ऐसा माना जाता है कि दिल की बीमारी मुख्य रूप से पुरुषों को प्रभावित करता है, लेकिन इसका प्रभाव महिलाओं में भी उतना ही महत्वपूर्ण है, हालांकि, अक्सर यह दोनों में अलग-अलग तरह से नज‍र आता है. भारत में, महिलाओं में दिल की बीमारी की व्यापकता 3% से 13% तक है और पिछले दो दशकों के अंतर्गत इसमें लगभग 300 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. हाल में‍ किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि वास्तव में भारतीय महिलाओं में हार्ट फेलियर की मौजूदगी में 2000 से 2015 तक दोगुनी तेजी से बढ़ोतरी हुई है.


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इन चिंताजनक आंकड़ों के साथ, विशेष रूप से एथेरोस्क्लोरोटिक कार्डियोवैस्‍कुलर डिजीज (एएससीवीडी) जैसी स्थितियों में इन जेंडर-विशिष्ट अंतर को स्वीकार करना आवश्यक है. एएससीवीडी का तात्पर्य प्लाक के निर्माण के कारण नसों के सिकुड़ने और सख्त होने से है, जिससे दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.


दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रीति गुप्‍ता ने महिलाओं के लिए कोलेस्‍ट्रॉल की जल्‍दी जांच के महत्‍व पर जोर दिया और बताया कि उनके लक्षण अक्‍सर नजर नहीं आते हैं. उन्‍होंने कहा कि महिलाओं को कोलेस्‍ट्रॉल की जांच 45 साल की उम्र से करवाना शुरु कर देना चाहिए. मैंने अपनी प्रैक्टिस में पाया है कि करीब 25% महिलाओं में एलडीएल-सी के लेवल्‍स बढ़े हुए हैं और इसकी एएससीवीडी में बड़ी भूमिका होती है. कई महिलाओं को अपने बढ़े हुए कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स की जानकारी नहीं है. मौजूदा लाइफस्‍टाइल और हॉर्मोन में उतार-चढ़ाव से कोलेस्‍ट्रॉल लेवल्‍स बढ़ सकते हैं. अगर सही समय पर ध्‍यान न दिया जाए, तो एएससीवीडी जैसी कार्डियोवैस्‍कुलर बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है. नियमित जांच एवं लिपिड प्रोफाइल स्‍कैन से खतरों के कारणों का जल्‍दी पता लगाने में मदद मिल सकती है और सही समय पर दखल दिया जा सकता है. इसके अलावा, अलग-अलग महिलाओं के एलडीएल-सी गोल्‍स के आधार पर रोकथाम की निजी योजना भी मायने रखती है. जानकारी रखना और पहले से एक्टिव होना दिल की अच्‍छी सेहत बनाए रखने के लिए महत्‍वपूर्ण है.


महिलाओं में एएससीवीडी का प्रभाव
इन अध्ययनों से पता चलता है कि एएससीवीडी लक्षणों, रिस्क फैक्टरों और परिणामों के संदर्भ में महिलाओं को अलग तरह से प्रभावित करता है. महिलाओं में अक्सर उम्र के बाद के पड़ाव में विशेष रूप से मेनोपॉज के बाद एएससीवीडी हो सकता है और उन्‍हें थकान, सांस की तकलीफ, या जबड़े, गर्दन, पीठ या पेट में असुविधा जैसे लक्षणों का अनुभव होता है. इन लक्षणों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है या गलत व्याख्या की जाती है, जिससे डायग्नोस और उपचार में विलंब होता है. जबकि पुरुषों और महिलाओं में हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और धूम्रपान जैसे सामान्य एएससीवीडी के रिस्क फैक्टर साबित हैं, महिलाओं में प्रेग्नेंसी से संबंधित स्थितियों (जैसे, गर्भकालीन मधुमेह, प्री-एक्लेमप्सिया) और हार्मोनल प्रभाव (जैसे, पॉलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम, मेनोपॉज) एक्स्ट्रा खतरें हैं. जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन के लेवल में कमी के कारण एएससीवीडी विकसित होने के खतरे में वृद्धि होती है.


एएससीवीडी और कोलेस्ट्रॉल के बीच संबंध
एएससीवीडी एक लॉन्ग-टर्म स्वास्थ्य समस्या है जहां नसों में कोलेस्ट्रॉल जमा हो जाता है. समय के साथ, नसों में कोलेस्ट्रॉल प्लाक बनने से वे सिकुड़ती और सख्त हो जाती हैं. जैसे-जैसे प्लाक बढ़ता रहता है, यह दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देती है.


गुड और बैड कोलेस्ट्रॉल के बीच अंतर करना
कोलेस्ट्रॉल शरीर के क्रियाकलाप के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन असंतुलन हानिकारक भी साबित हो सकता है. कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल, जिसे अक्सर खराब कोलेस्ट्रॉल के रूप में लेबल किया जाता है, धमनियों में प्लाक निर्माण को बढ़ावा देकर एएससीवीडी में योगदान देता है. इसके विपरीत, हाई घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्ट्रॉल, जिसे गुड कोलेस्ट्रॉल के रूप में जाना जाता है, ब्लड फ्लो से एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को हटाने में मदद करता है, जिससे आर्टीरियल प्‍लाक बनने का खतरा कम हो जाता है.


महिलाओं के दिल की सेहत में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल लेवल का महत्व
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल एएससीवीडी के विकास में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है, जो इसे महिलाओं के दिल की सेहत के लिए एक महत्वपूर्ण फोकस बनाता है. नियमित लिपिड प्रोफाइल टेस्ट और कोलेस्ट्रॉल की मॉनिटरिंग के माध्यम से किसी के एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के लेवल को जानना इस रिस्क मैनेजमेंट के लिए आवश्यक है.


अपने डॉक्टर से बात करना क्यों महत्वपूर्ण है?
महिलाओं में एएससीवीडी के अलग-अलग रिस्क फैक्टरों और अभिव्यक्तियों को देखते हुए, सभी के लिए एक ही उपचार का दृष्टिकोण अपर्याप्त है. अपनी दिल की सेहत के बारे में अपने डॉक्टर से खुलकर और सही बातचीत करना महत्वपूर्ण है. अपने प्रजनन इतिहास, हार्मोनल स्थिति, लाइफस्टाइल और किसी भी जेनेटिक प्रवृत्ति पर उनसे चर्चा करें. पर्सनल एलडीएल कोलेस्ट्रॉल टारगेट निर्धारित करने के लिए एक साथ काम करके, आप और आपके डॉक्टर आपके अनूठे स्वास्थ्य प्रोफाइल के अनुरूप एक रोकथाम प्लान विकसित करने का योजना बना सकते हैं.


दिल की सेहत से जुड़ी देखभाल के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जिसमें नियमित मॉनिटरिंग, ​​​​पर्सनल केयर प्लान और प्रभावी डॉक्टर-रोगी संचार के माध्यम से कोलेस्ट्रॉल मैनेजमेंट को प्रायोरिटी दी जाती है. एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के लेवल को समझकर और मैनेज करके, महिलाएं अपनी दिल की सेहत की सुरक्षा और अपने संपूर्ण सेहत में सुधार के लिए सक्रिय कदम उठा सकती हैं.