US Elections 2024: अमेरिकी चुनाव का सबसे बड़ा सवाल-क्या डोनाल्ड ट्रंप फासीवादी हैं?
US Presidential Election 2024: अमेरिका में पांच नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव हैं. डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच बेहद कड़ा मुकाबला माना जा रहा है.
Donald Trump Vs Kamala Harris: क्या डोनाल्ड ट्रंप फासीवादी हैं? ट्रंप के अधीन काम कर चुके ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के पूर्व अध्यक्ष जनरल मार्क मिल्ली ऐसा मानते हैं. वह चेतावनी देते हुए कहते हैं कि ट्रंप ‘‘पूरी तरह से फासीवादी हैं.’’ ट्रंप के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जॉन केली भी इससे सहमति जताते हैं. इस साल के राष्ट्रपति चुनाव में उनकी प्रतिद्वंद्वी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भी इस बात से सहमत हैं. लेकिन इतिहास पर पकड़ रखने वाले राजनीतिक टिप्पणीकार पुख्ता तौर पर ऐसा नहीं मानते.
द गार्डियन में लिखते हुए सिडनी ब्लूमेनथल ने ट्रंप को ‘हिटलरवादी’ और उनकी जनसभाओं को ‘नाजीवादी’ कहा लेकिन उन्हें फासीवादी कहने से बचते रहे. न्यू रिपब्लिक के माइकल टॉमस्की इस संदेह वाली स्थिति को समझते हैं, लेकिन वे ‘फासीवादी’ और सिर्फ ‘फासीवादी’ के बीच अंतर पर बहस करने में समय बर्बाद करने से ऊब गए हैं. टॉमस्की लिखते हैं, ‘‘वह काफी करीब है, और बेहतर होगा कि हम लड़ें’’.
मैं इस तर्क को समझता हूं. यही कारण है कि हैरिस अमेरिकी जनता को 911 कॉल भेजने के मामले में ट्रंप का वर्णन करने के लिए ‘फासीवादी’ शब्द का उपयोग करती हैं.’’ लेकिन एक समस्या है. मैंने पिछले छह साल अमेरिका में दक्षिणपंथी, सत्तावादी राजनीतिक संचार पर शोध करते हुए बिताए हैं. मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इस तरह के लेबल कैसे गलत साबित हो सकते हैं. उन्हें बहुत आसानी से उदारवादी उन्माद की तरह दिखाया जा सकता है, जो सीधे दक्षिणपंथियों के हाथों में खेल रहा है.
नव अधिनायकवादी
पुतिन के लिए ट्रंप की प्रशंसा सार्वजनिक है. स्टीव बैनन जैसे ट्रंप के साथ प्रभावशाली दक्षिणपंथी विचारकों के लिए पुतिन एक खाका प्रदान करते हैं कि नव अधिनायकवाद कैसे काम करता है. पुतिन जैसे अधिनायकवादी राज्य के माध्यम से शासन करते हैं, जनता के माध्यम से नहीं, क्योंकि, जैसा कि सामाजिक मनोवैज्ञानिक बॉब अल्टेमेयर बताते हैं, वे अंततः जनसंख्या के एक छोटे से अल्पसंख्यक का प्रतिनिधित्व करते हैं.
सैन्य तानाशाही सशस्त्र बलों के माध्यम से शासन करती है. 20वीं सदी के यूरोप के फासीवादी शासन अंततः पुलिस राज्य थे. वे अर्धसैनिक के घातक दस्तों को गुप्त पुलिस (गेस्टापो की तरह) और राज्य सुरक्षा (नाजी जर्मनी में एसएस) में परिवर्तित करने पर निर्भर थे. हालांकि, नव अधिनायकवादी, प्रशासनिक सेवा को अपनी निजी राजनीतिक मशीनों में परिवर्तित करके शासन करते हैं.
यही कारण है कि ट्रंप ‘डीप स्टेट’ के प्रति आशक्त हैं, जिससे उनका तात्पर्य उस तरीके से है जिसमें लोकतांत्रिक संस्थाओं में सिविल सेवकों द्वारा संरक्षित कानूनी सुरक्षा उपाय अंतर्निहित हैं, जो संभावित रूप से कार्यकारी आदेशों को विफल कर सकते हैं. नव अधिनायकवादी रणनीति यह है कि प्रशासन में प्रमुख पदों पर राजनीतिक वफादारों के एक समूह को नियुक्त किया जाए, जो संस्थागत जांच को दरकिनार कर सकें. लेकिन यह कोई आसान काम नहीं है.
