Solar Mission: सूरज का वो हिस्सा जिसकी फोटो आदित्य एल-1 ने दी, क्या है फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर?
Aditya-L1 Mission: इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने आदित्य एल-वन की भेजी तस्वीरों को अभूतपूर्व करार दिया है. 11 अलग-अलग फिल्टर का इस्तेमाल करके कैप्चर इमेजेज के बारे में इसरो ने कहा, “तस्वीरों में सीए II एच (क्रोमोस्फेरिक उत्सर्जन से संबंधित) को छोड़कर, 200 से 400 एनएम तक की तरंग दैर्ध्य में सूर्य की पहली पूर्ण-डिस्क प्रेजेंटेशन शामिल है.” इन तस्वीरों में सनस्पॉट, प्लेज और शांत सूर्य क्षेत्र शामिल हैं.
Photosphere and Chromosphere: चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत के पहले सूर्य मिशन आदित्य एल-वन (Aditya-L1 Mission) की कामयाबी भी दुनिया को आश्चर्यचकित कर रही है. भारत की स्पेस एजेंसी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने शुक्रवार (8 दिसंबर) को बताया कि सोलर मिशन Aditya-L1 ने सूरज की पहली फोटो भेजी है. 200 से 400 नैनोमीटर वेवलेंथ की सभी तस्वीरों में सूरज 11 अलग-अलग रंगों में दिखाई दे रहा है. आदित्य एल-वन सैटेलाइट के सोल अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT) पेलोड ने सूरज की ये सभी चौंका देने वाली फुल डिस्क तस्वीरें खींची हैं. आदित्य एल1 की उपलब्धियों के बारे में ISRO ने बताया कि सूरज की इन अल्ट्रवॉयलेट वेवलेंथ्स इमेज से सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर (Photosphere and Chromosphere ) को समझने में आसानी होगी. इसके साथ ही यह समझने में भी आसानी होगी कि सूरज से निकलने वाली रेडिएशन का पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है. इसरो ने कहा कि उन तस्वीरों के अध्ययन से सोलर रेडिएशन के गलत प्रभावों को कम करने या रोकने में आसानी होगी. आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि सूरज का फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर क्या है?
फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर क्या है, इसके अध्ययन से क्या होगा
सूर्य की नजर आने वाली यानी बाहरी सतह को फोटोस्फीयर या प्रकाशमंडल कहते हैं. यहां का तापमान करीब 6,000 डिग्री सेल्सियस रहता है. अंतरिक्ष में इससे कुछ हजार किलोमीटर ऊपर सौर वायुमंडल है. इसे कोरोना भी कहा जाता है. वह फोटोस्फीयर के मुकाबले 100 गुना गर्म है. वहां का तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस या उससे भी अधिक बताया जाता है. वायुमंडल के सबसे बाहरी और गर्म आवरण यानी कोरोना और प्रकाशमंडल या फोटोस्फीयर के बीच एक पारदर्शी परत को क्रोमोस्फीयर कहा जाता है. फोटो स्फीयर की तुलना में क्रोमोस्फीयर अधिक गर्म, लेकिन कम घना होता है. क्रोमोस्फीयर मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हीलियम प्लाज्मा से बना होता है. यह लाल दृश्य प्रकाश पैदा करता है. खास तौर पर ग्रहण के दौरान इसे देखा जाता है. आसान भाषा में कहें तो सूर्य की निचली परत, सूर्य की चमकती सतह, सूर्य के दिखने वाले यानी बाहरी हिस्से और सूर्य की सबसे गहरी परत को फोटोस्फीयर कहते हैं. वहीं क्रोमोस्फीयर सूर्य के प्रकाश क्षेत्र और सौर संक्रमण क्षेत्र के बीच स्थित है. आमतौर पर क्रोमोस्फीयर अदृश्य यानी पार्दर्शी है. इसे पूर्ण ग्रहण के दौरान ही देखा जा सकता है.
क्या है एल1 और कब लॉन्च हुआ था भारत का सोलर मिशन आदित्य एल1?
अंतरिक्ष में जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल समान होता है उस जगह को एल1 (लैग्रेंज प्वाइंट) कहते हैं. अंतरिक्षयान ईंधन की खपत को कम करने के लिए इस प्वाइंट का इस्तेमाल करते हैं. अंतरिक्ष के जानकारों के मुताबिक सोलर-अर्थ-मून सिस्टम (सूर्य-पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली) में अब तक पांच लैग्रेंज प्वाइंट्स का पता चला है. भारत का सूर्य मिशन आदित्य एल1 के पास जा रहा है. श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दो सितंबर को आदित्य एल-1 को सफलतापूर्वक लांच किया गया था. इसरो ने अपने सोलर मिशन के तहत इसे अंतरिक्ष में भेजा है. आदित्य 15 लाख किलोमीटर की यात्रा पूरी कर सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के एल-1 की पास की कक्षा में पहुंचेगा. एल-1 ऐसा पॉइंट है, जहां से लगातार 24 घंटे सूरज पर नजर बनाए रखी जा सकती है. अंतरिक्ष वैज्ञानिक जोसेफ लुई लाग्रेंज के नाम पर इस पॉइंट का नाम रखा गया है. इसरो का सोलर मिशन अगले पांच साल के दौरान एल-1 से ही आदित्य सूर्य का अध्ययन करेगा और पिक्चर के जरिए इसे भेजेगा.
