Parliamentary Privileges Rajya Sabha: आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह मंगलवार को दूसरी बार राज्यसभा के सदस्य बने. उन्होंने सभापति जगदीप धनखड़ ने शपथ दिलाई. दिल्ली एक्साइज घोटाला मामले में गिरफ्तार सिंह को अदालत के आदेश पर संसद लाया गया था. सिंह को कड़ी पाबंदियों के बीच शपथ दिलाई गई. मॉनसून सत्र में हंगामा करने के चलते सिंह को सभापति ने सस्पेंड कर रखा था. विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट भी लंबित थी. इसी वजह से वह पिछले महीने शपथ नहीं ले सके थे. अब अदालत से अनुमति मिलने पर उन्हें शपथ दिलाई गई है. राज्यसभा के नियमों के मुताबिक, अगर कोई सदस्य आपराधिक आरोपों के चलते हिरासत में है तो वह सदन जाने के नाम पर छूट नहीं ले सकता. संसदीय विशेषाधिकार उसपर लागू नहीं होते. आमतौर पर सभापति ऐसे सदस्यों की सदन की कार्यवाही का हिस्सा बनने की मांग खारिज कर देते हैं. ऐसे सदस्यों को संसद जाने के लिए अदालत से इजाजत लेनी पड़ती है.


अब तक क्यों शपथ नहीं ले पा रहे थे संजय सिंह


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सिंह को पिछले साल अक्टूबर में प्रवर्तन निदेशालय ने अरेस्ट किया था. बतौर राज्‍यसभा सदस्‍य, सिंह का कार्यकाल जनवरी में खत्म हो गया था. पार्टी ने उन्हें दिल्ली से फिर राज्यसभा भेजा. सिंह ने दूसरी बार राज्‍यसभा सदस्‍य के रूप में शपथ लेने और बजट सत्र में हिस्सा लेने के लिए कोर्ट में याचिका डाली थी. अदालत से हरी झंडी के बावजूद वह शपथ नहीं ले पाए थे क्योंकि सभापति जगदीप धनखड़ के निर्देश पर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया था.


यह सस्‍पेंशन तब तक रहना था जब तक विशेषाधिकार समिति मामले का निस्तारण नहीं कर देती. पिछले महीने, 5 फरवरी को सिंह को संसद लाया गया था मगर इसी वजह से खाली हाथ लौटना पड़ा था. इस महीने, विशेषाधिकार समिति के मामला क्लियर करने के बाद सिंह को शपथ लेने की अनुमति मिल गई.


राज्‍यसभा सदस्‍य के रूप में शपथ लेते संजय सिंह (Photo : Sansad TV)

  जेल में बंद सांसद-विधायक के लिए क्‍या हैं नियम


राज्यसभा की वेबसाइट पर नियमों की जानकारी उपलब्‍ध है. इसके अनुसार, 'आपातकालीन कानून के तहत या आपराधिक आरोप में हिरासत में लिया गया सदस्य इस आधार पर छूट का दावा नहीं कर सकता कि उसे सत्र में भाग लेना है. भले ही उसे इस संबंध में सम्मन भेजा गया हो.' आमतौर पर ऐसे सदस्‍यों की गुहार को चेयरमैन खारिज कर देते हैं.


अगर कोई सदस्य प्रिवेंटिव डिटेंशन में है या किसी आपराधिक कानून के तहत हिरासत में लिया गया है तो सभापति सरकार से यह नहीं कह सकते कि अमुक सदस्य को सदन में आने दिया जाए. हां, सदस्य चाहे तो सक्षम प्राधिकारी (कोर्ट) से संपर्क कर सकता है जहां से उसे सदन में बैठने और फिर वापस जेल जाने की अनुमति मिल सकती है.


पहले कब-कब हुआ ऐसा


राज्यसभा वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार, अभी तक केवल दो बार ही ऐसा हुआ है जब पुलिस सुरक्षा में सदस्यों को सदन में बैठने की अनुमति मिली हो. प्रिवेंटिव कस्टडी में रहे राजनारायण को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्यसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने दिया गया था. वह पुलिस सुरक्षा में 4 और 5 सितंबर 1970 को संसद पहुंचे थे. दूसरा वाकया इंदिरा गांधी की करीबी सरोज खापर्डे से जुड़ा है. उन्हें भी मजिस्ट्रेट के ऑर्डर पर राज्यसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने नागपुर से दिल्ली लाया गया था. 


पिछले दिनों, सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि संसदीय और विधायी विशेषाधिकार और छूट केवल सदन के कामकाज से जुड़ी हैं. उससे इतर, इस आधार पर छूट नहीं ली जा सकती. SC ने यह फैसला 1998 JMM रिश्वत कांड में अपना फैसला पलटते हुए दिया था.