यदि ट्रंप निर्वाचित होते हैं, तो उन्होंने हजारों गैर-राजनीतिक सिविल सेवा कर्मचारियों को निकालकर, ‘‘डीप स्टेट को कुचलने’ का संकल्प लिया है. इसके तहत उन्होंने एक ‘सत्य और सुलह आयोग’ स्थापित करने का संकल्प लिया है, जिसका उद्देश्य उन लोगों को दंडित करना है, जिन्होंने अतीत में उनका विरोध किया था. ट्रंप अपने पूरे राजनीतिक करियर में इस नयी अधिनायकवादी रणनीति का अनुसरण करते रहे हैं. अधिनायकवादी शासन की नींव रखने के लिए वे ये तीन कदम उठा रहे हैं:
1) चुनावी शुचिता को खंडित करने का प्रयास
नव अधिनायकवाद की पहली कुंजी: चुनावी शुचिता को खंडित करके लोकतंत्र को नष्ट करना. यहां अग्नि परीक्षा क्या होगी? अधिनायकवादी तब चुनाव के नतीजों को स्वीकार नहीं करते जब विपक्ष जीत जाता है. जैसा कि ट्रंप ने बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा है, ‘‘मैं चुनाव को नकारने वाला एक बहुत ही गर्वित व्यक्ति हूँ’’. इस संबंध में ट्रंप का पहला कदम रिपब्लिकन पार्टी पर कब्जा करना था. इसके लिए उन्होंने चुनाव से इनकार करने का सहारा लिया, साथ ही अपने विरोधियों को हाशिए पर धकेल दिया.
ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी अब एक अल्पसंख्यक पार्टी है, जो श्वेत लोगों की शिकायतों, आप्रवासियों के प्रति आक्रोश तथा इस लोकतंत्र विरोधी विचार पर केंद्रित है. उसका मानना नहीं है कि देश को एक कंपनी की तरह चलाया जाना चाहिए. अल्पसंख्यक पार्टी के रूप में सरकार बनाने की स्थिति में पहुंचने की इसकी एकमात्र उम्मीद अपने विरोधियों के वोट को दबाने की कोशिश करना है. ऐसा करने के लिए, ट्रंप समर्थक रिपब्लिकन राज्यों ने मतदान को और अधिक कठिन बनाने के लिए 2020 से कई कानून पारित किए हैं.
इन राज्यों ने भी आक्रामक तरीके से लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए हैं. अकेले टेक्सास ने 2021 से अब तक 10 लाख मतदाताओं को अपनी सूची से हटाया है, जिनमें से केवल 6,500 को गैर-नागरिक माना गया है. अगर ट्रंप जीतते हैं, तो वे लोगों के लिए मतदान करना और भी कठिन बना देंगे. नागरिक अधिकार समूहों को डर है कि वे जनगणना में नागरिकता संबंधी प्रश्न जोड़ सकते हैं, न्याय विभाग का उपयोग करके मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर सफाई कर सकते हैं और चुनाव अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक जांच शुरू कर सकते हैं.
2) विधायी और न्यायिक शाखाओं को कमज़ोर करना नए अधिनायकवाद की दूसरी कुंजी है
विधायी शाखा द्वारा सरकार को नियंत्रित और संतुलित करने के कार्य को दरकिनार करना. यहां लक्ष्य कार्यकारी आदेश द्वारा शासन करना या विधायी बहुमत के माध्यम से शासन करना है. नव अधिनायकवादी अक्सर कार्यकारी आदेशों के माध्यम से शासन करते हैं, जिसमें आपातकालीन शक्तियों का उपयोग भी शामिल है. उदाहरण के लिए, ट्रंप ने एक परिदृश्य की परिकल्पना की है जिसमें रिपब्लिकन कांग्रेस आपातकालीन शक्तियों को लागू कर सकती है ताकि राष्ट्रपति को राज्य के गवर्नर के अपने अभियोजकों को बर्खास्त करने और कानून प्रवर्तन के लिए नेशनल गार्ड का उपयोग करने के अधिकार को खत्म करने का अधिकार मिल सके.