आदित्य एल-1 में लगे हैं 7 पेलोड, सूरज के अलावा लाग्रेंज पॉइंट-1 पर पार्टिकल्स और फील्ड्स की भी स्टडी
आदित्य एल-1 ने इससे पहले 6 दिसंबर को भी सूरज की पहली लाइट साइंस तस्वीरें कैप्चर की थीं. इसके बाद सूरज की फुल डिस्क इमेज यानी सूरज के पूरी तरह से सामने वाले हिस्से की तस्वीरें कैप्चर की गई है. आदित्य एल-1 की इन तस्वीरों में सूरज पर मौजूद धब्बे, प्लेज और इसके शांत पड़े हिस्से देख सकते हैं. सोलर मिशन आदित्य एल-1 में SUIT समेत 7 पेलोड का इस्तेमाल किया गया है. सीधे सूरज पर नजर बनाए रखने के लिए इसमें चार पेलोड हैं. बाकी तीन लाग्रेंज पॉइंट-1 पर पार्टिकल्स और फील्ड्स का इन-सीटू की स्टडी के लिए हैं. इन सात पेलोड में सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT), विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (VELC), हाई एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS), सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS), प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य (PAPA), आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्पेरिमेंट (ASPEX) और एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रिजॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर शामिल हैं. SUIT, SoLEXS और HEL1OS पेलोड सूरज पर नजर बनाए रखने के लिए है.
सूर्य के उच्च तापमान, सतहों में आपसी अंतर और ऊर्जा के स्रोत पर क्या कहता है विज्ञान
साल 1930 के दशक के आखिर में ही सूर्य को लेकर अध्ययन कर रहे अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को कोरोना की ताप समस्या का पता लग गया था. स्वीडन के स्पेक्ट्रोस्कोपिस्ट बेंग्ट एडलेन और जर्मनी के खगोल भौतिकविद वाल्टर ग्रोटियान ने पहली बार सूर्य के कोरोना में ऐसी घटना के देखा, जिसके होने के लिए तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस के आस-पास होना जरूरी होता है. यह कोरोना के निचली सतह से 1,000 गुणा ज्यादा तापमान को दिखाता है. इसीको फोटोस्फीयर कहते हैं. सूर्य की इस बाहरी सतह है को हम धरती से देख सकते हैं. सूर्य की सतहों पर तापमान में इतना अधिक अंतर वैज्ञानिक समुदाय के लिए पहेली जैसा रहा है. इस अंतर की व्याख्या के लिए अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने सूर्य की प्रकृति और विशेषताओं को समझने की कोशिश लगातार जारी रखी हुई है.
फोटोस्फीयर को बायपास कर सूर्य के ऊपरी वायुमंडल में कैसे फैल जाता है टेम्परेचर
इसके बाद साल 1942 में स्वीडन के वैज्ञानिक हेन्स एल्फवेन ने एक व्याख्या प्रस्तावित करते हुए सिद्धांत दिया था कि प्लाज्मा की चुंबकीय तरंगें सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र के आस-पास बड़ी मात्रा में ऊर्जा को उसके आंतरिक हिस्से से कोरोना तक ले जाती हैं. यह तापमान फोटोस्फीयर को बायपास कर सूर्य के ऊपरी वायुमंडल में फैल जाता है. सूर्य लगभग पूरी तरह इलेक्ट्रिकल चार्ज ले जाने वाली अत्यधिक आयनित गैस के प्लाज्मा का बना हुआ है. इसके आधार पर एल्फवेन ने कहा था कि सूर्य के चुंबकीय प्लाज्मा के भीतर विद्युत रूप से आवेशित कणों की भारी भरकम हरकते चुंबकीय क्षेत्र में व्यवधान डालती हैं. इससे पैदा तरंगें बड़ी दूरियों के साथ-साथ बड़ी मात्रा में ऊर्जा को सूर्य की सतह से उसके ऊपरी वायुमंडल तक ले जाती हैं. सौर चुंबकीय प्रवाह ट्यूब के साथ-साथ चलता तापमान कोरोना में जाकर विस्फोट कर जाता है. इससे उच्च तापमान पैदा होता है.