शौर्य के 20 साल: कारगिल युद्ध में जीत का पहला दरवाजा था `तोलोलिंग`
13 जून की सुबह करीब चार बजे भारतीय सेना के जवानों तोलोलिंग की चोटियों पर जीत दर्ज की और वहां भारतीय ध्वज तिरंगा फहरा दिया.
नई दिल्ली: कारगिल युद्ध में जीत का पहला दरवाजा तोलोलिंग की चोटियों पर भारतीय तिरंगा लहराने के बाद खुला था. दरअसल, तोलोलिंग की लोकेशन कुछ ऐसी थी कि वहां बैठे पाकिस्तानी घुसपैठिए श्रीनगर से लेह को जोड़ने वाले नेशनल हाई-वे 1 की हर गतिविधि को न केवल आसानी से देख सकते थे, बल्कि वहां से गुजरने वाले सेना के काफिले को बेहद आसानी से अपना निशाना बना सकते थे. ऐसे में, भारतीय सेना के सामने सबसे बड़ी चुनौती तोलोलिंग की चोटियों पर अपना कब्जा जमाने की थी.
तोलोलिंग को पाकिस्तानी घुसपैठियों के चुंगल से आजाद कराए बिना सेना के काफिलों, रसद सामग्री और हथियारों को आगे भेज पाना मुमकिन नहीं था. तोलोलिंग की चोटियों को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कराने की जिम्मेदारी 2 राजपूताना राइफल्स की रेजीमेंट को दी गई थी. 2 राजपूताना राइफल्स की यह रेजीमेंट उन दिनों तंगमर्ग और गुलमर्ग के बीच तैनात थी. इस रेजीमेंट को सूचना दी गई कि कारगिल की पहाडि़यों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया है, जिन्हें उनके चंगुल से जल्द से जल्द मुक्त कराना है.
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कूच करने के आदेश मिलते ही, 2 राजपूताना राइफल्स की टुकडि़यां तोलोलिंग की तरफ निकल पड़ी. अब तक भारतीय सेना की इस टुकड़ी को इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नहीं था कि वे किसी युद्ध के लिए जा रहे हैं. इस टीम का हिस्सा रहे कैप्टन अखिलेश सक्सेना के अनुसार, हम द्रास सेक्टर में दाखिल ही हुए थे, तभी मेरी जीप के बेहद करीब 2-3 हथगोले आकर गिरे. इस हमले में हमें हैरानी में डाल दिया. उस समय हमारे दिमाग में सिर्फ एक ही सवाल था कि हमारे मूवमेंट की इतनी सटीक जानकारी घुसपैठियों के पास कहां से पहुंच रही है.
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इसी उधेड़बुन के बीच राजपूताना राइफल्स की इस टीम को बताया गया कि सामने दिख रही तोलोलिंग की चोटियों तक पाकिस्तानी घुसपैठिये पहुंच गए हैं. वे उस पहाड़ी से इलाके में होने वाली हर गतिविधि को बेहद आसानी से देख सकते हैं. यूनिट पहुंचने के बाद राजपूताना राइफल्स की टीम को बताया गया कि तोलोलिंग में कब्जे की दो प्रयास न केवल विफल हो चुके हैं, बल्कि इन प्रयासों में कई जवानों की शहादत भी हुई है. राजपूताना राइफल्स की इस टीम को यह भी जानकारी दी गई कि इस प्रयास में शहीद हुए मेजर विकास अधिकारी का शव अभी तक तोलोलिंग की पहाडि़यों में है.
राजपूताना राइफल्स की इस टुकड़ी ने तोलोलिंग को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कराने और अपने शहीद साथी कैप्टन विकास अधिकारी का शव वापस लाने के लिए रणनीति बनाना शुरू कर दी. राजपूताना राइफल्स की टीम को इस तोलोलिंग की पहाड़ी पर अब सीधी चढ़ाई करती थी. पहाड़ी के ऊपर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठिए की पोजीशन ऐसी थी कि वह भारतीय सेना की हर गतिविधि को देख सकता था. ऊपर पहाड़ी में होने के चलते दुश्मनों की ताकत भारतीय सेना से करीब 20 गुनी बढ़ गई थी.
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इन तमाम चुनौतियों के बावजूद राजपूताना राइफल्स की टुकड़ी ने आगे बढ़ने का फैसला किया. वहीं, पाकिस्तानी घुसपैठियों को यह पता था कि भारतीय सेना के पास आने के लिए सिर्फ एक ही रास्ता है. लिहाजा, उन्होंने उस रास्ते में जगह जगह पर लैंड माइंस बिछा दिए थे. वे भारतीय सेना का तब तक इंजतार करते थे, जब तक वे उनके करीब नहीं आ जाते थे. करीब आते ही पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय सैनिकों पर गोलियों की बौछार कर देते थे. कुछ ऐसा ही तोलोलिंग को घुसपैठियों से मुक्त कराने पहुंची राजपूताना राइफल्स के जवानों के साथ भी हुआ.
राजपूताना राइफल्स के जवान जैसे ही घुसपैठियों के करीब पहुंचे, उन्होंने भारतीय सेना के जवानों पर गोली की बौछार शुरू कर दी. इस हमले में भारतीय सेना के कई जवान जख्मी हुए और कई जवान शहीद हो गए. इस हमले के बाद राजपूताना राइफल्स की इस टीम को पता चला गया कि बंकर में छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए, आतंकी नहीं बल्कि दुश्मन सेना के ट्रेंड जवान हैं. पाकिस्तानी सेना के इस हमले के बाद राजपूताना राइफल्स के जवानों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया.
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नई रणनीति के तहत दिन की जगह रात में घुसपैठियों को अंजाम तक पहुंचाने का फैसला किया गया. रणनीति के तहत, तोलोलिंग की चोटियों के करीब पहुंच चुकी राजपूताना राइफल्स की टीम ने बोफोर्स टीम को पाक सेना की लोकेशन भेजकर उन पर फायरिंग के लिए कहा. बोफोर्स के गोले गिरने के साथ पाक सेना नीचे बैठने को मजबूर हो जाती थी, इसी स्थिति का फायदा उठाते हुए भारतीय सेना के जवानों ने अपनी चढ़ाई पूरी की और दुश्मनों के बंकरो तक पहुंचने में कामयाब हो गए. यहां पर पाकिस्तानी घुसपैठियों और भारतीय सेना के बीच करीब दो दिन तक युद्ध चला. अंतत: 13 जून की सुबह करीब चार बजे भारतीय सेना तोलोलिंग की चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराने में कामयाब रही.