इस उद्देश्य का क्रियान्वयन न्यायपालिका की मिलीभगत सहित कई कारकों पर निर्भर करेगा. यही कारण है कि नव अधिनायकवादी न्यायपालिका को वफादारों से भरने का भी प्रयास करते हैं.
अमेरिका का ये शख्स कैनेडियन वाइफ संग शिफ्ट हो गया भारत, देखें फिर कैसे बदल गई इनकी दुनिया
3) राजनीतिक विरोधियों पर हमला
इससे नव अधिनायकवाद का तीसरा स्तंभ उभरता है: राजनीतिक विपक्ष को खत्म करना और असहमति का दमन करना. डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख लोगों सहित अपने विरोधियों की जांच करने और उन पर मुकदमा चलाने की ट्रंप की धमकियों को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए. ‘अंदरूनी विरोधियों’ को निशाना बनाने के उनके आह्वान के सीधे निशाने पर वे लोग थे जिन्हें वे ‘कट्टरपंथी वामपंथी उन्मादी’ मानते हैं.
संवाददाताओं और समाचार मीडिया को भी निशाना बनाया जा सकता है. उदाहरण के लिए ट्रंप का यह कथन कि राष्ट्रीय नेटवर्क के प्रसारण लाइसेंस रद्द कर दिए जाने चाहिए. इसे उनके द्वारा निर्वाचित होने पर संघीय नियामक एजेंसियों को खत्म करने के वादों के संदर्भ में समझा जाना चाहिए. यह बात मायने रखती है, क्योंकि नव अधिनायकवादियों के लिए अपनी शक्ति को मजबूत करने का अगला कदम असहमति को दबाना है. ट्रंप ने अपराधियों को निशाना बनाने और अवैध आव्रजन को रोकने के लिए नागरिक संदर्भों में सेना का उपयोग करने का प्रस्ताव दिया है. उन्होंने कथित तौर पर यह भी सवाल उठाया है कि सेना प्रदर्शनकारियों को ‘‘सिर्फ गोली क्यों नहीं मार सकती’’. यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह फासीवाद से किस प्रकार भिन्न है, क्योंकि यह ट्रंप की चुनावी समर्थन को बनाए रखने की क्षमता मात्र आधार है.
हिटलर और इटली के बेनितो मुसोलिनी जैसे पारंपरिक फासीवाद और तानाशाह सड़कों पर होने वाली लड़ाई, अर्धसैनिक आंदोलनों पर आधारित थे, जो विपक्ष को डराने और कुचलने के लिए हिंसा का इस्तेमाल करते थे. आधुनिक दौर में ये प्राउड ब्वॉयज और ओथ कीपर्स जैसी दक्षिणपंथी मिलिशिया (निजी सेना) है.
ट्रंप इस खेमे के करीब नजर आते हैं. लेकिन बैनन जैसे दक्षिणपंथी लोग समझते हैं कि स्वस्तिक झंडे और अर्धसैनिक वर्दी एक राजनीतिक दायित्व हैं. उनकी प्राथमिकता नव अधिनायकवाद की है, जो खुले तौर पर अधिनायकवादी शासन स्थापित करने के बजाय, लोकतंत्र को दिखावटी चुनावों तक सीमित करके दक्षिणपंथी उग्रवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्षम है.
इस प्रकार, ट्रंप प्राउड ब्वॉयज को ‘खड़े रहने’ के लिए कहकर ‘फासीवादी’ होने के आरोपों से बच सकते हैं, जबकि छह जनवरी के कैपिटल हिल पर हमले के बारे में अस्पष्टता का आवरण धारण कर सकते हैं. वह खुद को उस हिंसा से दूर रख सकते हैं जो पारंपरिक फासीवाद की याद दिलाती है
अब समय आ गया है कि हम चीज़ों को उनके असली नाम से पुकारें. ट्रंप में एक नव अधिनायकवादी की लोकतंत्र विरोधी प्रवृत्तियां हैं. जैसा कि उनके विरोधी बताते हैं, ऐसा लगता है कि अगर वे दूसरी बार चुने जाते हैं तो वे अपने बयानों को क्रियान्वित करेंगे.
