शादी से पहले दोनों लोगों की कुंडली मिलाई जाती है. क्योंकि मान्यता है कि दो लोगों की कुंडली में जितने गुण मिलते हैं, भविष्य में उनका शादीशुदा जीवन उतना ही आनंद में बितता है. लेकिन, शादी के समय कुंडली की तरह Rh Factor भी मिलाना चाहिए. जिसकी मदद से हेल्दी बच्चा पाने में मदद मिलती है. आइए जानते हैं कि Rh Factor क्या है और डिलीवरी से पहले इसकी जांच क्यों जरूरी है?


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Rh Factor क्या है?
ग्रेटर नोएडा स्थित शारदा हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ (गायेनेकोलॉजिस्ट) डॉ. रुचि ने बताया कि Rh Factor एक प्रोटीन होता है, जो रेड ब्लड सेल्स की सतह पर मौजूद होता है. जिन लोगों की रेड ब्लड सेल्स के ऊपर यह प्रोटीन होता है, उन्हें Rh-positive कहा जाता है. इसके विपरीत जिन लोगों के शरीर में किसी भी रेड ब्लड सेल्स के ऊपर यह प्रोटीन नहीं होता है, उन्हें Rh-negative कहा जाता है. एक्सपर्ट बताती हैं कि करीब 80-85 प्रतिशत महिलाएं आरएच पॉजिटिव होती हैं.


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बच्चे का Rh Factor कैसे निर्धारित होता है?
डॉ. रुचि का कहना है कि, बच्चे का आरएच फैक्टर माता-पिता के Rh Factor से मिलकर बनता है. मसलन, अगर फीमेल और मेल पार्टनर दोनों का आरएच फैक्टर positive है, तो बच्चा भी Rh-positve होगा. वहीं, जब दोनों पार्टनर का आरएच फैक्टर नेगेटिव होता है, तो बच्चा भी Rh-negative होता है. लेकिन जब संभावित मां यानी फीमेल पार्टनर आरएच नेगेटिव होती है और संभावित पिता यानी मेल पार्टनर आरएच पॉजिटिव होता है, तो ऐसे में काफी संभावना है कि बच्चा Rh-negative हो और यही स्थिति बच्चे के लिए खतरनाक हो सकती है. जिसे Rh incompatibility कहा जाता है. यहां ध्यान देने वाली ये बात है कि, अगर मां आरएच पॉजिटिव है और बच्चा आरएच नेगेटिव होता है, तो परेशानी वाली कोई बात नहीं है.


Rh Factor से शिशु को खतरा
डॉ. रुचि कहती हैं कि सभी स्थितियों में पहली प्रेग्नेंसी सुरक्षित रहती है. लेकिन, अगर मां Rh-negative है और बच्चा Rh-positive है, तो पहली डिलीवरी के दौरान होने वाली फीटोमैटनरल ब्लीड (डिलीवरी या उससे पहले शिशु का रक्त गर्भवती महिला के रक्त में प्रवेश करना) के कारण दूसरी व उसके बाद की प्रेग्नेंसी में शिशु को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जैसे-


  • गर्भपात (दूसरी तिमाही तक भ्रूण की मृत्यु)

  • स्टिलबर्थ (मृत बच्चे का जन्म)

  • इंट्रायूटेराइन डेथ (गर्भाशय में बच्चे की मृत्यु)

  • बच्चे में एनीमिया की समस्या (रेड ब्लड सेल्स कम होना), आदि


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आरएच फैक्टर से गर्भपात क्यों हो सकता है?
एक्सपर्ट बताती हैं कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, पहली डिलीवरी के दौरान फीटोमैटनरल ब्लीड होने से गर्भवती महिला का इम्यून सिस्टम Rh Factor प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है. जिसे Rh sensitization कहा जाता है. Rh sensitization होने के बाद जब दूसरी या तीसरी बार प्रेग्नेंसी होती है, तो इम्यून सिस्टम Rh-positive शिशु के अंदर मौजूद प्रोटीन को खतरा समझकर नष्ट करने लगता है. जिसके कारण गर्भपात या शिशु में रेड ब्लड सेल्स की कमी हो सकती है.


डॉक्टर कैसे करते हैं बचाव?
गायेनेकोलॉजिस्ट डॉ. रुचि कहती हैं कि गर्भवती होते ही महिला और हस्बैंड पार्टनर का Rh Factor चेक किया जाता है. अगर महिला के अंदर नेगेटिव आरएच फैक्टर है और पुरुष के अंदर पॉजिटिव आरएच फैक्टर है, तो बचाव के निम्नलिखित तरीके अपनाए जाते हैं. जैसे-


  1. सबसे पहले Indirect Coombs Test (ICT) किया जाता है. अगर ICT नेगेटिव है, तो इसका मतलब है कि गर्भवती महिला में Rh sensitization नहीं हुआ है.

  2. ICT नेगेटिव होने पर प्रेग्नेंसी के 28वें हफ्ते पर Anti-D इंजेक्शन दिया जाता है, ताकि Rh-positive बच्चे के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित ना हों.

  3. वहीं, डिलीवरी के 72 घंटे के भीतर भी Anti-D इंजेक्शन दिया जाता है. ताकि अगली प्रेग्नेंसी में किसी तरह का जोखिम ना हो.


लेकिन, अगर ICT पॉजिटिव होता है, तो इसका मतलब है कि गर्भवती महिला के अंदर एंटीबॉडी बन चुकी हैं और परेशानी शुरू हो चुकी है. जिसके बाद अल्ट्रासाउंड, विभिन्न टेस्ट आदि की मदद से शिशु की सेहत पर बारीकी से नजर रखी जाती है.


यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.