Delhi Chunav 2025: आप की 'रफ्तार', बीजेपी का 'बाउंसर', कांग्रेस दिल्ली में होगी 'क्लीन बोल्ड' या लगा पाएगी 'चौका-छक्का'?
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Delhi Chunav 2025: आप की 'रफ्तार', बीजेपी का 'बाउंसर', कांग्रेस दिल्ली में होगी 'क्लीन बोल्ड' या लगा पाएगी 'चौका-छक्का'?

Congress In Delhi Assembly elections: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है. इस बार दिल्ली का मुकाबला त्रिकोणीय है. आप, बीजेपी और कांग्रेस के बीच कई सीटों पर कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी. लेकिन सबसे बड़ी समस्या कांग्रेस के लिए है. 2013 से कांग्रेस ने आप की रफ्तार के आगे अपना खाता तक नहीं खोल सकी है. 2025 दिल्ली चुनाव कांग्रेस के लिए एक आखिरी उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है.

 

Delhi Chunav 2025: आप की 'रफ्तार', बीजेपी का 'बाउंसर', कांग्रेस दिल्ली में होगी 'क्लीन बोल्ड' या लगा पाएगी 'चौका-छक्का'?

Delhi Assembly elections: दिल्ली का चुनावी मैदान पूरी तरह सज चुका है. चुनाव की डेट भी आ गई है. आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस तीनों टीमों ने अपनी कमर कस ली है. आप की रफ्तार को कोई भी पार्टी अभी तक पकड़ नहीं पाई है. बीजेपी लगातार चुनावी मैदान में  बाउंसर फेंक रही है. अपनी आक्रमणता और सधी हुई राजनीति के भरोसे बीजेपी ने महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस को 'क्लीन बोल्ड' कर दिया था. अब कांग्रेस के लिए आखिरी मौका, जब वह कोई दिल्ली चुनावी मैदान में चमत्कार  कर सके.

चुनाव की आई डेट
मंगलवार (07 जनवरी, 2025) को निर्वाचन आयोग (इलेक्शन कमीशन) ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान कर दिया. 5 फरवरी को मतदान होगा और 8 फरवरी को नतीजे आ जाएंगे. दिल्ली में लगातार 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस पिछले दो विधानसभा चुनावों में अपना खाता भी खोल नहीं सकी है. हालांकि कांग्रेस नेता पांच फरवरी को होने वाले चुनाव के लिए अपनी जमीन को मजबूती प्रदान करने में जुटे हैं.

कांग्रेस के लिए करो या मरो की लड़ाई
कांग्रेस के लिए 2025 का चुनाव करो या मरो की लड़ाई है. देश की सबसे पुरानी पार्टी पिछले दो चुनावों में राजधानी में अपना खाता भी नहीं खोल पाई, जबकि कांग्रेस ने इसी दिल्ली पर 15 साल तक शासन किया. आम आदमी पार्टी के इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनने से मना करने के बाद कांग्रेस अपनी किस्मत फिर से संवारने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस ने सत्ता में आने पर ‘प्यारी दीदी योजना’ के तहत महिलाओं को 2,500 रुपये हर महीने देने का वादा किया है.

12 सालों से नहीं खुला खाता
लोकसभा में खराब प्रदर्शन, लगातार दो चुनावों में मिली हार के बाद कांग्रेस के लिए दिल्ली चुनाव एक आखिरी मौके की तरह है. दिल्ली में 1998 से 2013 तक 15 साल तक कांग्रेस थी. 2013 के चुनाव में भी वह तीसरी बड़ी ताक़त (आठ सीटें) थी और त्रिशंकु विधानसभा के चलते आम आदमी पार्टी (28 सीटें) को उससे हाथ मिलाकर सरकार बनानी पड़ी थी, लेकिन उसके बाद से कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं जीत पाया, न तो 2015 में न 2020 में. कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिर कर 4.26% हो गया, जो कि 2015 में 10% से भी कम हो गया था.

दिल्ली में कांग्रेस कैसे आसमान से गिरती चली गई नीचे
दिल्ली में कांग्रेस का उत्थान और पतन बेहद हैरान करने वाला रहा. पार्टी 1998 में दिल्ली में सत्ता में आई थी, लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा था. दिल्ली में भी बीजेपी ने सात में से छह सीटें जीती थीं. कांग्रेस की एकमात्र विजेता मीरा कुमार करोल बाग सीट से थीं. मुख्यमंत्री बनीं दीक्षित पूर्वी दिल्ली सीट पर भाजपा के लाल बिहार तिवारी से हार गई थीं.

1998 में कांग्रेस ने जीती 70 में से 52 सीटें
नवंबर 1998 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 47.76% वोट शेयर के साथ 70 में से 52 सीटें जीतीं और कांग्रेस सरकार की मुखिया के तौर पर संदीप दीक्षित ने 15 साल तक दिल्ली की सत्ता संभाली. 2013 में यह सत्ता खत्म हो गई जब कांग्रेस सिर्फ आठ सीटों पर सिमट गई और दीक्षित खुद केजरीवाल से हार गईं. 2015 में पार्टी को बड़ा झटका लगा जब वह अपना खाता खोलने में असफल रही और इसका वोट शेयर 10% से भी कम हो गया, जो 2008 में प्राप्त 40.31% और 2013 में प्राप्त 24.55% से काफी कम था.