यहां दो कारण दिए गए हैं कि क्यों ट्रंप को वास्तव में वह कहना महत्वपूर्ण है जो वह हैं.
ट्रंप को फासीवादी कहना और फिर तुरंत यह कहना कि, ‘‘या काफी हद तक ऐसा ही है’’, सीधे तौर पर दक्षिणपंथियों के हाथों में खेलता है. वे कह सकते हैं, ‘‘देखा?’’ ‘‘जब भी कोई उदारवादी सहमति से परे जाता है तो उसे फासीवादी करार दे दिया जाता है. इस तरह राजनीतिक सही के जरिये असहमति को दबा दिया जाता है.’’
मेरे विचार में, ट्रंप फासीवादी नहीं हैं. बल्कि, वे एक ‘‘नव अधिनायकवाद’’ का हिस्सा हैं जो लोकतंत्र को अंदर से खत्म कर देता है और अर्धसैनिक साधनों के बजाय प्रशासनिक साधनों के माध्यम से सत्ता को मजबूत करता है.
क्यों ‘फासीवाद’ का तमगा सहायक नहीं
नव अधिनायकवाद का यह ब्रांड स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है क्योंकि इसका अभी तक कोई नाम नहीं है. यह कुछ अलग दिखता है. उदाहरण के लिए दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद जो उदारवाद विरोधी है, लेकिन अभी तक लोकतंत्र विरोधी नहीं है. और फिर अचानक यह खुद को लोकतंत्र विरोधी अतिवाद के रूप में दिखाता है, जैसा कि ट्रंप ने 2020 के चुनाव परिणाम को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कैपिटल हिल्स पर लोगों को धावा बोलने को प्रोत्साहित किया.
इस पल ने ट्रंप को एक नव अधिनायकवादी के रूप में स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया. इस बारे में अतिरिक्त बहस कि क्या ट्रंप एडोल्फ हिटलर की तरह हैं, व्यर्थ होने का जोखिम है. लेकिन समस्या यह है कि फासीवाद अब लोकतंत्र विरोधी चरमपंथ का एकमात्र नाम है. सभी फासीवादी सत्तावादी होते हैं. लेकिन सभी सत्तावादी फासीवादी नहीं होते. यह समझना महत्वपूर्ण है कि सत्तावाद के अन्य प्रकार भी हैं - और वे कैसे भिन्न हैं.
यह सिर्फ ट्रंप को अमेरिकी लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश करने से रोकने के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है. यह ट्रंप की नकल करने वालों को रोकने के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो अब दूसरे लोकतंत्रों में उभरेंगे. अगर अभी भी उनके लिए ‘‘फासीवादी’ के अलावा कोई नाम नहीं है, तो वे भी अस्पष्टता के बीच ही पनपेंगे.
नव अधिनायकवाद क्या है?
मेरा सुझाव है कि हम इस बात पर ध्यान केंद्रित करें कि ट्रंप वास्तव में क्या हैं? एक लोकतंत्र विरोधी,‘नव अधिनायकवादी’’ - और समझें कि इसका क्या अर्थ है और कैसे वह दक्षिणपंथी लोकलुभावनवाद का उपयोग करके व्यापक समर्थन प्राप्त कर रहे हैं. नव अधिनायकवादी के लिए जरूरी नहीं कि वह किसी देश की संस्थाओं पर हमला करे, उदाहरण के लिए, चुनावों को खत्म कर दे. बल्कि, वे लोकतंत्र को अंदर से खोखला कर देते हैं, ताकि मुखौटा की तरह एक-दलीय राज्य की स्थापना हो.
आज हमारे सामने इस प्रकार के शासकों के कई उदाहरण हैं: तुर्किये के रसप तैयब एर्दोआन, हंगरी के विक्टर ओरबान, बेलारूस के अलेक्जेंडर लुकाशेंको, ट्यूनीशिया के कैस सैयद और बेशक नव अधिनायकवादियों का सबसे चर्चित चेहरा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन हैं.
(लेखक: जियोफ एम. बाउचर, साहित्य अध्ययन में एसोसिएट प्रोफेसर, डीकिन विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया)
(साभार: द कन्वरसेशन)