महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन में नई जान फूंकने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने तीन मार्च को पूरे राज्य में 'रास्ता रोको' प्रदर्शन की घोषणा की है. जबकि, महाराष्ट्र विधानसभा और विधान परिषद ने एक दिन के विशेष सत्र में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के लिए मराठा आरक्षण विधेयक को मंगलवार को सर्वसम्मति से पास कर दिया था.


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महाराष्ट्र विधानमंडल के कदम से संतुष्ट नहीं मनोज जरांगे पाटिल 


मनोज जरांगे पाटिल महाराष्ट्र विधानमंडल के इस बड़े कदम से संतुष्ट नहीं हुए हैं. उन्होंने अब 'सगे सोयरे' अध्यादेश अधिसूचना को लागू करने की नई मांग को लेकर रास्ता रोको प्रदर्शन करने की योजना बनाई है. जालना जिले के अंतरवाली सरती गांव में मनोज जरांगे पाटिल ने कहा कि वह इंतजार करेंगे और देखेंगे कि क्या महाराष्ट्र सरकार कुनबी मराठों के ‘खून के रिश्तों’ पर अपनी मसौदा अधिसूचना को कानून में बदलती है या नहीं. उसके बाद वह अपने आंदोलन के बारे में फैसला करेंगे. 


मनोज जरांगे पाटिल को विधेयक की कानूनी वैधता पर आशंका


मनोज जरांगे पाटिल ने बुधवार को दावा किया कि मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक कानूनी तौर पर खड़ा नहीं हो पाएगा. इसलिए उन्होंने अपनी मांग दोहराई कि कुनबी मराठों के 'रक्त संबंधियों' पर महाराष्ट्र सरकार की मसौदा अधिसूचना को कानून में बदल दिया जाए. मनोज जरांगे पाटिल ओबीसी आरक्षण के तहत मराठा समुदाय के लिए कोटा की अपनी मांग पर अड़ गए हैं.


महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण और मराठा कोटा का पेचीदा मामला


महाराष्ट्र मे बड़ी संख्या में जातियों और समूहों को पहले से ही आरक्षित श्रेणी में रखा गया है. इन सबको कुल मिलाकर लगभग 52 प्रतिशत आरक्षण मिलता है. नए विधेयक में कहा गया है कि मराठा समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणी में रखना पूरी तरह से असंगत होगा. इससे पहले पिछले महीने महराष्ट्र सरकार द्वारा जारी मसौदा अधिसूचना के मुताबिक, अगर किसी मराठा व्यक्ति के पास यह दिखाने के लिए सबूत है कि वह कुनबी जाति से है, तो उस व्यक्ति के रक्त संबंधियों को भी कुनबी के रूप में मान्यता दी जाएगी. महाराष्ट्र में कुनबी ओबीसी श्रेणी में आते हैं और उन्हें कोटा लाभ मिलता है. 


मसौदा अधिसूचना पर सीएम शिंदे और मनोज जरांगे ने क्या दी दलील


मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को विधानसभा में बताया कि कुनबी मराठों के विस्तारित रक्त संबंधियों को प्रमाण पत्र देने के लिए पिछले महीने जारी मसौदा अधिसूचना की जांच चल रही है. क्योंकि इसके तहत 6 लाख आपत्तियां प्राप्त हुई हैं. वहीं, मनोज जरांगे पाटिल ने कहा कि सरकार ने मराठों के रिश्तेदारों को कोटा देने के लिए एक मसौदा अधिसूचना (इस महीने की शुरुआत में) जारी की है. उन्होंने दावा किया कि सरकार को मराठा समुदाय के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के अपने फैसले पर पछतावा होगा. क्योंकि इसकी घोषणा के बाद राज्य में किसी ने जश्न नहीं मनाया.


मनोज जरांगे पाटिल ने कहा- सरकार हमें वह दे रही है जो हम नहीं चाहते


मराठा आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे मनोज जरांगे पाटिल ने 'सगे सोयरे' को लागू करने की मांग को लेकर अपनी भूख हड़ताल जारी रखी है. उन्होंने कहा कि सरकार हमें वह दे रही है जो हम नहीं चाहते. हम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण चाहते हैं, लेकिन वे इसके बजाय हमें एक अलग कोटा दे रहे हैं. जरांगे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार मराठा समुदाय के लिए 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, लेकिन यह ओबीसी कोटा के तहत होना चाहिए, न कि अलग से. 


महाराष्ट्र सरकार पर मराठा आरक्षण को भटकाने की कोशिश का आरोप


मनोज जरांगे पाटिल ने महाराष्ट्र सरकार पर मराठा आरक्षण मुद्दे को भटकाने की कोशिश का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार मंत्री छगन भुजबल के प्रभाव में काम कर रही है. भुजबल ओबीसी आरक्षण में मराठों के “बैक डोर एंट्री” का विरोध कर रहे हैं. मनोज जरांगे पाटिल ने कहा, “ओबीसी कोटा के बाहर एक अलग आरक्षण कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है, क्योंकि ऐसा करना आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकता है.”


एक साल से भी कम समय में मनोज जरांगे ने चौथी बार की भूख हड़ताल


मनोज जारांगे पाटिल 10 फरवरी से भूख हड़ताल पर हैं. एक साल से भी कम समय में मनोज जरांगे ने मराठा समुदाय को ओबीसी समूह में शामिल करने की मांग को लेकर यह चौथी बार भूख हड़ताल की है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अपनी आवाज बुलंद कर रहे मनोज जरांगे पाटिल की भूख हड़ताल के साथ जुटी भीड़ ने सीएम एकनाथ शिंदे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने और मराठा आरक्षण विधेयक पास कराने के लिए मजबूर कर दिया.


महाराष्ट्र में लंबे समय से राजनीतिक संकट बना है मराठा आरक्षण आंदोलन


महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली मराठा समुदाय को आरक्षण का मामला और ओबीसी नेता का विरोध सामाजिक टेंशन पैदा कर रहा है. मराठा समुदाय ने महाराष्ट्र के 19 में से 12 सीएम दिए हैं. दूसरी तरफ ओबीसी हैं जिस वर्ग में 347 जातियां हैं. इन्हें मंडल कमीशन से आरक्षण मिला है. महाराष्ट्र में दोनों बड़ा वोटबैंक है. 


48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में कई साल से राजनीतिक संकट बने मराठा आरक्षण की मांग का कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है. सर्वे में पता चला है कि मराठा समुदाय सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा है. लेकिन हर बार उनके आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो जाता है.