भारतीय मूल के शोधकर्ता ने की ऑटिज्म और मिर्गी से जुड़े जीन की खोज
भविष्य में ऑटिज्म और मिर्गी का इलाज मुमकिन और आसान हो सकता है. हाल ही में हुए एक स्टडी में इस बीमारी की जड़ के बारे में जानकारी मिली है.
भारतीय मूल के न्यूरोसाइंटिस्ट विजी संथाकुमार के नेतृत्व में एक शोध टीम ने एक महत्वपूर्ण जीन की खोज की है, जो ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिजीज और मिर्गी जैसी तंत्रिका संबंधी समस्याओं से जुड़े व्यावहारिक परिवर्तनों के विकास में योगदान देता है.
इस अध्ययन में न्यूरोपिलिन2 नामक जीन की भूमिका को उजागर किया गया है, जो मस्तिष्क में कोशिका अंतःक्रियाओं और तंत्रिका सर्किट के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह शोध नेचर मॉलिक्यूलर साइकियाट्री पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, और भविष्य में इन विकारों के लक्षणों को कम करने के लिए उपचार के नए मार्ग खोल सकता है.
न्यूरोपिलिन2 जीन की खोज और इसका महत्व
इस शोध का मुख्य उद्देश्य ऑटिज्म और मिर्गी से जुड़े तंत्रिका संबंधी विकारों की समझ को और गहरा करना था. शोधकर्ताओं ने पाया कि न्यूरोपिलिन2 जीन मस्तिष्क में कोशिकाओं की अंतःक्रिया में एक रिसेप्टर को एनकोड करता है, जो तंत्रिका सर्किट के विकास के लिए जरूरी है. पहले के शोध में यह देखा गया था कि न्यूरोपिलिन2 में म्यूटेशन ऑटिज्म और मिर्गी जैसे विकारों से जुड़े होते हैं, लेकिन इस जीन के कार्य तंत्र को स्पष्ट रूप से समझने में कठिनाई थी.
शोधकर्ताओं ने कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-रिवरसाइड में माउस मॉडल का उपयोग करके न्यूरोपिलिन2 जीन के नष्ट होने पर उत्पन्न परिणामों का अध्ययन किया. परिणामस्वरूप, टीम ने पाया कि इस जीन की अनुपस्थिति मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के प्रवास को रोकती है, जिससे मस्तिष्क के संकेतों में बाधा आती है और इसका परिणाम ऑटिज्म जैसे व्यवहारिक लक्षण और मिर्गी के दौरे होते हैं.
शोध से नई चिकित्सा संभावनाएं
संथाकुमार ने कहा कि यह असंतुलन ऑटिज्म और मिर्गी दोनों के जोखिम को बढ़ा सकता है. हमारे शोध से यह पता चलता है कि एक जीन किस प्रकार मस्तिष्क में दोनों प्रकार की प्रणालियों, स्टिमुलेंट्स और इनहिबिटर्स को प्रभावित करता है. हम यह दिखाते हैं कि यदि सर्किट डेवलपमेंट को बाधित किया जाए तो ऑटिज्म और मिर्गी एक साथ विकसित हो सकते हैं.
यह अध्ययन यह भी दर्शाता है कि न्यूरोनल विकास के विशिष्ट चरणों को लक्षित करके चिकित्सीय हस्तक्षेप किए जा सकते हैं, जो इन विकारों की शुरुआत को रोकने में मदद कर सकते हैं. शोधकर्ताओं ने माना कि यदि चिकित्सीय हस्तक्षेप सही समय पर किया जाए, तो यह विकारों के शुरुआती लक्षणों को कम कर सकता है और बेहतर परिणाम ला सकता है, खासकर उन लोगों के लिए जो मिर्गी से पीड़ित हैं.
शोधकर्ताओं की टीम और सहयोग
इस अध्ययन में संथाकुमार के साथ उनके सहयोगी, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय-रिवरसाइड के दीपक सुब्रमण्यन, एंड्रयू हुआंग और समीक्षा कोमाटिरेड्डी, तथा रटगर्स विश्वविद्यालय के कैरोल ईसेनबर्ग, जियोन बेक, हानिया नवीद, माइकल डब्ल्यू. शिफलेट और ट्रेसी एस. ट्रान भी शामिल थे. इस अध्ययन ने न्यूरोसाइंस के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है और भविष्य में ऑटिज्म और मिर्गी के इलाज के लिए नई चिकित्सा रणनीतियों को विकसित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
एजेंसी