How To Stop Antibiotic Misuse in India: एंटीबायोटिक्स आधुनिक चिकित्सा में एक अहम रोल अदा करते हैं. ये बैक्टीरिया के संक्रमण का इलाज करके अनगिनत जिंदगियां बचाते हैं। हालांकि, उनका दुरुपयोग और हद से ज्यादा इस्तेमाल भारतीयों में एक चिंता का विषय बनते जा रहा है. हर छोटी या बड़ी बीमारियों में ऐसी दवाइयों का सेवन खतरनाक साबित हो सकता है. इसके लिए हमने फोर्टिस अस्पताल, फरीदाबाद के कंसल्टेंट डॉ. अनुराग अग्रवाल (Dr. Anurag Aggarwal) से बात की. उन्होंने बताया कि देश में किस तरह एंटीबोटिक दवाइयों का मिसयूज हो रहा है.

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भारत में एंटीबोटिक के मिसयूज रोकने को लेकर चुनौतियां


1. हद से ज्यादा बिक्री (Over-the-Counter Sales)
डॉ. अनुराग के मुताबिक भारत में एंटीबोटिक का मिसयूज इसलिए ज्यादा हो रहा है क्योंकि ये केमिस्ट के पास बिना किसी डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के खरीदी जा सकती हैं. यही वजह है कि इसकी सेल हद से ज्यादा होती है.



2. सेल्फ मेडिकेशन (Self-Medication)
भारत में काफी लोगों को खुद से एंटीबोटिक खाने की आदत है, वो बीमारियों में डॉक्टर की सलाह तक नहीं लेते है और बची हुई दवाइयों को दूसरे के साथ भी शेयर करते हैं, जिससे ट्रीटमेंट अधूरा रहता है और एंटीबोटिक रेजिस्टेंस भी बढ़ता है.



3. नाकाफी हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर (Inadequate Healthcare Infrastructure)
हेल्थकेयर सुविधाओं तक भारतीयों की सीमित पहुंच है खास तौर से ऐसा ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा देखा जाता है जिसके कारण लोग एंटीबायोटिक दवाओं पर भरोसा करने के लिए ज्यादा मजबूर होते वो भी बिना किसी डाइग्नोसिस के ऐसा करना खतरनाक है.


एंटीबोटिक के मिसयूज के नुकसान


1. एंटीबोटिक रेसिस्टेंस (Antibiotic Resistance)


एंटीबायोटिक के दुरुपयोग का सबसे तात्कालिक परिणाम एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया (antibiotic-resistant bacteria) का विकास है. भारत में इससे जुड़े संक्रमण आम होते जा रहे हैं, जिससे उनका इलाज करना कठिन और अधिक महंगा हो गया है.



2. लंबी बीमारियां (Prolonged Illness)
इंकप्लीट या अप्रभावी एंटीबायोटिक इलाज से लंबी बीमारी, जटिलताएं और हेल्थकेयर का खर्च बढ़ सकता है.



3. अधिक मृत्यु दर (Higher Mortality Rates)
इलाज न किए जा सकने वाले संक्रमणों के कारण एंटीबायोटिक रिजिस्टेंस बढ़ता है जिसकी वजह से आगे चलकर मृत्यु दर अधिक हो सकती है.



एंटीबोटिक के मिसयूज को कैसे रोका जाए?



1. रेग्युलेशन लाया जाए (Regulatory Measures)
बिना प्रिस्क्रिप्शन के एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री को लेकर सख्त नियमों बनने चाहिए. मेडिकल शॉप में बिना डॉक्टर की सलाह के ऐसी मेडिसिन नहीं बिकनी चाहिए.



2. पब्लिक अवेयरनेस (Public Awareness)
लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं के उचित उपयोग और सेल्फ मेडिकेशन के खतरों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान शुरू किया जाना चाहिए. 



4. रिसर्च को बढ़ावा (Supporting Research)
नए एंटीबायोटिक और डाइग्नॉस्टिक टूल्स विकसित करने के लिए रिसर्च में निवेश करने से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से निपटने के लिए वैकल्पिक समाधान मिल सकते हैं.


Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मक़सद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.