Jammu Kashmir Election: जम्मू कश्मीर में डेमोक्रेसी रि-डाउनलोड हो रही है और शायद यही वजह है कि राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हैं. नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने एक तरफ जहां गठबंधन का ऐलान किया है तो वहीं पीडीपी ने अकेले लड़ने का ऐलान किया है. इसी कड़ी में पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने बुधवार को कहा कि वह जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी. उसके इस ऐलान के साथ ही राजनीतिक एक्सपर्ट्स के बीच चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. महबूबा ने कहा कि अगर वह मुख्यमंत्री बन भी गईं तो भी वह केंद्र शासित प्रदेश में अपनी पार्टी का एजेंडा पूरा नहीं कर पाएंगी.


अब क्या-क्या नहीं कर पाएंगी महबूबा?


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असल में महबूबा ने कहा है कि मैं बीजेपी के साथ एक सरकार की मुख्यमंत्री रही हूं जिसने 12000 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी वापस ले ली थी. क्या हम अब ऐसा कर सकते हैं? मैंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ सरकार की मुख्यमंत्री के रूप में अलगाववादियों को बातचीत के लिए आमंत्रित करने के लिए एक पत्र लिखा था. क्या आप आज ऐसा कर सकते हैं? मैंने जमीनी स्तर पर संघर्ष विराम (लागू) करवाया. क्या आप आज ऐसा कर सकते हैं? 


ऐसे पद का क्या मतलब है?


उन्होंने यह भी कहा कि अगर आप मुख्यमंत्री के तौर पर प्राथमिकी वापस नहीं ले सकते, तो ऐसे पद का क्या मतलब है? पीडीपी अध्यक्ष से पूछा गया था कि क्या चुनाव लड़ने को लेकर उनका इरादा बदला है, क्योंकि उनके धुर विरोधी नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने अपने रुख से पलटी मार ली है. महबूबा ने कहा कि उमर ने खुद कहा कि चपरासी के तबादले के लिए उन्हें लेफ्टिनेंट गवर्नर के दरवाजे पर जाना पड़ेगा. मुझे चपरासी के तबादले की चिंता नहीं है, लेकिन क्या हम अपना एजेंडा लागू कर सकते हैं?


उमर अब्दुल्ला पहले ही मार चुके पलटी


इससे पहले उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बने रहने तक विधानसभा चुनावों में भाग नहीं लेने का संकल्प लिया था लेकिन मंगलवार को पार्टी द्वारा घोषित 32 उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम भी शामिल था. पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला गांदेरबल से चुनाव लड़ेंगे, जहां से उन्होंने 2008 में जीत हासिल की थी. जम्मू-कश्मीर चुनावों के लिए नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के बीच गठबंधन पर पीडीपी अध्यक्ष ने कहा कि दोनों पार्टियां हमेशा सत्ता के लिए एक साथ आती हैं.


इसके अलावा महबूबा ने कहा कि जब हमने 2002 में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, तो हमारा एक एजेंडा था. हमने सैयद अली गिलानी को जेल से रिहा करवाया था. क्या आप आज ऐसा करने के बारे में सोच सकते हैं? जब हमने 2014 में बीजेपी सरकार के साथ गठबंधन किया था, तो हमारे पास गठबंधन का एक एजेंडा था, जिसमें हमने लिखित में कहा था कि अनुच्छेद 370 को छुआ नहीं जाएगा, आफ्स्पा को निरस्त किया जाएगा, पाकिस्तान और हुर्रियत के साथ बातचीत की जाएगी, बिजली परियोजनाओं को वापस लाया जाएगा. 


महबूबा के ऐलान के मायने


महबूबा के इस ऐलान को लेकर जम्मू कश्मीर की राजनीति पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स की अलग-अलग राय है. यह सही है कि अब गृह मंत्रालय के उस आदेश के आदेश के बाद वहां एलजी की शक्तियां ज्यादा हैं, जिसका नोटिफिकेशन चुनाव से कुछ समय पहले दिया गया था. वहीं दूसरी तरफ महबूबा को यह भी समझ है कि हाल फिलहाल शायद ही उनकी पार्टी अकेले सरकार बना पाए. ऐसे में फिलहाल उन्होंने चुनाव ना लड़ने का ही मन बनाया है. क्या ये बीजेपी के लिए एक शुभ संकेत है, ये भी आने वाला समय ही बताएगा.