इन महीनों में बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं को Depression का खतरा अधिक: स्टडी
क्या आप जानती हैं कि किसी गर्भवती महिला की डिलीवरी किस महीने में होती है इसका भी इस बात पर असर पड़ता है कि नई मां को डिलीवरी के बाद होने वाले डिप्रेशन का खतरा होगा या नहीं. क्या कहती है नई स्टडी यहां जानें.
नई दिल्ली: इसमें कोई शक नहीं कि एक ही महिला की 2 प्रेग्नेंसी (Pregnancy) में उसे दो अलग-अलग तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि हर प्रेग्नेंसी एक दूसरे से अलग होती है. गर्भवास्था के दौरान दिखने वाले लक्षणों से लेकर मूड स्विंग (Mood Swing) और डिलीवरी का तरीके यानी नॉर्मल या सिजेरियरन तक सबकुछ अलग-अलग हो सकता है. लेकिन प्रेग्नेंसी से जुड़ी एक और समस्या जिसके बारे में पहले बात नहीं की जाती थी लेकिन अब खुलकर बात की जा रही है वह है- पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) यानी बच्चे को जन्म देने के बाद नई मां को होने वाला डिप्रेशन. एक नई रिसर्च की मानें तो गर्भवती महिला की डिलीवरी साल के किस महीने में होती है, इस पर भी काफी हद तक निर्भर करता है कि महिला को डिप्रेशन का सामना करना पड़ेगा या नहीं.
गर्मी और शरद ऋतु में जन्मे बच्चे की मां को डिप्रेशन का खतरा अधिक
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार इस स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने जून 2015 से अगस्त 2017 के बीच बच्चे को जन्म देने वाली 20 हजार महिलाओं की जांच की. स्टडी के नतीजों से पता चला कि जिन महिलाओं ने सर्दी (Winter) या बसंत के मौसम (Spring) में बच्चे को जन्म दिया उनमें पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने का खतरा कम था उन महिलाओं की तुलना में जिन्होंने गर्मी (Summer) या शरद ऋतु (Autumn or Fall) में बच्चे को जन्म दिया.
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जुड़े अन्य जोखिम कारक
अमेरिकन सोसायटी ऑफ एनेस्थीसियोलॉजिस्ट्स की मीटिंग के दौरान शोधकर्ताओं ने इस स्टडी को प्रेजेंट किया और यह भी बताया कि किस मौसम में बच्चे का जन्म होता सिर्फ यही एक रिस्क फैक्टर नहीं है जिसकी वजह से नई मां को डिप्रेशन होता है. इसके अलावा भी कई जोखिम कारक हैं जिसमें नई मां का वजन, डिलीवरी के दौरान एपिड्यूरल (Epidural) का इस्तेमाल और बच्चा कितने दिन मां के गर्भ में रहा जैसी चीजें भी शामिल हैं.
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जन्म के महीने का डिप्रेशन से है क्या संबंध?
गर्मी या शरद ऋतु में बच्चे को जन्म देने वाली मां को डिप्रेशन होने का खतरा ज्यादा क्यों है, इसके कई कारण हैं. सबसे पहला और अहम कारण यह है कि नई मां बच्चे की देखभाल के कारण कई महीनों तक घर से बाहर नहीं निकल पाती और इसलिए सूरज की रोशनी न मिलने की वजह से शरीर में विटामिन डी की कमी (Vitamin D deficiency) होने लगती है. विटामिन डी की कमी डिप्रेशन का सबसे अहम जोखिम कारक है. कई स्टडीज की मानें तो बहुत सी नई मां को तो पता भी नहीं होता कि वे पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजर रही हैं.
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पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षण क्या हैं?
पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक गंभीर समस्या है जो डिलीवरी के तुरंत बाद शुरू होती है और 4 से 6 सप्ताह तक जारी रहती है. कुछ मामलों में तो इस तरह का डिप्रेशन प्रेग्नेंसी के दौरान ही शुरू हो जाता है और करीब 1 साल तक नई मां इस समस्या से जूझती रहती है. इस डिप्रेशन के लक्षणों में शामिल है- भूख न लगना, बहुत अधिक रोना आना, हद से ज्यादा थकान महसूस होना, बेचैनी और चिंता महसूस करना, अनिद्रा, बच्चे के साथ अपनी बॉन्डिंग बनाने में मुश्किल आना, हर वक्त गुस्से में रहना.
(नोट: किसी भी उपाय को करने से पहले हमेशा किसी विशेषज्ञ या चिकित्सक से परामर्श करें. Zee News इस जानकारी के लिए जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)