Lok Sabha Elections 1984: लोकसभा चुनाव के सातवें चरण की वोटिंग संपन्न होने के साथ ही अब सबकी नजरें रिजल्ट पर टिकी हैं. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने एनडीए के 400 और बीजेपी के 370 सीटें जीतने की भविष्यवाणी की है. अभी तक एक ही बार हुआ है जब किसी भी पार्टी या गठबंधन को 400 या उससे ज्यादा सीटें मिली हैं. 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने 400 से ज्यादा सीटें जीती थीं. आइए एक नजर डालते हैं कि 1984 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने कैसे यह जादुई आंकड़ा पार किया था.


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1984 में ही कांग्रेस ने आखिरी बार अपने दम पर सरकार बनाई थी. राजीव गांधी केवल 40 वर्ष के थे जब वो देश के प्रधानमंत्री बने. इस तरह राजीव गांधी भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने. लेकिन भ्रष्टाचार और घोटाले के आरोपों के कारण 1989 में कांग्रेस के हाथों से सत्ता निकल गई. इसके बाद कभी भी कांग्रेस पार्टी अपने दम पर लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं कर सकी.


कांग्रेस पार्टी की अभूतपूर्व जीत


31 अक्तूबर 1984 को नई दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित आवास पर इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद कांग्रेस पार्टी की कमान राजीव गांधी के हाथों में आ गई. इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के कारण राजीव गांधी के प्रति राष्ट्रव्यापी सहानुभूति थी. 1984 का लोकसभा चुनाव तीन चरणों में संपन्न हुआ और कांग्रेस पार्टी को 514 में से 404 सीटें मिली. पंजाब और असम में बाद में वोट डाले गए थे. इन दोनों राज्यों की 10 सीटें भी कांग्रेस जीतने में सफल रही थी.


बिखरा हुआ विपक्ष


इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी के बाद चौधरी चरण सिंह की जनता पार्टी (सेक्यूलर), जनता पार्टी (एस-चरण सिंह) और जनता पार्टी (एस-राज नारायण) में विभाजित हो गई. बिहार के नेता कर्पूरी ठाकुर के बगावत के बाद अगस्त 1982 में चरण सिंह की जनता पार्टी (एस-चरण सिंह) भी टूट गई . चौधरी चरण सिंह की पार्टी को अब लोक दल के नाम से जाना जाता है.


सभी विपक्षी पार्टियां एकल-व्यक्तित्व वाली पार्टियां थीं.  जगजीवन राम की कांग्रेस (जगजीवन), एच एन बहुगुणा की डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी (डीएसपी) और चंद्रजीत यादव की जनवादी पार्टी. जॉर्ज फर्नांडीस, मधु लिमये, देवी लाल और बीजू पटनायक जैसे बड़े नेता लोकदल (के) हिस्सा थे.


8 सिंतबर 1982 को अपने पिता शेख अब्दुल्ला के निधन के बाद फारूक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने. 10 जनवरी 1983 को रामकृष्ण हेगड़े जनता सरकार में मुख्यमंत्री बने थे. एक दिन पहले ही तेलुगु अभिनेता से नेता बने एन टी रामा राव ने आंध्र प्रदेश में सीएम पद की शपथ ली थी.
 
कुछ प्रगतिशील और समाजवादी नेताओं ने चुनाव से पहले क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों के बीच गठबंधन कराने की कोशिश की थी. चंद्रशेखर की जनता पार्टी, के रामचंद्रन की कांग्रेस (सेक्यूलर), बहुगुना की डीएसपी और रतुभाई अडानी की राष्ट्रीय कांग्रेस एक साथ आई. बीजेपी जो शुरुआत में किसी भी पार्टी के विलय के खिलाफ थी उसने कहा कि वह सार्थक सहयोग की नीति का पालन करेगी. जिसके बाद चरण सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के बीच हुई बातचीत के बाद दोनों पार्टियां एक साथ आ गईं. इस गठबंधन को एनडीए नाम दिया गया.


हालांकि, एनडीए का यह कुनबा ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. गठबंधन बनने के एक साल बाद ही भाजपा ने खुद को इससे अलग कर लिया और चरण सिंह ने अपनी नई पार्टी दलित मजदूर किसान पार्टी का गठन कर लिया.


