नई दिल्ली: भारत में हृदय रोग संबंधी कोरोनरी धमनी रोग (सीएडी) में पिछले तीन दशकों में 300 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है. प्रभावित लोगों में दो से छह प्रतिशत गांवों से हैं जबकि शहरी भारत में ऐसे मरीजों की संख्या चार से 12 प्रतिशत है. एक अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है. सीएडी पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि कार्बोहाइड्रेट और रिफाइंड शुगर या चीनी से यह बीमारी पैदा होती है, जबकि कोलेस्ट्रॉल इसके लिए जिम्मेदार नहीं है. 


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दिल्ली के पटपड़गंज स्थित मैक्स बालाजी के कार्डियक कैथ लैब के हेड डॉ. मनोज कुमार ने कहा, 'सीएडी तब होता है जब दिल की मांसपेशियों में रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनी कठोर और संकरी हो जाती है. ऐसा कोलेस्ट्रॉल और अन्य सामग्री की मौजूदगी के कारण होता है, जिसे प्लेक कहा जाता है. यह धमनियों की भीतरी दीवारों पर जम जाता है. जैसे ही यह बढ़ता है, धमनियों के माध्यम से रक्त का बहना कम हो जाता है. नतीजा यह होता है कि हृदय की मांसपेशियों को जरूरत के मुताबिक रक्त या ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है. इससे सीने में दर्द (एंजिना) हो सकता है या दिल का दौरा पड़ सकता है'. 


सीएडी के लिए कुछ अन्य जोखिम कारकों में धूम्रपान, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज या इंसुलिन रेसिस्टेंस और बैठे रहने वाली जीवनशैली शामिल है. इसके लक्षणों में सांस लेने में कठिनाई, घबराहट, दिल की अनियमित धड़कन, दिल तेजी से धड़कना, कमजोरी या चक्कर आना, मतली और पसीना आना शामिल है. डॉ. कुमार ने बताया, 'रोटी, पास्ता और कार्बोहाइड्रेट युक्त अन्य रिफाइंड उत्पादों के प्रतिकूल प्रभाव मोटे और इंसुलिन रेसिस्टेंट लोगों में विशेष रूप से स्पष्ट होने की संभावना है. सीएडी एक ऐसे मोड़ पर भी पहुंच सकता है जहां व्यक्ति को आराम करते हुए भी इस्कैमिया हो सकता है. यह एक मेडिकल इमर्जेंसी है और इससे दिल का दौरा पड़ सकता है'. 


सीएडी के कुछ सामान्य उपचार विकल्पों में बैलून एंजियोप्लास्टी, स्टेंट प्लेसमेंट और कोरोनरी धमनी बाईपास सर्जरी शामिल है. दिल के दौरे के बाद शुरुआती घंटों के भीतर एंजियोप्लास्टी होने से जटिलताओं का खतरा कम हो सकता है. एंजियोप्लास्टी के बाद रखा गया स्टेंट रक्त बहने और धमनी को फिर से संकरा होने से रोकने में मदद करता है. 


दिल की बीमारियों के इलाज के लिए अभिनव तरीकों का अध्ययन करने के लिए अनुसंधान जारी है. उदाहरण के लिए, एंजियोजेनेसिस, जिसमें स्टेम कोशिकाओं और अन्य जेनेटिक सामग्री को वेन्स के जरिये सीधे ही या क्षतिग्रस्त हृदय ऊतकों में भेजा जाता है.


(इनपुट-आईएएनएस)