कारगिल पर घुसपैठियों को सबसे पहले यार्क खोजने गए याशी नामक एक चरवाहे ने देखा था.
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नई दिल्ली: भारतीय सेना ने 20 साल पहले दुनिया की सबसे बड़ी जंग में जीत हासिल कर पाकिस्तानी सेना के सैकड़ों जवानों को मार गिराया था. आइए कारगिल दिवस पर आपको कारगिल के युद्ध के हर पहलू से अवगत कराते हैं. दरअसल, अपनी यार्क खोजने गए ताशी नामक चरवाहे ने 2 मई 1999 को सबसे पहले आतंकियों के भेष में आई पाकिस्तानी सेना को कारगिल की पहाड़ियों पर देखा. 3 मई 1999 को ताशी ने इसकी जानकारी रास्ते में मिले सेना के एक जवान को दी.
कारगिल की पहाड़ियों में घुसपैठियों की मौजूदगी की जानकारी दिल्ली सेना मुख्यालय के साथ साझा की गई. जिसके बाद, सेना मुख्यालय ने रक्षा मंत्रालय की सहमति से घुसपैठियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू कर दी. घाटी में मौजूद सेना की कुछ टुकडियों को कारगिल के लिए रवाना कर दिया गया. वहीं भारतीय सेना की इस हलचल को देख पहाड़ियों पर बैठे घुसपैठिये सकते में आ गए.
कारगिल की पहाड़ियों पर मौजूद इन घुसपैठियों ने भारतीय सेना की गतिविधियों के बाबत इस्लामाबाद में बैठे आकाओं को सूचना दी. जिसके बाद घुसपैठियों को मजबूती देने के लिए पाकिस्तान से भारतीय सीमा पर गोलीबारी शुरू कर दी गई. पाकिस्तानी तोप के गोले कारगिल मुख्यालय में स्थिति सेना के आयुध भंडार को निशाना बना रहे थे. 9 मई को पाकिस्तान की तरह से हो रही बमबारी में कारगिल का यह आयुध भंडार नष्ट हो गया.
इस घटना से ठीक एक दिन बाद 10 मई को पहली बार द्रास, काकसार और मुश्कोह सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठियों को देखा गया. जिसके बाद, भारतीय सेना ने इन पाकिस्तानी घुसपैठियों की टोह लेने के लिए कई टुकडि़यों को रवाना किया. इसी दौरान, 14 मई 1999 को भारतीय सेना के कैप्टन सौरभ कालिया को पाकिस्तानी घुसपैठियों की मौजूदगी के बाबत खबर मिली. खबर मिलने के साथ, कैप्टन सौरभ कालिया अपनी टुकड़ी को लेकर पेट्रोलिंग पर निकल गए.
कैप्टन सौरभ कालिया के साथ पेट्रोलिंग पर निकली इस टुकड़ी में अर्जुन राम, भंवरलाल बागारीया, भिका राम, मूल राम और नरेश सिंह भी शामिल थे. कैप्टन सौरभ कालिया जल्द ही अपने साथियों के साथ उस ठिकाने तक पहुंच गए, जहां पर पाकिस्तानी घुसपैठिए मौजूद थे. यहां पर कैप्टर सौरभ कालिया और उनके साथियों की संख्या महज पांच थी, जबकि घात लगाए बैठे दुश्मनों की संख्या सैकड़ो में थे. पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कैप्टन सौरभ कालिया और उसके साथियों का अपहरण कर लिया. जिसके बाद उनकी और उनके साथियों की निमृम तरीके से हत्या कर दी गई.
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अब तक, कारगिल की चोटियों पर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को यह आशंका हो चुकी थी कि उनके बारे में भारतीय सेना को पता चला चुका है. लिहाजा, उन्होंने पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से गोलाबारी बढ़़ाने को कह दिया. पाकिस्तान की तरफ से बढ़ती गोलाबारी को देखते हुए भारतीय सेना ने भी कारगिल क्षेत्र में अपनी बड़ी तोपों को तैनात करना कर जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी. इधर, कैप्टन सौरभ कालिया से कोई संपर्क न होने पर भारतीय सेना ने अपने टोही विमानों को कारगिल की पहाड़ियों में मौजूद घुसपैठियों की टोह लेने के लिए रवाना कर दिया.
भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के सही ठिकानों का पता लगाने के लिए पेट्रोल पार्टियों की संख्या में इजाफा कर दिया. जिसके बाद, भारतीय सेना को पता चला कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने मस्कोह से बटालिक के बीच करीब 120 किमी के इलाके में कई जगह अपने बंकर बना लिए थे. वहीं, दुश्मन भारतीय सीमा से करीब 10 किमी भीतर घुसकर द्रास, कास्कर, बटालिक और मस्कोह में अपने ठिकाने बना लिए थे. टोही विमानों ने वापस आने के बाद यह भी सूचना दी कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल से उत्तर की दिशा में करीब 80 किमी के क्षेत्र में ऊंची पहाड़ियों पर अपने ठिकाने बना लिए हैं.
पाकिस्तानी घुसपैठियों की पहाड़ियों में पोजीशन कुछ ऐसी थी कि वे कश्मीर से लेह को जोड़ने वाले नेशनल हाई-वे एक की हर गतिविधि पर नजर रख सकते थे. इतना ही नहीं, वहां से गुजरने वाले किसी भी वाहन को अपना निशाना बना सकते थे. अब तक भारतीय सेना को पाकिस्तान की चाल समझ में आ गई थी. भारतीय सेना को पता था कि महज दो महीने बात पहले बारिश और बाद में बर्फबारी का सिलसिला शुरू हो जाएगा. जिसके चलते, यह रास्ता अगले कुछ महीनों के लिए बंद करना पड़ेगा. ऐसे में, इन पाकिस्तानी घुसपैठियों का न खदेड़ा गया तो वे सर्दियों में अपनी स्थिति को और मजबूत कर कश्मीर से लेह को अलग करने का षड़यंत्र कर सकते है.
भारतीय सेना ने हालात का आंकलन करने के बाद जवानों को पाकिस्तानी दुश्मनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए रवाना किया. लेकिन, पाकिस्तानी दुश्मनों को पोजीशन इनती सटीक थी कि 10 दुश्मन भारतीय सेना के सैकड़ों जवानों पर भारी पड़ रहे थे. इधर, 21 मई को तत्कालीय सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक भारत लौट आए. 23 मई को वह मौके का जायजा लेने के लिए जम्मू-कश्मीर के लिए रवाना हो गए. जम्मू और कश्मीर से वापसी के बाद 24 मई को जनरल वीपी मलिक ने तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एवाई टिपनिस से मुलाकात कर एयर स्ट्राइक के बारे में चर्चा की.
25 मई को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान देश को कारगिल में हुई घुसपैठ की जानकारी दी. वहीं 26 मई को तत्कालीन वायुसेना प्रमुख एवाई टिपनिस ने एयर स्ट्राइक के आदेश जारी कर दिए. जिसके बाद, श्रीनगर और पठानकोट एयरबेस से मिग-21, मिग 27 और एमआई 17 हेलीकॉप्टरों को रवाना कर दिया गया. हमले से पहले वायुसेना को यह खास हिदायत दी गई थी कि वे किसी भी सूरत ने नियंत्रण रेखा को पार नहीं करेंगे. भारत को आशंका थी कि पाकिस्तान कहीं इस हवाई कार्रवाई को आधार बनाकर अपनी कार्रवाई शुरू न कर दे.
27 मई को फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता अपने मिग 27 विमान से द्रास की चोटियों की तरफ रवाना हुए, लेकिन ऊंची पहाड़ियों में बैठे पाकिस्तानी दुश्मनों ने स्ट्रिंग मिसाइल से उनके विमान को हमला कर दिया. मजबूरन फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता को पैराशूट से इजेक्ट होना पड़ा. फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता इस कवायद के बीच नियंत्रण रेखा के पार चले गए, जहां पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंधक बना लिया. वहीं, मिग 27 पर हमले और फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता के लापता होने की खबर ने भारतीय सेना की चिंता बढ़ा दी. जिसके बाद, स्क्वाड्रन लीडर ए आहूजा खोजी विमान मिग 21 को लेकर रवाना हुए.
