कुछ महिलाओं में प्रजनन क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे वह प्राकृतिक तरीके से गर्भधारण नहीं कर पाती हैं. लेकिन, ऐसी महिलाओं के लिए आईवीएफ उम्मीद की किरण बनता है. मगर बच्चा पैदा करने के लिए आईवीएफ अपनाने पर कुछ खतरों का भी संदेह होता है. जो कि मां और शिशु दोनों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं. आइए आईवीएफ के खतरों के बारे में जानते हैं.


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आईवीएफ अपनाने पर मां-शिशु को हो सकते हैं ये खतरे
मायोक्लीनिक के मुताबिक, आईवीएफ निम्नलिखित खतरों का संदेह पैदा कर सकता है.


मल्टीपल बर्थ- अगर महिला आईवीएफ प्रक्रिया अपनाती है, तो वह एकसाथ एक से ज्यादा बच्चे की मां बन सकती है. जिसे मल्टीपल बर्थ कहा जाता है. जिसमें सामान्य से जल्दी लेबर की समस्या भी हो सकती है.


प्रीमैच्योर डिलीवरी- रिसर्च कहती है कि आईवीएफ के कारण बच्चे के समय से पहले पैदा होने का खतरा हो सकता है. इसके साथ ही बच्चे का वजन सामान्य से कम हो सकता है.


ओवेरियन हाइपरस्टीम्युलेशन सिंड्रोम- आईवीएफ के अंदर इंजेक्टेबल फर्टिलिटी ड्रग्स दिए जाते हैं, जिससे ओवरी में सूजन और दर्द की शिकायत हो सकती है. इसे ओवेरियन हाइपरस्टीम्युलेशन सिंड्रोम कहा जाता है.


गर्भपात- अगर महिला की उम्र ज्यादा है, तो आईवीएफ के दौरान गर्भपात का खतरा अधिक होता है.


जन्मजात विकार- कुछ रिसर्च कहती हैं कि महिला की उम्र शिशु के जन्मजात विकार से संबंध रखती है.


एक्टोपिक प्रेग्नेंसी- कुछ महिलाओं में आईवीएफ अपनाने के बाद एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का खतरा हो सकता है. जिसमें फर्टिलाइज एग गर्भ के बाहर इंप्लांट हो जाता है. ऐसा एग के जरिए गर्भावस्था नहीं होती.


तनाव- आईवीएफ प्रक्रिया अपनाने पर शारीरिक, आर्थिक और भावनात्मक तनाव पैदा हो सकता है. जिससे उबरने के लिए परिवार, दोस्त और काउंसलर की मदद ली जा सकती है.


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