बचपन में वायु प्रदूषण में ज्यादा रहने वाले बच्चों को जवानी में हो सकता है फेफड़ों की बीमारी
हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार, बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चों को जवानी में फेफड़ों की बीमारियों का खतरा अधिक होता है.
क्या आप जानते हैं कि बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने का आपके फेफड़ों पर गहरा असर पड़ सकता है? हाल ही में हुए एक शोध के अनुसार, बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाले बच्चों को जवानी में फेफड़ों की बीमारियों का खतरा अधिक होता है. साथ ही इसमें शोधकर्ताओं ने प्रदूषण को कम करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है.
साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी (यूएससी) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के बाद वयस्क अवस्था में ब्रोंकाइटिस के लक्षणों जैसे पुरानी खांसी, कंजेशन या कफ बनना देखा गया है. इन बीमारियों का सर्दी लगने से कोई लिंक नहीं था. अमेरिकन जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्लिनिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन में 1,308 बच्चों की सेहत की जांच की गई. उनकी वयस्क मूल्यांकन के समय औसत आयु 32 वर्ष थी. शोध के परिणामों से यह बात सामने आई कि प्रतिभागियों में से एक-चौथाई ने पिछले 12 महीनों के भीतर ब्रोंकाइटिस के लक्षणों का अनुभव किया.
रेस्पिरेटरी सिस्टम पर प्रभाव
केक स्कूल ऑफ मेडिसिन में जनसंख्या और पब्लिक हेल्थ साइंस की असिस्टेंट प्रोफेसर एरिका गार्सिया ने कहा कि निष्कर्षों से पता चलता है कि बचपन में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम पर ज्यादा सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है, जो वयस्कता में भी हमें प्रभावित करता है. ब्रोंकाइटिस के लक्षणों की उपस्थिति जन्म से 17 वर्ष की आयु के बीच दो प्रकार के प्रदूषक पदार्थों के संपर्क से जुड़ी थी.
कैसे हुआ अध्ययन
एक ग्रुप में हवा में उपस्थित माइक्रोस्कोपिक पार्टिकल में जैसे धूल, पराग, जंगल की आग से उत्पन्न राख, इंडस्ट्रियल एमिशन और वाहनों से निकलने वाले धुएं के कण शामिल हैं. दूसरा नाइट्रोजन डाइऑक्साइड है जो ऑटोमोबाइल, विमान, नावों और बिजली संयंत्रों में दहन का एक बाई प्रोडक्ट है, जो फेफड़ों के काम करने की क्षमता को नुकसान पहुंचाने के लिए जाना जाता है.
शोध का फोकस
इस शोध में बच्चों पर फोकस किया गया, वे वायु प्रदूषण के प्रभावों के प्रति विशेष रूप से सेंसिटिव होते हैं. उनकी रेस्पीरेटरी और इम्यून सिस्टम अभी भी विकसित होती रहती है और वयस्कों की तुलना में वे अपने शरीर के वजन के तुलना में अधिक सांस लेते हैं. टीम ने यह भी पाया कि बचपन में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर के संपर्क में आने से बच्चों पर बहुत बुरा असर पड़ता है. वहींं, वयस्कों में ब्रोंकाइटिस के लक्षणों पर अध्ययन का प्रभाव उन लोगों में अधिक था, जिन्हें बचपन में अस्थमा होने का पता चला था.