वैज्ञानिकों का दावा- ब्लड टेस्ट से साढ़े तीन साल पहले चल जाएगा अल्जाइमर का पता
Alzheimer`s Disease: दुनियाभर में अल्जाइमर मरीजों की संख्या 5.5 करोड़ से ज्यादा है और 2030 तक यह संख्या 7.8 करोड़ तक पहुंच सकती है. अब वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अल्जाइमर बीमारी का पता ब्लड टेस्ट से साढ़े तीन साल पहले चल जाएगा.
Alzheimer's Disease: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में अल्जाइमर मरीजों की संख्या 5.5 करोड़ से ज्यादा है और 2030 तक यह संख्या 7.8 करोड़ तक पहुंच सकती है. इस बीमारी के बारे में समय से पहले पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ब्लड टेस्ट की खोज की है, जिससे शुरुआती चरण से करीब साढ़े तीन साल पहले बीमारी के बारे में पता लगा सकते हैं. यह परिणाम किंग्स कॉलेज लंदन के मनोचिकित्सा और मनोविज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों ने पता लगाया है.
अभी किसी व्यक्ति को अल्जाइमर है या नहीं, इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर कॉग्निटिव टेस्ट पर भरोसा करते हैं. इसके अलावा, बीमारी के कारण दिमाग में होने वाले बदलावों का पता लगाने के लिए ब्रेन इमेजिंग और लंबर पंचर जैसी चिकित्सा प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं. अल्जाइमर से पीड़ित मरीज के दिमाग के सेल्स ढिले पड़ जाता हैं. इसके लक्षणों में याददाश्त में कमी आना, तर्क करने और निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ता है. शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस बीमारी से ग्रस्त रोगी उस समय जांच के लिए जाते हैं जब याददाश्त संबंधी तकलीफ होने लगती हैं. हालांकि यह रोग कम से कम 10 से 20 साल पहले ही दिमाग को प्रभावित कर चुका होता है.
नई ब्रेन सेल्स का निर्माण होता है प्रभावित
शोध के मुताबिक, इंसान के खून में मौजूद कंपाउंड दिमाग में नए सेल्स के गठन को कंट्रोल कर सकते हैं. इस प्रक्रिया को न्यूरोजेनेसिस कहा जाता है. न्यूरोजेनेसिस की यह प्रक्रिया दिमाग के एक महत्वपूर्ण हिस्से में होती है, जिसे हिप्पोकैम्पस कहते हैं. यह दिमाग का वह हिस्सा है, जो चीजें याद रखने में मदद करता है. इस बीमारी के शुरुआती चरणों के दौरान अल्जाइमर हिप्पोकैम्पस में नई ब्रेन सेल्स के निर्माण को प्रभावित करता है. अध्ययन में परिवर्तनों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने ऐसे 56 व्यक्तियों से कई वर्षों तक खून के नमूने लिए थे, जिनकी संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट देखी गई थी. अध्ययन में शामिल 56 में से 36 लोगों में अल्जाइमर के लक्षण देखे गए थे.
शोध में पता चलीं कई बातें
शोधकर्ताओं के मुताबिक, दिमाग के सेल्स को खून कैसे प्रभावित कर रहा था, इसके अध्ययन में कई अहम बातें पता चली. उन लोगों से जिनसे खून के नमूने लिए गए थे, उनमें सेल्स में होने वाली वृद्धि में कमी दर्ज की गई थी. साथ ही एपोप्टोटिक सेल डेथ में वृद्धि देखी गई थी. एपोप्टोटिक सेल डेथ द्वारा सेल्स को मरने के लिए प्रोग्राम किया जाता है. हजार शोधकर्ताओं ने माना कि जिन लोगों में अल्जाइमर बीमारी विकसित हुई थी, उनमें न्यूरोडीजेनेरेशन यानी ब्रेन सेल्स को होने वाले नुकसान के लिए प्रारंभिक क्षतिपूर्ति तंत्र हो सकता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. इसे अपनाने से पहले चिकित्सीय सलाह जरूर लें. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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