कहानी `ऑपरेशन मेघदूत` की: जब भारत ने 20 हजार फुट ऊंचे बर्फ में खोदी थी पाकिस्तान की कब्र, आज दौरा करेंगी सुप्रीम कमांडर
What is Operation Meghdoot: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 26 सितंबर को सियाचिन दौरे पर जाएंगी. ये इसलिए भी खास माना जा रहा है क्योंकि वे दुनिया की सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित वार जोन में तैनात सैनिकों से भी वह मिलेंगी. सियाचिन का नाम आते ही `ऑपरेशन मेघदूत’ की याद आ जाती है. ये वही ऑपरेशन है जिससे भारतीय सेना ने सफलता का स्वर्णिम अध्याय लिखा था.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू गुरुवार को सियाचिन बेस कैंप का दौरा करेंगी और वहां तैनात सैनिकों से बातचीत करेंगी. भारत ने कराकोरम पर्वत शृंखला में करीब 20,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर में चालीस साल पहले धूल चटा दी थी. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है ऑपरेशन मेघदूत’, राष्ट्रपति मुर्मू से पहले और कौन राष्ट्रपति ने सियाचिन का किया है दौरा.
मुर्मू सियाचिन का दौरा करने वाली तीसरी राष्ट्रपति
राष्ट्रपति भवन की ओर से बुधवार को जारी एक बयान में कहा गया 'भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू आज (26 सितंबर, 2024) सियाचिन बेस कैंप का दौरा करेंगी और वहां तैनात सैनिकों से बातचीत करेंगी'.मुर्मू दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन का दौरा करने वाले देश के तीसरे राष्ट्रपति होंगी, सियाचिन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में स्थित है. मुर्मू से पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और राम नाथ कोविंद भी सियाचिन बेस कैंप का दौरा कर चुके हैं. कलाम ने अप्रैल 2004 में दौरा किया था, जबकि कोविंद मई 2018 में बेस कैंप गए थे.
20,000 फीट की ऊंचाई पर है सियाचिन
सियाचिन ग्लेशियर कराकोरम पर्वत श्रृंखला में लगभग 20,000 फीट की ऊंचाई पर है. इसे दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जहां सैनिकों को जबरदस्त ठंड और तेज हवाओं से जूझना पड़ता है. यहां सालभर बर्फ जमी रहती है. सर्दियों में यहां का तापमान -50 से -70 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है. यह दुनिया के सबसे निर्जन और बीहड़ इलाकों में से एक है. 'ऑपरेशन मेघदूत' के तहत भारतीय सेना ने 13 अप्रैल, 1984 को ग्लेशियर पर अपना पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया था.
आइए जानते हैं क्या है 'ऑपरेशन मेघदूत', भारत ने बर्फ में खोदी थी पाकिस्तान की कब्र
ऑपरेशन मेघदूत' भारतीय सेना के शौर्य बल की गाथा है. ऑपरेशन मेघदूत (Operation Meghdoot in Hindi) वह कोडनेम था जिसका इस्तेमाल भारतीय सशस्त्र बलों ने केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्ज़ा करने के लिए अपने ऑपरेशन में किया था. 13 अप्रैल 1984, ये वही दिन है जब इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था. हालांकि, ऑपरेशन 1984 में शुरू हुआ था, लेकिन भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर 1978 से ही सियाचिन ग्लेशियर में काम कर रहे थे। वायु सेना का चेतक हेलीकॉप्टर सियाचिन में अक्टूबर 1978 में ग्लेशियर में उतरने वाला पहला IAF हेलीकॉप्टर बना था. दरअसल भारत और पाकिस्तान में बंटवारे के दौरान जो समझौता हुआ था, उसमें युद्धविराम रेखा सियाचिन ग्लेशियर के लिए अस्थाई थी. किसी ने ये नहीं सोचा था कि इतनी ऊंचाई पर भी सैन्य अभियान हो सकता है.
