जलवायु परिवर्तन: भीषण गर्मी से सदी के अंत तक 1.15 करोड़ लोगों की मौत का खतरा!
एक ताजा अध्ययन में दावा किया है कि सदी के अंत (यानी 2100) तक ज्यादा गर्मी से 1.15 करोड़ लोगों की मौत हो सकती है. यह गर्मी फॉसिल फ्यूल के उत्सर्जन से पैदा होगी.
अमेरिका की पर्यावरण संस्था ग्लोबल विटनेस और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि सदी के अंत (यानी 2100) तक ज्यादा गर्मी से 1.15 करोड़ लोगों की मौत हो सकती है. यह गर्मी फॉसिल फ्यूल (fossil fuels) के उत्सर्जन से पैदा होगी. अध्ययन के अनुसार, अगर 2050 तक उत्सर्जन का लेवल यही रहा तो 2100 तक गर्मी अपने घातक लेवल तक पहुंच जाएगी, जिसके कारण करोड़ों जान जाने का खतरा है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि फॉसिल फ्यूल के उत्सर्जन से गर्मी के लेवल में 0.1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी भी खतरनाक होगी. कोलंबिया यूनिवर्सिटी के कार्बन मॉडल से पता चला कि प्रत्येक मिलियन टन कार्बन में बढ़ोतरी से दुनियाभर में 226 ज्यादा हीटवेव की घटनाएं बढ़ेगी. फॉसिल फ्यूल से कार्बन उत्सर्जन के मामले में वर्तमान में चीन सबसे ऊपर है. वह कुल उत्सर्जन के 31% के लिए जिम्मेदार है. इसके बाद अमेरिका 26% और रूस 20% के लिए जिम्मेदार है.
पिछले साल रिकॉर्ड उत्सर्जन हुआ
जर्नल अर्थ सिस्टम साइंस डेटा में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में 36.8 अरब मीट्रिक टन का कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन हुआ. यह 2022 से 1.1 फीसदी अधिक है. यूरोपीय देशों में स्थापित तेल कंपनियों से भी भारी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हो रहा है. इनसे उत्पादित जीवाश्म ईंधन से 2050 तक वायुमंडल में 51 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन बढ़ा देंगे. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति (आईपीसीसी) ने कहा कि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है, तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटाना होगा. हालांकि उत्सर्जन का लेवल पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ा है.
कुछ वर्षों में हीटवेव से हर महाद्वीप होगी प्रभावित
शोधकर्ताओं ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में तीव्र और घातक हीटवेव ने लगभग हर महाद्वीप को प्रभावित किया है. इससे जंगल में आग लगने से हजारों लोगों की जान चली गई. वहीं यूरोप में भीषण गर्मी के प्रकोप से 2022 में 60 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई.
श्रमिक ज्यादा होंगे प्रभावित
शोधकर्ताओं ने बताया कि हीटवेव या गर्मी का ज्यादा असर सबसे गरीब और कमजोर लोगों पर पड़ता है. इससे बेघर लोगों, बाहर काम करने वालों और बुजुर्गों को अधिक दिक्कत होती है. दक्षिण एशिया देशों में हीटवेव के कारण सूखे के लेवल में बढ़ोतरी हुई, जिससे 1 लाख लोगों की मौत हो गई. यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न हीटवेव एक गंभीर खतरा है, और इसके लिए तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता है. हमें फॉसिल फ्यूल पर अपनी निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की आवश्यकता है. साथ ही, हमें गरीब और कमजोर समुदायों को हीटवेव से बचाने के लिए भी कदम उठाने होंगे.