Census in India: भारत की जनगणना 2025 में शुरू होने वाली है. COVID-19 महामारी के कारण हुई देरी के चलते इसकी तैयारियों में समय लगा. जनगणना का काम पूरा होने में साल भर का वक्त लगेगा. ये काम 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है. उसके बाद देश में क्या कुछ बदलाव आएगा, आइए बताते हैं.
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India Population Census: देश में लंबे समय से जनगणना (census) को लेकर सुगबुगाहट थी. लेकिन अब साफ हो गया है कि यह 2025 में शुरू होकर 2026 में खत्म होगी. जनगणना क्यों कराई जाती है? किताबों में हम सबने पढ़ा है. बहुत लोगों को याद होगा तो कुछ भूल भी गए होंगे. ऐसे में आपको बताते हैं कि जनगणना न होने से कौन-कौन से काम रुके थे और आबादी की गिनती पूर होने के बाद देश में क्या बदलाव आएगा और आप पर उसका क्या असर पड़ेगा.
Census in India- जनगणना
मोदी सरकार की क्रोनोलॉजी समझें तो जनगणना के बाद आबादी के हिसाब लोगों की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने का काम होगा. पीएम मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद राजनीतिक सुधारों और सियासत में युवाओं की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. जनगणना के बाद देश में परिसीमन का काम शुरू होगा. परिसीमन के जरिए आबादी के हिसाब से लोकसभा सीटों की संख्या बढ़ेगी. कुछ राज्यों की विधानसभा सीटों में भी इजाफा होने का अनुमान है. ये काम 2028 तक खत्म होगा. जिससे पूरे भारत में राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रभावित होगा.
सांसदों की संख्या बढ़ेगी, आपको क्या फायदा होगा?
नई संसद का निर्माण भी देश की आबादी को हिसाब से राजनीतिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने के मकसद से हुआ है. पुराने भवन की तुलना में नई बिल्डिंग में सांसदों के बैठने के लिए करीब 150 फीसदी ज्यादा सीटें बनाई गई हैं. पुरानी लोकसभा में अधिकतम 552 व्यक्ति बैठ सकते हैं. नए लोकसभा भवन में 888 सीटों की क्षमता है. पुराने राज्यसभा भवन में 250 सदस्यों के बैठने की जगह है, वहीं नए राज्यसभा हॉल की क्षमता को बढ़ाकर 384 किया गया है. नए संसद भवन की संयुक्त बैठक के दौरान वहां 1272 सांसद बैठ सकेंगे.
पहले 593 सांसद 140 करोड़ लोगों के जीवन की दशा और दिशा तय करते थे. अब ये काम दोगुने से ज्यादा यानी करीब 1272 सांसद करेंगे. लोकसभा सांसदों की संख्या बढ़ेगी तो उस हिसाब से आप कम भीड़ में अपनी जरूरतों या मांग के बारे में अपने सांसद को बता सकेंगे. वहीं ज्यादा सांसद होने से ज्यादा सांसद निधि इश्यू होगी. जनता के काम जल्दी पूरे हुआ करेंगे.
नारी शक्ति वंदन अधिनियम फिलहाल लागू नहीं…महिलाओं को मजबूती मिलेगी?
महिला आरक्षण बिल पास हो चुका है. जनगणना होने के बाद महिलाओं को उनकी आबादी के हिसाब से संसद और विधानसभाओं में सही प्रतिनिधित्व मिलेगा. उनके लिए नौकरियों में अवसर बढ़ेंगे. महिला आरक्षण विधेयक हुआ था जिसका नाम था नारी शक्ति वंदन अधिनियम (Nari Shakti Vandan Adhiniyam). संविधान में हुए 106वें संशोधन में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक तिहाई सीटें आरक्षित कर दी गईं थीं. नारी शक्ति वंदन अधिनियम के मुताबिक, महिला आरक्षण कानून अब आगे होने वाली जनगणना के बाद ही लागू होगा. आरक्षण लागू करने के लिए नए सिरे से परिसीमन होगा और इसी के आधार पर ही महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित की जाएंगी. साथ ही, मौजूदा बिल में महिला आरक्षण को 15 साल (यानी कि आमतौर पर केवल तीन चुनाव) के लिए लागू किया गया है.
गृह मंत्रालय ने जनगणना का काम पूरा होने की जो डेडलाइन या टाइमलाइन बताई है, उस समयसीमा ने चुनावी प्रतिनिधित्व और जातिगत जनगणना के तथ्यों को लेकर विपक्षी दलों के चिंताएं बढ़ा दी हैं. सरकार और उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों और थिंक टैंक्स के अलावा तमाम हितधारकों की अपनी अलग सोच है. दूसरी ओर तमाम प्रभावी संगठन जनगणना के बाद पारदर्शी शासन व्यवस्था और संसाधनों के समुचित आवंटन यानी बंटवारे के लिए जनगणना का काम ईमानदारी से कराने की मांग कर रहे हैं. वो गणना में पारदर्शिता और सामुदायिक भागीदारी की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं.
जनगणना 2021 में होनी थी. लेकिन कोरोना महामारी के कारण काम टल गया. कोरोना में कई परिवार खत्म हो गए. पिछले चार साल में बहुत से लोगों की मौत हुई होगी. साल 2011 में हुई आखिर जनगणना में कई महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलावों का पता चला था. जिसके बाद ये काम जल्द से जल्द पूरा कराए जाने की मांग हो रही थी.
विशेषज्ञों ने बताया है कि उभरते सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने और सरकारी नीतियों को वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने के लिए समय पर डेटा संग्रह करना सबसे महत्वपूर्ण काम है. ऐसे में तमाम नागरिक समाज संगठनों ने जनगणना प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता के बारे में चिंता जताते हुए पारदर्शी व्यवस्था से इस काम को पूरा कराने की मांग कर रहे थे.
जनगणना प्रक्रिया और सामुदायिक भागीदारी
सामुदायिक सहभागिता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि डेटा संग्रह प्रक्रिया के दौरान भारत की हर आवाज को सुना जाना चाहिए. पारदर्शिता और समावेशिता से लोगों का विश्वास बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. इसके साथ ही ये सुनिश्चित होगा कि जनगणना भारत की विविध आबादी को सही और सार्थक रूप से दर्शाती है.
कांग्रेस की मांग
कांग्रेस ने केंद्र से कहा है कि जनगणना पर सर्वदलीय बैठक बुलाई जाए. क्योंकि- ‘दो मुद्दों पर स्पष्टता नहीं है. 1951 से हर जनगणना में होती आ रही SC-ST की गणना के अलावा क्या इस नई जनगणना में देश की सभी जातियों की विस्तृत गणना शामिल होगी? क्या इस जनगणना का इस्तेमाल लोकसभा में हर राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या निर्धारित करने के लिए किया जाएगा. क्या इससे उन राज्यों को नुक़सान होगा जो परिवार नियोजन में अग्रणी रहे हैं?’