Ananda Bose sacs Bratya Basu: पश्चिम बंगाल (West Bengal) में राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच अदावत कोई नई बात नहीं है. खासकर बीते 10 सालों में कई बार ऐसी स्थिति आई जब राज्यपाल और सरकार के बीच तनातनी दिखाई दी. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने कई बार आरोप लगाए कि राज्यपाल केंद्र के एजेंट की तरह व्यवहार कर रहे हैं. वो जनता की चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने दे रहे. ताजा विवाद की जड़ और और मामले के तूल पकड़ने की वजह राज्यपाल आनंद बोस (CV Ananda Bose) का वो निर्देश रहा, जिसमें उन्होंने राज्य के शिक्षा मंत्री बी बसु को बर्खास्त करने की सिफारिश कर दी.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ममता बनर्जी और राज्यपाल में फिर तकरार


पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवीआनंद बोस ने शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु को हटाने का कहा है. उन्होंने राज्य सरकार से कहा, 'आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए बसु को कैबिनेट से हटा दिया जाना चाहिए. उन्होंने बसु पर ये आरोप भी लगाया कि वही ममता बनर्जी के साथ उनके रिश्ते खराब कर रहे हैं. राज्यपाल ने 30 मार्च को उत्तर बंगाल के गौर बंगा यूनिवर्सिटी में हुए तृणमूल कांग्रेस के एक सम्मेलन में बसु की मौजूदगी को आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) का उल्लंघन बताते हुए उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी.


राज्यराल ने आचार संहिता के उल्लंघन के आरोप में मंत्री को बर्खास्त करने के निर्देश जारी किए हैं. राजभवन की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि आप (बसु) हमेशा ऊंचे पद पर रहे होंगे, लेकिन कानून आपसे ऊपर है.'


बोस का पलटवार


पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस के निर्देश आने के बाद प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'यह सिफारिश उतना ही हास्यास्पद है जैसे कि अगर मैं राज्यपाल को हटाने की सिफारिश राष्ट्रपति से करूं.' बसु ने संवैधानिक सीमाओं को लांघने का आरोप लगाते हुए राज्यपाल की आलोचना भी की. बोस ने कहा कि अगर मैंने आचार संहिता का उल्लंघन किया है तो उस पर चुनाव आयोग फैसला लेगा. वो अपनी सीमाएं लांघ रहे हैं. 


विवाद की वजह भी जानिए


टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, 'ताजा विवाद की उत्पत्ति 31 राज्य-संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति पर एक जटिल कानूनी उलझन से हुई. मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट में है. इसके बीच दोनों पक्षों की ओर से जबरदस्त प्रतिक्रियाएं आ रही है. गौरतलब है कि राज्य सरकार संचालित विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में, राज्यपाल बोस ने कार्यवाहक कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर विवाद शुरू हुआ था.


मंत्री बसु ने आरोप लगाया कि उनसे कहा गया कि वो सरकार की बात न मानें और राजभवन के आदेश पर अमल करें. वहीं राज्यपाल का कहना है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है.


तमिलानाडु-केरल में सामने आ चुके हैं ऐसे मामले


पिछले साल तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने ईडी द्वारा गिरफ्तारी के बाद राज्य मंत्री वी सेंथिल बालाजी को बर्खास्त कर दिया. इससे पहले 2022 में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राज्य के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी की थी. दोनों मामलों में कहा गया कि मुख्यमंत्रियों ने राजभवन के निर्देशों की अनदेखी की थी. 


इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी की सजा पर रोक लगा दी थी. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने उनकी पत्नी की सजा को भी निलंबित कर दिया और निर्देश दिया कि वो जमानत के लिए विशेष अदालत में जा सकती हैं.


मद्रास हाईकोर्ट ने दिसंबर में आय से अधिक संपत्ति के मामले में तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री और उनकी पत्नी विशालाची को 3 साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी. तब उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. दोष मुक्त होने के बाद सीएम स्टालिन ने जब उन्हें कैबिनेट में शामिल करने को कहा तो तमिलनाडु के राज्यपाल ने उन्हें शपथ लेने से रोका. तमिलनाडु सरकार फौरन सुप्रीम कोर्ट गई थी. सर्वोच्च अदालत की प्रतिकूल टिप्पणी के बाद राज्यपाल ने पोनमुडी को मंत्री के रूप में शपथ दिलाने को मंजूरी दी थी.


क्या कहता है संविधान?


कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यपाल के ऐसे निर्देश कोई संवैधानिक आदेश नहीं है. खुद सुप्रीम कोर्ट साफ कर चुका है कि राज्यपाल किसी मंत्री को बर्खास्त करने की सिफारिश नहीं कर सकते हैं. लीगल एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि मुख्यमंत्री की सलाह के बिना राज्यपाल किसी मंत्री को हटाने की सिफारिश नहीं कर सकते.