तय समय से पहले हुआ चुनाव


तय समय के हिसाब से यह लोकसभा चुनाव जनवरी 1985 में होना था. 25 अगस्त 1984 को चुनाव आयोग ने चुनाव प्रचार में आधिकारिक मशीनरी के कथित दुरुपयोग पर चर्चा करने के लिए सभी दलों की एक बैठक बुलाई. कुछ पार्टियों की मांग थी कि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि से मतदान के दिन तक मंत्रियों और अन्य नेताओं द्वारा सरकारी विमानों के उपयोग पर रोक लगे. इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. इसके विरोध में भयानक सिख विरोधी हिंसा हुई. पूरे देश में सिख समुदाय के तीन हजार से अधिक लोग मारे गए. इनमें सबसे ज्यादा दिल्ली में 2500 से ज्यादा लोग मारे गए थे.


कांग्रेस पार्टी को मिला अभूतपूर्व जनादेश


चुनाव आयोग ने असम और पंजाब को छोड़कर 17 राज्यों और सभी नौ केंद्र शासित प्रदेशों में एक ही साथ चुनाव कराने की घोषणा की. आंतकवाद के खतरे को देखते हुए पंजाब और असम में बाद में चुनाव कराने का निर्णय लिया गया. 24,27 और 28 दिसंबर को हुए मतदान की गिनती अलग-अलग दिन हुई. 31 दिसंबर 1984 को सभी निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम घोषित किए गए.


इस लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी ने अमेठी सीट पर अपनी भाभी और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी को हराया. अमिताभ बच्चन ने इलाहाबाद  में पूर्व कांग्रेसी और दिग्गज नेता एच एन बहुगुणा को हराया.  इसके अलावा के आर नारायण ने केरल के ओट्टापलम से, प्रकाश चंद सेठी इंदौर से, गुलाम नबी आजाद ने महाराष्ट्र के वाशिम से और पी वी नरसिम्हा राव ने बेरहामपुर सीट से जीत हासिल की. 


कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 85 में से 83 सीटें, बिहार में 54 में से 48 सीटें, हरियाणा में सभी 10 और राजस्थान में भी सभी 25 सीटें जीतने में सफल रही. वहीं, दक्षिणी राज्यों की बात करें तो कांग्रेस ने कर्नाटक में 28 में से 24 सीटें, केरल में 20 में से 13 सीटें, तमिलनाडु में 39 में से 25 सीटें जीती इसके अलाव आंध्र प्रदेश में 42 में से 30, गुजरात में 26 में से 24, मध्य प्रदेश में 40 और महाराष्ट्र में 48 में से 43 सीटें जीती थी.


इस लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी सिर्फ दो पर सिमट कर रह गई. वहीं, अन्य पार्टियों में तेलगु देशम पार्टी ने 30 सीटें, सीपीआई(एम) ने 22 सीटें, जनता पार्टी ने 10 और सीपीआई ने 6 सीटें जीती. अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में और जनता पर्टी के चंद्रशेखर बलिया में हार गये थे.


अन्य प्रमुख उम्मीदवारों में चरण सिंह बागपत से, जगजीवन राम सासाराम से और शरद पवार बारामती से जीते थे.


शुरु हुआ राजनीति का नया दौर


1984 के चुनाव के समय तक, पिछली पीढ़ी के अधिकांश विपक्षी दिग्गज चल बसे थे. सी. राजगोपालाचारी की 1972 में मृत्यु हो गई. 1977 में विपक्षी एकता के पीछे की ताकत रहे जयप्रकाश नारायण की 1979 में मृत्यु हो गई. जे बी कृपलानी का भी 1982 में निधन हो गया था. ऐसे में कांग्रेस के सामने नए विपक्षी दलों में दो साल पहले ही बनी पार्टी टीडीपी सबसे प्रमुख थी. राजीव गांधी ने कांग्रेस पार्टी में भी सुधार लाते हुए नए चेहरों को सामने लाया.


साल 1985 में केंद्र सरकार ने पंजाब में राजीव-लोंगोवाल समझौता और असम आंदोलन के नेताओं के साथ असम समझौता पर हस्ताक्षर किया. इसके एक साल बाद ही सरकार ने शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को कानून बनाकर पलट दिया. स्वीडिश हथियार निर्माता कंपनी बोफोर्स के साथ हुए डील में घोटाले का आरोप लगा. राजीव गांधी पर बोफोर्स घोटाले में रिश्वत लेने का आरोप लगा था. कथित बोफोर्स घोटाला राजीव को उनके पूरे कार्यकाल और जीवन भर परेशान करता रहा. जिसका परिणाम यह हुआ कि 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 197 सिटों पर सिमट गई.