंधन किया है. वहीं, भारत ने सभी पक्षों के साथ संचार और सहयोग के खुले चैनल बनाए रखते हुए इस कूटनीतिक तंग रस्सी को चतुराई से चलकर पार किया है. जैसे-जैसे संघर्ष आगे बढ़ता जा रहा है, भारत की अनूठी स्थिति और उसके कूटनीतिक प्रयास इस क्षेत्र और दुनिया के लिए अधिक शांतिपूर्ण और स्थिर भविष्य की दिशा में मार्ग को आकार देने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.
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