1999 में मई-जून के महीने में 17 हजार की फुट की ऊंचाई पर कारगिल की चोटियों पर दुश्‍मन घुसपैठिए की शक्‍ल में आया. भारत की अहम चौकियों पर कब्‍जे और सामरिक दृष्टि से अहम ठिकानों पर कब्‍जा जमाने के इरादे से कारगिल की चोटियों पर जम गया. युद्ध के मैदान में अगर दुश्‍मन ऊंचाई पर हो तो वह आपको आसानी से देख सकता है, आपकी रणनीति को नाकाम कर सकता है. लेकिन इन सबका लाभ उसको नहीं मिला.


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ऐसा इसलिए क्‍योंकि जब भारत की तोपों ने चोटियों पर पाकिस्‍तानी सेना के बंकरों पर गोले बरसाने शुरू किए और एक के बाद एक चौकियों पर कब्‍जा करते हुए आखिरकार जब टाइगर हिल पर तिरंगा फहराया तो पाकिस्‍तान को कहीं सिर छुपाने की जगह नहीं मिली. उसने बिना शर्त अपने सैनिकों को वापस बुला लिया. उसके बाद सालों तक ये कहता रहा कि उस अभियान में पाकिस्‍तानी सैनिकों की नहीं बल्कि घुसपैठियों की भूमिका थी. लेकिन देश-दुनिया में उसकी दलील को किसी ने नहीं माना.


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'ऑपरेशन विजय' जहां भारत के लिए गर्व का पल बना, वहीं कारगिल से खदेड़े जाने के बाद यह जंग पाकिस्‍तान के लिए शर्मिंदगी का सबब बनी. ये जंग इस मायने में सबसे खास मानी जाती है क्‍योंकि परमाणु क्षमता संपन्‍न होने के बाद दोनों मुल्‍क पहली बार जंग के मैदान में आमने-सामने आए.



60 दिन तक चला था कारगि‍ल युद्ध
करगिल युद्ध (Kargil War) लगभग 60 दिनों तक चला. 26 जुलाई,1999 को आधिकारिक रूप से उसका अंत हुआ. भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्‍जे वाली जगहों पर हमला किया. यह युद्ध ऊंचाई वाले इलाके पर हुआ. दोनों देशों की सेनाओं को लड़ने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. पाकिस्तानी घुसपैठियों के खिलाफ सेना की ओर से की गई कार्रवाई में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए तो करीब 1363 घायल हुए थे. इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब तीन हजार सैनिक मारे गए थे.