नई दिल्ली: आपने भी बचपन से ही अपनी दादी-नानी या फिर अपनी मम्मी से ये बात जरूर सुनी होगी कि मछली और दूध का सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए वरना इससे स्किन पर सफेद रंग के दाग और चकत्ते की बीमारी हो जाती है. आज भी बड़ी संख्या में लोग इस बात को सच मानते हैं और मछली और दूध के कॉम्बिनेशन को सेहत के लिहाज से खतरनाक समझते हैं. सफेद दाग की इस बीमारी को मेडिकल टर्म में विटिलिगो (Vitiligo) कहा जाता है जिसमें शरीर के किसी भी हिस्से में सफेद रंग के पैचेज (White Patches on Skin) बनने लगते हैं. तो आखिर दूध और मछली का स्किन की इस बीमारी से क्या संबंध है, इस बारे में क्या कहते हैं हेल्थ एक्सपर्ट्स, जानने के लिए यहां पढ़ें.


दूध और मछली का सफेद दाग से क्या संबंध है?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

किसी भी चीज को खाने या फिर मछली के साथ दूध पीने (Milk and Fish together) या मछली में डेयरी प्रॉडक्ट्स जैसे दही आदि मिलाकर खाने से विटिलिगो यानी सफेद दाग की बीमारी होती है, इस बात को साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक तथ्य मौजूद नहीं है. साथ ही इस बात के भी कोई सबूत मौजूद नहीं है कि व्यक्ति की डाइट की वजह से स्किन की ये बीमारी और ज्यादा गंभीर हो सकती है. अलग-अलग तरह के डाइट का सेवन करने वालों में भी यह बीमारी एक ही तरह से देखने को मिलती है. 


ये भी पढ़ें- कैंसर से बचना है तो रोज खाएं मछली, फायदे जानकर रह जाएंगे हैरान


आयुर्वेद की राय है साइंस से अलग


हालांकि आयुर्वेद (Ayurveda) एक्सपर्ट्स की मानें तो मछली नॉन वेज है और दूध भले ही ऐनिमल प्रॉडक्ट हो लेकिन वेजिटेरियन है. इसके अलावा दूध की तासीर ठंडी होती है और मछली की तासीर गर्म. ऐसे में 2 अलग-अलग कॉम्बिनेशन की चीजों का एक साथ सेवन करने से शरीर में तमस गुण बढ़ता है जिससे असंतुलन की स्थिति हो जाती है. साथ ही दो बिलकुल अलग प्रकृति वाली चीजों को एक साथ खाने से खून में केमिकल चेंज होता है जिसके कारण स्किन पिग्मेंटेशन (Skin Pigmentation) यानी रंजकता की समस्या हो सकती है जिसे ल्युकोडर्मा कहते हैं. कुछ न्यूट्रिशनिस्ट भी यही मानते हैं कि मछली प्रोटीन से भरपूर होती है और प्रोटीन फूड्स और डेयरी प्रॉडक्ट एक साथ नहीं खाने चाहिए वरना सफेद दाग का तो पता नहीं लेकिन पाचन से जुड़ी दिक्कत और एलर्जी (Allergy) जरूर हो सकती है.


ये भी पढ़ें- इन 5 कारणों से ट्रिगर हो सकती है स्किन इंफेक्शन की बीमारी एक्जिमा


विटिलिगो या सफेद दाग क्या है, क्यों होता है?


पूरी दुनिया में 1 से 2 प्रतिशत लोगों को ही ये बीमारी होती है और ये एक ऑटोइम्यून बीमारी (Autoimmune Disease) है जो गैर-संक्रामक भी है यानी छूने से फैलती नहीं है. ऑटोइम्यून का मतलब है कि शरीर की इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बैक्टीरिया, वायरस के खिलाफ काम करने के अलावा अपने ही शरीर के कुछ सेल्स को मारने लगती है. हमारे शरीर में मेलेनोसाइट्स नाम के सेल्स होते हैं. विटिलिगो या सफेद दाग की इस बीमारी में शरीर की इम्यूनिटी इन मेलेनोसाइट्स सेल्स को मारने लगती है. जब मेलेनोसाइट्स नहीं होगा तो स्किन में मेलनिन नहीं बनेगा और स्किन के जिस हिस्से में मेलनिन नहीं होगा वहां पर सफेद दाग बन जाएंगे.


ये भी पढ़ें- जिन्हें डायबिटीज नहीं है उन्हें भी शुगर का मरीज बना रहा कोरोना वायरस


क्या विटिलिगो से बचा जा सकता है?


मौजूदा समय में विटिलिगो या सफेद दाग की इस बीमारी का कोई निश्चित इलाज मौजूद नहीं है और ना ही इस बीमारी से बचने का कोई उपाय मौजूद है. बीमारी के इलाज में डॉक्टर स्किन में दोबारा पिग्मेंट डालने की कोशिश करते हैं और पिग्मेंटेशन यानी रंजकता को होने से रोकते हैं ताकि स्किन पर इसका और अधिक प्रभाव न दिखे. स्किन को होने वाले नुकसान और पिग्मेंटेशन से बचने के लिए सूरज की रोशनी में कम से कम रहना ही बेहतर होगा. त्वचा के रंग को फिर से पहले जैसा करने के लिए भी इलाज के कुछ तरीके मौजूद हैं लेकिन ये सभी लोगों पर एक समान तरीके से काम नहीं करता.


सेहत से जुड़े अन्य लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.