BJP UP Lok Sabha Chunav Result 2024: यूपी में बीजेपी की हार....बीजेपी को बहुत गहरे घाव दे गई है. इसके बाद से बीजेपी में बैठकों का दौर जारी है. दिल्ली से लखनऊ तक मंथन चल रहा है कि आखिर वो कौन से ऐसे कारण रहे, जिसकी वजह से बीजेपी 62 सीटों से सिमट कर 33 तक पहुंच गई यानि 29 सीटों का नुकसान. 29 का नंबर सरकार बनाने और गिराने की क्षमता रखता है. यूपी में सीटों के नंबर का गिरना ही थ कि नरेंद्र मोदी पहली बार गठबंधन सरकार की ओर रूख कर रहे हैं. 


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क्या अतिआत्मविश्वास की वजह से बीजेपी हारी?


विपक्ष दावा कर रहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA 3.0 सरकार 6 महीने से ज्यादा नहीं चलेगी. हालांकि NDA लगातार अपनी एकजुटता का प्रदर्शन करता नजर आ रहा है. अब सवाल उठ रहा है कि क्या अतिआत्मविश्वास की वजह से बीजेपी हारी. अखिलेश और राहुल की रणनीति को भांपने में पार्टी नाकाम रही. जबकि अखिलेश शुरू से PDA यानी पिछड़ा दलित और अल्पसंख्यक की रणनीति पर काम कर रहे थे.


यूपी में 64 से घटकर 36 पर आ गई सीटें


यूपी में एनडीए 2019 के 64 सीटों के मुकाबले घटकर 36 पर रह गया जिसमें बीजेपी की 33 सीटें...अपना दल (एस) की 1 और RLD की 2 सीटें शामिल हैं जबकि गठबंधन को 43 सीटें मिली हैं जिनमें एसपी की 37 और कांग्रेस की 6 सीटें शामिल हैं. एक सीट भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर ने जीती है. ऐसा नहीं है कि बीजेपी की हार किसी एक क्षेत्र में हुई. पश्चिम से पूर्वांचल तक पार्टी की हार हुई है. अवध से बुंदेलखंड तक बीजेपी को नुकसान हुआ है. बीजेपी का वोट शेयर भी 2019 में 49.9 फीसदी के मुकाबले गिरकर 2024 में 41.37 फीसदी रह गया है.


हार की वजहें तलाशने में जुटा हाई कमान


योगी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी लखनऊ में हार की वजहों पर बैठकें कर रहे हैं. पार्टी आलाकमान भी इसकी वजह तलाशने में जुटा है लेकिन कुछ ऐसी वजहें सीधे तौर पर दिखाई पड़ रही हैं, जिसे जानकार यूपी में हार की बड़ी वजह मान रहे हैं:-


1. अतिआत्मविश्वास


एनडीए ने यूपी में मौजूदा 49 सांसदों को यूपी में दोबारा चुनावी मैदान में उतारा. पार्टी को भरोसा था कि ये सांसद दोबारा अपना कमाल दिखाएंगे और पार्टी को एक बड़ी जीत की ओर ले जाएंगे. इन उम्मीदवारों को अतिआत्मविश्वास था कि मोदी-योगी के नाम के सहारे ये फिर एक बार संसद के द्वार पहुंच जाएंगे लेकिन ये राह इतनी आसान नहीं थी. इन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि जनता फिर एक बार इन्हें वोट देने के मूड में नहीं थी...इनमें से ज्यादातर सांसदों ने अपने-अपने क्षेत्र में मतदाताओं से दूरी बनाए रखी. केंद्रीय और राज्य सरकार की योजनाओं का लोगों को लाभ तो मिला लेकिन स्थानीय स्तर पर इनसे नाराजगी भारी पड़ी. लोकल मुद्दे इन सांसदों के खिलाफ गए और अति आत्मविश्वास भारी पड़ा, जो सीधे तौर पर नतीजों पर दिखा.


2. 'राम' नहीं दूसरे मुद्दे चले


बीजेपी को उम्मीद थी कि राम मंदिर का मुद्दा उनके काम आएगा. लोग राम के नाम पर वोट देने के बजाए स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा वोट देते नजर आए. यूपी में अखिलेश ने पेपरलीक और अग्निवीर का मु्द्दा उठाया, जो सीधे युवाओं से जुड़ा था. ऐसे में यूपी के वो युवा जो लगातार पेपरलीक की खबरों से परेशान थे, उन्होंने पार्टी के खिळाफ वोट दिया. अखिलेश ने जातिगत समीकरण को देखते हुए उम्मीदवार तय किए, जिसका सीधा फायदा सीटों में दिखा और जहां जिस जाति की ज्यादा आबादी वहां उस जाति के उम्मीदवार की रणनीति अखिलेश के काम आई और वो बीजेपी पर भारी पड़े. संविधान पर बीजेपी नेताओं का बयान भी दलित और पिछड़े वर्ग के वोटर को पार्टी से दूर ले गया.


3. भीतरघात


चुनाव में हार की बड़ी वजह पार्टी भितरघात को भी माना जा रहा है. कई सीटों पर सांसदों के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने खुलकर प्रचार नहीं किया. पार्टी का बूथ मैनेजमेंट भी विफल रहा. पोलिंग सेंटर पर पन्ना प्रमुख मतदाताओं को लाने में नाकाम रहे. मुख्यमंत्री योगी को लेकर विपक्षी नेताओं के बयान ने भी स्थानीय स्तर पर कन्फ्यूजन पैदा किया. कार्यकर्ता आगे की रणनीति समझने में नाकाम रहे. कई सांसद यूपी पुलिस पर सवाल उठाते रहे तो कई उम्मीदवार आतंरिक तोड़फोड़ की बात करते रहे. साध्वी निरंजन ज्योति ने सीधे तौर पर पार्टी में भितरघात को हार के लिए जिम्मेदार ठहराया. पूर्वांचल में गठबंधन के उम्मीदवारों का अन्य जातियों को लेकर दिया गया बयान भी प्रचार से कार्यकर्ताओं को प्रचार से दूर ले गया जिसका सीधा असर नतीजों पर पड़ा है. 


4. नेतृत्व पर सवाल 


उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में जब इतनी बड़ी हार हुई है तो सवाल उठने लाजमी हैं. योगी मोदी जैसा सशक्त नेतृत्व, अमित शाह का सीट टू सीट प्रबंधन, सब 2024 में फेल हुआ तो पार्टी को आगे की रणनीति को गंभीरता से समीक्षा करने की जरूरत है. आगे पार्टी यूपी को लेकर बड़े फैसले कर सकती है ऐसे में मोदी सरकार के गठन बाद सबकी नजर यूपी की तरफ होगी.


(डिसस्कलेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. इन्हें ज़ी न्यूज के विचार न माना जाए.)