Lachit Borphukan: असम का वो योद्धा, जिसके कहर से कांप उठी थी मुगलिया फौज; औरंगजेब भी रह गया था दंग
Battle of Saraighat: शिवाजी, महाराणा प्रताप के अलावा कुछ ही ऐसे योद्धा हैं, जिन्होंने मुगलों सेना की नाक में दम कर रखा था. लाचित बरफुकन भी इन्हीं योद्धाओं में शुमार हैं. इन्होंने ना सिर्फ मुगल साम्राज्य की चूलें हिला दीं बल्कि देश और क्षेत्रों को वह आकार दिया, जिसे आज हम जानते हैं.
Lachit Borphukan Profile: लाचित बरफुकन. ये नाम शायद ही आपने सुना हो. लेकिन इतिहास के पन्ने इस वीर की जांबाजी के किस्सों से भरे पड़े हैं. अब असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व शर्मा ने इसी वीर लाचित बरफुकन की मूर्ति के अनावरण के लिए पीएम मोदी को न्योता भेजा है. साथ ही शिवसागर मेडिकल कॉलेज की आधारशिला रखने और पीएमएवाई के तहत बने 5.5 लाख घरों के गृह प्रवेश समारोह में भाग लेने की गुजारिश की है. लेकिन आज बात करेंगे लाचित बरफुकन की.
शिवाजी, महाराणा प्रताप के अलावा कुछ ही ऐसे योद्धा हैं, जिन्होंने मुगलों सेना की नाक में दम कर रखा था. लाचित बरफुकन भी इन्हीं योद्धाओं में शुमार हैं. इन्होंने ना सिर्फ मुगल साम्राज्य की चूलें हिला दीं बल्कि देश और क्षेत्रों को वह आकार दिया, जिसे आज हम जानते हैं.
लाचित बरफुकन अहोम साम्राज्य की सेना के कमांडर थे, जिनकी लीडरशिप के आगे 1671 में हुए सरायघाट के युद्ध में मुगल पानी मांगते नजर आए. ये लड़ाई गुवाहाटी की ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर हुई थी. इस लड़ाई में औरंगजेब की तरफ से राम सिंह युद्ध करने आया था. लेकिन बरफुकन ने मुगलों को ऐसी शिकस्त दी, जिससे औरंगजेब तक हैरान रह गया.
24 नवंबर 1622 को जन्मे लाचित बरफुकन के पिता मोमाई तमुली बोरबारुआ अहोम सेना के कमांडर इन चीफ थे. अगर मध्यकालीन इतिहास देखें तो असम ने 600 साल तक अपनी जमीन को किसी के अधीन होने नहीं दिया. मध्य 13वीं शताब्दी से इस धरती पर शक्तिशाली अहोम राजाओं का राज था, जिन्होंने कई बार मुगलों के आक्रमण से अपनी भूमि को बचाया. असम के इतिहास में लाचित बरफुकन साहस और बहादुरी का दूसरा नाम हैं.
अहोम साम्राज्य पर तुर्की और दिल्ली सल्तनत के अफगानी बादशाहों ने कई बार आक्रमण किया. मुगल राज आने के बाद वे भी पीछे नहीं रहे. मुगल और अहोम के बीच 1615-16 तक जंग हुई. मुगलों का मकसद इस धरती पर अपनी पताका फहराना था.
असम के कई मुख्य हिस्सों पर 1228 से लेकर1826 यानी करीब 600 साल तक अहोम साम्राज्य का राज रहा. 1615 से लेकर 1639 तक दोनों के बीच कई लड़ाइयां लड़ी गईं. लेकिन जब मुगल असम में आगे बढ़ आए और कामरूप पर कब्ज़ा किया तो दोनों पक्षों के बीच संधि पर दस्तखत हुए.
लेकिन जैसे ही औरंगजेब ने सत्ता संभाली तो उसने मीर जुमला को असम पर मुगलिया ध्वज लहराने का आदेश दे डाला. 1663 में मुगल साम्राज्य के बंगाल सुबेदार मीर जुमला ने अहोम राजा को बुरी तरह शिकस्त दी, जिसके बाद घिलाजारीघाट की संधि पर दस्तखत हुए. मुगलों से मिली करारी हार से दुखी राजा जयध्वज सिंघा की मौत हो गई.
इसके बाद 1663 में अहोम साम्राज्य की कमान आई चक्रध्वज सिंघा के हाथों में. पुरखों को मिली करारी हार का बदला लेने की आग जयध्वज के दिल में धधक रही थी. उसने 1667 में लाचित को अहोम सेना का कमांडर बनाया. लाचित ने पूरी सेना का कायाकल्प ही कर दिया और महज दो महीने में ही न सिर्फ मुगलों को खदेड़ डाला बल्कि गुवाहाटी के फौजदार सैयद फिरोज खान को बंदी बना लिया और साम्राज्य की खोई हुई इज्जत फिर से हासिल की.
जब औरंगजेब को इसकी खबर लगी तो उसने 4,000 सैनिक, 15000 निशानेबाज, 5000 बंदूकधारी, 1000 तोपों और 40 जहाजों, 30,000 पैदल सैनिक, 21 राजपूतों राजाओं की फौज को कूच का आदेश दिया. लाचित बरफुकन जानते थे कि मुगल सेना को खुले मैदान में हराना नामुमकिन है. इसलिए उन्होंने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया और जवाबी हमले की रणनीति बनाने लगे.
बरफुकन ने मुगल सेना खासकर घुड़सवार सेना की आवाजाही को रोकने के लिए गुवाहाटी में जगह बड़े-बड़े मिट्टी के तटबंध बनवाए. बरफुकन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह जानते थे कि मुगल सेना पानी के युद्ध में उतनी बेहतरीन नहीं है और वह चाहते थे कि मुगल सेना नदी का रास्ता पकड़े.
ब्रह्मपुत्र नदी पर तटबंध बनाने के दौरान बरफुकन को पता चला कि सरायघाट में ब्रह्मपुत्र नदी बेहद संकीर्ण हो जाती है, जहां से वे मुगलों को रोक सकते हैं. इस युद्ध की रणनीति बनाने में लाचित बरफुकन का यह फैसला गेमचेंजर साबित हुआ. जिस दिन लड़ाई हुई लाचित बरफुकन को भयंकर बुखार था. लेकिन बावजूद इसके उन्होंने अहोम सेना का आगे बढ़कर पानी के युद्ध में नेतृत्व किया, जो ब्रह्मपुत्र नदी में गुवाहाटी के पास सरायघाट में लड़ा गया.
जैसे ही मुगलिया सेना आई अहोम सैनिकों ने चारों तरफ से घेरकर उन पर हमला बोल दिया. मुगल सेना के पांव उखड़ गए और अहोम सैनिकों को जीत मिली. लाचित बरफुकन के शौर्य, कमाल की रणनीति और अद्भुत युद्ध कौशल ने मुगल सेना के होश उड़ा दिए. लेकिन 25 अप्रैल 1672 को लाचित बरफुकन की मृत्यु हो गई. आज भी पुणे के खड़कवासला में स्थित नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) में हर साल बेस्ट कैडेट को लाचित बरफुकन गोल्ड मेडल दिया जाता है.