Jamaat-E-Islami Bangladesh: बांग्लादेश में आरक्षण के विरोध में हिंसक प्रदर्शन से तख्तापलट तक और पीएम शेख हसीना के इस्तीफा और निर्वासन से लेकर बंग बंधु शेख मुजीबुर्ररहमान की आदमकद मूर्ति को तोड़ने तक सिलसिलेवार घटना के पीछे कट्टरपंथी इस्लामिक समूह जमात-ए-इस्लामी का नाम सामने आ रहा है. पाकिस्तान समर्थित इस उपद्रवी संगठन को आवामी लीग सरकार ने प्रतिबंधित कर रखा था. 


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राजनीतिक हंगामे की आड़ में कट्टरपंथी ताकतों ने उठाया फायदा


राजनीतिक हंगामे की आड़ में मौके का फायदा उठाते हुए कट्टर इस्लामिक ताकतों ने साजिशन पूरे बांग्लादेश को एक बार फिर से हिंसा की आग में झोंक दिया. राजधानी ढाका समेत बांग्लादेश के सभी जिले में अल्पसंख्यक हिंदू समाज के घरों, ऑफिस, दुकान, मंदिर और स्कूलों पर लगातार हमला, आगजनी, लूटपाट, तोड़फोड़ और महिलाओं से बलात्कार की वारदातों को अंजाम दिया जा रहा है. आइए, जानते हैं कि इन घिनौने काले कारनामों वाला संगठन जमात-ए-इस्लामी और उसकी विचारधारा क्या है?


बांग्‍लादेश में जमात-ए-इस्लामी अपने नापाक मंसूबों में कामयाब 


बांग्‍लादेश में कट्टरपंथी सियासी पार्टी जमात-ए-इस्लामी को अपने नापाक मंसूबों में कामयाब बताया जा रहा है. जमात-ए-इस्लामी और उसका स्‍टूडेंट ऑर्गनाइजेशन  इस्लामी छात्र शिबिर ने आरक्षण विरोधी प्रदर्शन को हिंसा की आग में झोंकने में अहम भूमिका निभाई. हिंसक घटनाओं के बीच परिवार के दबाव में प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्‍ता और वतन दोनों को छोड़कर भागना पड़ा. फिलहाल भारत में रुकीं शेख हसीना ब्रिटेन, अमेरिका और सिंगापुर में शरण पाने की कोशिश कर रही है.


ब्रिटिश शासन के दौरान 1941 में जमात-ए-इस्लामी की स्थापना


जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की एक पुरानी कट्टरपंथी राजनीतिक पार्टी है. ब्रिटिश शासन के दौरान अविभाजित भारत में साल 1941 में मौलाना अबुल अला मौदूदी ने जमात-ए-इस्लामी की स्थापना की थी. मिस्त्र में बने मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह जमात-ए-इस्लामी भारत की आजादी के बाद जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान और जमात-ए-इस्लामी हिंद में बंट गया. तब बदनाम इस्लामिक समूह रजाकर भी इसी का हिस्सा था. 


जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान हमेशा बांग्लादेश मुक्ति संग्राम का विरोधी था. जमात-ए-इस्लामी पार्टी चाहती थी कि बांग्‍लादेश कभी भी पाकिस्‍तान से आजाद ही न हो. इस पार्टी ने 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान पश्चिमी पाकिस्तानी सैनिकों का पक्ष लिया था. लेकिन फिर इसने जमात-ए-इस्लामी, बांग्लादेश के नाम से राजनीति शुरू कर दी. इसलिए बांग्‍लादेश बनने के बाद मुजीबुर्रहमान सरकार के दौरान जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगने शुरू हो गए थे.


पूर्व पीएम खालिदा जिया का समर्थक माना जाता है जमात-ए-इस्लामी


जमात-ए-इस्लामी को खुले तौर पर पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का समर्थक सियासी दल माना जाता है. इसलिए कहा जा रहा है कि तख्तापलट के बाद बांग्‍लादेश में बनने वाली नई सरकार में जमात-ए-इस्‍लामी भी शामिल हो सकती है. क्योंकि पहले भी सरकार में दोनों साथ रह चुके हैं. बांग्‍लादेश के चुनाव आयोग ने बीते साल देश विरोधी गतिविधियों को देखते हुए जमात-ए-इस्‍लामी पार्टी का पंजीकरण ही रद्द कर दिया था. जमात-ए-इस्‍लामी पार्टी ने इसके बाद से शेख हसीना सरकार का पुरजोर विरोध करना तेज कर दिया था. यह पार्टी ऐसे किसी राजनीतिक दांव का ही इंतजार कर रही थी.


बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध


इसके बाद शेख हसीना सरकार ने हाल ही में आतंकवाद रोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी पार्टी और इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगा दिया था. बांग्‍लादेश सरकार ने जमात-ए-इस्लामी की 1971 में भूमिका को प्रतिबंध लगाने के चार अहम वजहों में से एक बताया गया था. इस पाबंदी के कारण ही इससे जुड़े छात्रों का आरक्षण विरोधी प्रदर्शन और ज्‍यादा हिंसक हो गया. प्रदर्शनकारियों ने सरकारी संपत्ति के अलावा हिंदुओं और उनके जान-माल को अपना शिकार बनाया. 


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बांग्लादेश में हमेशा हिंदुओं पर हमलावर रहा है जमात-ए-इस्लामी 


बांग्‍लादेश में रहने वाले हिंदू हमेशा ही कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी पार्टी के निशाने पर रहे हैं. अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ हिंसक वारदातों को लेकर जमात-ए-इस्लामी के कई नेताओं के खिलाफ संगीन मामले दर्ज हैं. मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक, जमात-ए-इस्लामी और उसका छात्र इस्लामी शिबिर लगातार बांग्लादेश में हिन्दुओं के जान-माल को हमेशा निशाना बनाते रहे हैं. 


बांग्लादेश के गैर सरकारी संगठनों के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, साल 2013 से 2022 तक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर 3600 से ज्‍यादा हमले हुए हैं. इनमें से ज्‍यादातर हमलों में जमात-ए-इस्लामी का बड़ी भूमिका रही है. भारत और रूस समेत दुनिया के कई देशों में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध है, लेकिन ये संगठन नाम बदलकर या छद्म नामों से अपने सांप्रदायिक मंसूबों को हवा देता रहता है.


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