इस विमान को भी पाकिस्तानी दुश्मनों ने अपना निशाना बना लिया. जिसके चलते स्क्वाड्रन लीडर ए आहूजा को पैराशूट के सहारे विमान से इजेक्ट होना पड़ा. जिस समय स्क्वाड्रन लीडर ए आहूजा को पैराशूट से नीचे आ रहे थे, उसी बीच पाकिस्तानी दुश्मनों ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी. जिसमें स्क्वाड्रन लीडर ए आहूजा देश के प्रति सर्वोच्च बलिदान देते हुए शहीद हो गए. इन दो बड़ी क्षतियों के बावजूद भारतीय सेना ने अपनी कार्रवाई जारी रखी. इस कार्रवाई में 27 मई को भारतीय वायुसेना का एक एमआई-17 विमान पाकिस्तानी दुश्मनों की मिसाइल का निशाना बन गया. जिसमें चार जवान शहीद हो गए.
27 मई को ही, भारतीय वायु सेना ने टाइगर हिल और प्वाइंट 4590 पर जबरदस्त हमला किया. इसी बीच, नीचे से भारतीय फौज की तोपों ने भी पहाड़ियों पर गोले बरसाना शुरू कर दिए. तोप से निकल रहे गोलों की आड़ में अब भारतीय फौज के जवानों ने पहाडि़यां चढ़ना शुरू कर दिया. अब तक की कार्रवाई में भारतीय सेना को यह स्पष्ट हो गया था कि पहाड़ियों में बैठे घुसपैठिये आतंकी नहीं बल्कि पूरी तरह से प्रशिक्षित पाकिस्तानी सेना के जवान हैं.
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भारतीय सेना की इस कार्रवाई से पहाड़ियों पर मौजूद पाकिस्तानी सेना के हौसले पस्त होने लगे थे. लिहाजा, बौखलाहट में पाकिस्तान ने 1 जून को राष्ट्रीय राजमार्ग पर बमबारी शुरू कर दी. वहीं, 5 जून को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी रेंजर्स से कुछ कागजात बरादम किए, जिसमें इस बात के सबूत थे कि पहाड़ियों में मौजूद दुश्मन पाकिस्तानी सेना के जवान है. जिसके बाद, भारतीय सेना ने पूरी ताकत से जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी. तीन दिनों के लंबे संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने 9 जून को बटालिक सेक्टर की दो अग्रिम चौकियों पर कब्जा कर भारतीय तिरंगा फहरा दिया.
इसी दौरान, भारत ने तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ और लेंफ्टिनेंट जनरल अजीज खान की बातचीत को इंटरसेप्ट किया. जिसके बाद, पुख्ता हो गया कि पाकिस्तान ने सोची समझी साजिश के तहत यह हमला किया है. पाकिस्तान की तमाम नापाक कोशिशों के बावजूद भारतीय सेनाओं ने जीत के शुरू हुए सिलसिले को जारी रखा. 13 जून को भारतीय सेना ने द्रास सेक्टर के तोलोलिंग चोटी पर भी कब्जा कर लिया. कारगिल के युद्ध में तोलोलिंग की जीत को ऑपरेशन विजय की पहली सबसे बड़ी सफलता के रूप में देखा गया. 29 जून को भारतीय सेना ने टाइगर हिल के प्वाइंट 5060 और 5100 पर कब्जा कायम कर लिया.
2 जुलाई को भारतीय सेना ने कारगिल पर तीन तरफ से हमला बोला और 4 जुलाई को टायगर हिल पर भारतीय सेना की जांबाजी के प्रतीक के तौर पर तिरंगा फहराने लगा. 5 जुलाई को भारतीय सेना ने द्रास पर भी अपना कब्जा जमा लिया. वहीं 7 जुलाई को भारतीय सेना ने बटालिक की जुबर हिल पर भारतीय तिरंगा फहरा दिया. भारतीय सेना के अदम्य साहस को देख अबतक पाकिस्तानी रेंजर्स के हाथपांव फूल चुके थे. 11 जुलाई को भारतीय सेना के खौफ से पाकिस्तानी रेंजर्स को भागते हुए देखा गया. 14 जुलाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय में जीत की घोषणा कर दी. जिसमें बाद, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाए जाने का ऐलान किया.