पाकिस्तान की बताई औकात
इसके बाद 1982 में ही पाकिस्तान ने अपनी औकात दिखानी शुरू कर दी. पाक की ओर से तत्कालीन उत्तरी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल चिब्बर को पत्र आने लगे, जिसमें भारत को सियाचिन ग्लेशियर से दूर रहने को कहा. इससे भारतीय सेना सतर्क हो गई और उसने 1983 की गर्मियों के दौरान भी ग्लेशियर पर गश्त जारी रखी. खुफिया रिपोर्ट के जरिए भारतीय सेना समझ गई थी कि पाक की नीयत खराब हो रही है। खुफिया इनपुट में बताया गया था कि पाक सियाचिन पर कब्जे की फिराक में है. खुफिया एजेंसी रॉ से मिली इस जानकारी के बाद भारत ने 'ऑपरेशन मेघदूत' शुरू किया. इसे तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इजाजत दी थी.
कैसे चला 'ऑपरेशन मेघदूत'?
इसके बाद भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना (आईएएफ) उत्तरी लद्दाख क्षेत्र की ऊंचाइयों को सुरक्षित करने के लिए सियाचिन ग्लेशियर की ओर बढ़ी. इस ऑपरेशन में भारतीय वायुसेना द्वारा भारतीय सेना के जवानों को एयरलिफ्ट करना और उन्हें हिमनद चोटियों पर छोड़ना शामिल था. भारतीय वायुसेना के लिए भी यह टास्क पूरा करना आसान नहीं था. ऐसा इसलिए क्योंकि वायुसेना के पायलट को काफी समय तक बर्फ की सफेद चादर देखते रहने से 'सपेशियल डिसऑरियंटेशन' होने लगता है. ऐसे में यहां तैनात जवानों को हाई ब्लडप्रेशन के साथ-साथ मैमोरी लॉस होने तक की शिकायत होने लगती है. लेकिन फिर भी ऑपरेशन मेघदूत में एक IAF के रणनीतिक एयरलिफ्टर्स ने खाद्य पदार्थ और सैनिकों को पहुंचाया और ऊंचाई वाले हवाई क्षेत्रों में कई चीजों की आपूर्ति की. जल्द ही लगभग 300 सैनिक ग्लेशियर की महत्वपूर्ण चोटियों पर तैनात हो गए. जब तक पाकिस्तानी सेना कोई हमला बोलती, तब तक भारतीय सेना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पर्वत चोटियों पर कब्जा कर चुकी थी, जिससे उसे बड़ा लाभ मिला.
ऑपरेशन अबाबील को जवाब देने के लिए 'ऑपरेशन मेघदूत'
भारत को खुफिया सूचना मिली थी कि पाकिस्तान ने सियाचिन में कब्जे के लिए बरजिल फोर्स बनाई थी. भारतीय सेना को सियाचिन से खदड़ने के लिए पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन अबाबील' लॉन्च किया था. इस ऑपरेशन का मकसद सिया ला और बिलाफोंड ला पर कब्जा करना था. पाकिस्तान की तरफ से पहला हमला 23 जून को सुबह लगभग पांच बजे किया गया था. इसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया और 26 पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया. इसके बाद जून और फिर अगस्त में भी पाकिस्तान ने हमला किया लेकिन हर बार उसको मुंह की खानी पड़ी. इसमें पाकिस्तान को तीस जवानों को खोना पड़ा था. इस बीच गियांग ला के सबसे ऊंचे प्वाइंट पर भी भारतीय जवानों ने कब्जा जमा लिया था. इस तरह से पूरा सियाचिन भारत का हो चुका था. 1987 में और फिर 1989 में भी पाकिस्तान ने यहां पर हमला किया था. यहां पर स्थित बाना पोस्ट दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र की सबसे ऊंची पोस्ट है जो समुद्र स्तर से 22,143 फीट (6,74 9 मीटर) की ऊंचाई पर है. भारत सरकार के मुताबिक सियाचिन ग्लेशियर में चलाए गए ऑपरेशन मेघदूत से लेकर 18.11.2016 तक, 35 अधिकारी और 887 जेसीओ/ ओआरएस ने यहां पर अपनी जान गंवा चुके हैं. वर्तमान में भारतीय सशस्त्र बल इस क्षेत्र पर नियंत्रण रखते हैं, और भारतीय सेना की कई पैदल सेना बटालियनें वहां तैनात हैं