2020 में 0 पर सिमट गई थी कांग्रेस
पिछले विधानसभा चुनाव, यानी 2020 में तो पार्टी और भी पीछे चली गई थी, उसे मात्र 4.26% वोट मिले थे, जबकि उसके 66 में से 63 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. पार्टी के 15 साल के शासन का श्रेय जहां दीक्षित को जाता है, वहीं उस समय दिल्ली में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा भी मजबूत था, जिसमें लगभग सभी समुदायों के नेता शामिल थे. कांग्रेस का दिल्ली में इसका संगठन बिखर चुका है और वोट बैंक भी नहीं है. पार्टी के नेता मानते हैं कि मुस्लिम भी शिकायतों के बावजूद आप को तरजीह देंगे क्योंकि समुदाय का मानना ​​है कि केवल केजरीवाल की अगुआई वाली पार्टी ही भाजपा का मुकाबला करने की स्थिति में है.

दिल्ली चुनाव आखिरी उम्मीद?
अब दिल्ली चुनाव में कांग्रेस के चुनावी प्रचार की अगुवाई संदीप दीक्षित कर रहे हैं. लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का दोनों ही पार्टियों को फायदा नहीं मिला. इसे लेकर कांग्रेस के अंदर भी मतभेद सामने आए. दिल्ली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन और संदीप दीक्षित इस गठबंधन के पक्ष में नहीं थे. कहा यह भी जाता है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद गठबंधन की संभावना और कम हुई. अब कांग्रेस और आप अकेले बूते पर चुनावी मैदान में हैं. और कांग्रेस के लिए यह चुनाव आखिरी मौके की तरह है.

बीबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्लेषक कहते हैं कि कांग्रेस इस चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश करेगी, लेकिन अभी उसकी तरफ़ से कोई ख़ास रणनीति सामने नहीं आई है.बीते नवंबर में राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा की तर्ज़ पर कांग्रेस पार्टी की ओर से न्याय यात्रा शुरू की गई लेकिन ज़मीन पर ठंडी प्रतिक्रिया मिलने से कोई ख़ास माहौल नहीं बन पाया.

कांग्रेस दिल्ली में वोट कटवा की भूमिका में?
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं, "संदीप दीक्षित मुखर हैं और आम आदमी पार्टी को लेकर हमलावर हैं लेकिन कांग्रेस दिल्ली में अपना कोई नैरेटिव नहीं खड़ा कर पा रही है. हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा लगता है, और ख़ासकर पिछले साल हुए लोकसभा चुनावों में, कि लोग चाहते हैं कि बीजेपी के ख़िलाफ़ कांग्रेस कुछ काउंटर फ़ोर्स के रूप में देश में उभरे." अगर ऐसा होता है तो कुछ दलित और अल्पसंख्यक वोट उसे ज़रूर मिल सकता है. उनके अनुसार, "लेकिन समस्या ये है कि कांग्रेस का मनोबल इतनी जल्दी टूट जाता है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में जैसे ही हार मिली, उसके बाद से वे खुद को उठा नहीं पा रहे हैं." नीरजा चौधरी कहती हैं कि 'कांग्रेस अधिक से अधिक दिल्ली में वोट कटवा की भूमिका निभाएगी.' वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, "कांग्रेस पार्टी का जैसे जैसे आधार खिसका है, उसका काफ़ी हिस्सा आम आदमी पार्टी ने लेने की कोशिश की है. इसलिए कांग्रेस के लिए 'आप' की चुनौती प्रमुख है और अगर नतीजे आप के पक्ष में नहीं आते तो कांग्रेस खुश ही होगी."

क्या कहती है कांग्रेस?
कांग्रेस के दिल्ली प्रभारी काजी मोहम्मद निजामुद्दीन ने न्यूज एजेंसी से कहा, ‘‘कांग्रेस, उसके प्रत्याशी चुनाव के लिए तैयार हैं. लोगों को दिल्ली के गैस चैंबर से खुद को बचाने के लिए वोट करना चाहिए, उन्हें अच्छी सरकार चुननी चाहिए, उन्हें इस बात का एहसास होना चाहिए कि केंद्र में भाजपा और दिल्ली में आप के शासन से उन्हें कितना नुकसान पहुंचाया है.’ निजामुद्दीन ने कहा, ‘‘ कांग्रेस के शासनकाल में दिल्ली रहने लायक थी. लोगों को कांग्रेस को वोट देना चाहिए. नयी दिल्ली से कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने कहा, ‘‘यह अच्छा है कि अब हमें मतदान की तारीख का पता है. हम पहले से ही काम कर रहे थे, लेकिन एक बार कार्यक्रम घोषित होने के बाद चुनाव अभियान नियोजित ढंग से चलाया जा सकेगा. उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस द्वारा तैयारी का अधिकांश कार्य पहले ही किया जा चुका है. हमारे कार्यकर्ता तैयार हैं, हमारा एजेंडा तैयार है, हमारे मतदाता तैयार हैं और हम पूरे उत्साह के साथ चुनाव लड़ेंगे. चुनावी परिणाम क्या होगा यह फरवरी को पता चलेगा.

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