नई दिल्ली: आज (31 दिसंबर) कांधार विमान अपहरण केस के 20 साल पूरे हो रहे हैं. 20 साल पहले आज ही के दिन यानि 31 दिसंबर, 1999 को विमान में बंधक बनाए गए लोगों की घर वापसी हुई थी. ये तत्कालीन केंद्र सरकार के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक बहुत बड़ा मुद्दा था. लेकिन, साथ ही साथ इस बात का भी ध्यान रखने की ज़रुरत थी, कि देश के लोगों की जान के साथ कोई समझौता ना किया जाए. 


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लेकिन बंधकों के परिवारवालों के साथ साथ उस वक्त देश की मीडिया ने भी सरकार पर अभूतपूर्व दबाव बना दिया था . एक ऐसा माहौल तैयार कर दिया गया था जिसके आगे सरकार को झुकना पड़ा . यहां हम एक बात साफ कर देना चाहते हैं कि हम भी उस गलती का हिस्सा थे . क्योंकि Zee न्यूज पर भी उस वक्त इस हाईजैकिंग से जुड़ी हर छोटी बड़ी खबर दिखाई जा रही थी और हमारे कैमरों पर भी लोग. अपने गुस्से का इजहार कर रहे थे और सरकार को नाकामी के लिए कोस रहे थे .


जिस वक्त ये घटना हुई थी, उस वक्त लोगों को देश की नहीं, अपनों की फिक्र थी. और इसीलिए शायद राष्ट्रहित से समझौता कर लिया गया . सड़क से लेकर संसद तक विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. सबकी सिर्फ एक मांग थी, कि जितने भी यात्री IC-814 की हाईजैक में फंसे हुए हैं, उन्हें जल्द से जल्द रिहा करवाया जाए.


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इस घटना का जिक्र उस वक्त प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले पत्रकार कंचन गुप्ता ने अपने एक ब्लॉग में भी किया था. साल 2008 में द् ट्रूथ बिहाइंड कांधार (The Truth Behind Kandahar) नामक ब्लॉग में कंचन गुप्ता लिखते हैं, 'इसी दौरान..एक शाम कारगिल के हीरो शहीद स्क्वार्ड्रन लीडर अजय आहूजा की पत्नी प्रधानमंत्री कार्यलाय पहुंची. उन्होंने अधिकारियों से निवेदन किया कि उन्हें विमान में मौजूद लोगों के रिश्तेदारों से बात करने दी जाए . प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास पर शहीद की पत्नी ने मीडिया और लोगों से बात की....



....उन्होंने लोगों को समझाने की कोशिश की..कि भारत को आतंकवादियों के आगे नहीं झुकना चाहिए . उन्होंने अपनी आप-बीती भी सुनाई और लोगों को समझाया कि कोई भी पीड़ा राष्ट्रहित से बड़ी नहीं हो सकती . लेकिन तभी भीड़ में से कोई चिल्लाया और कहा कि ये खुद एक विधवा हैं और चाहती है कि दूसरी महिलाएं भी विधवा हो जाए..फिर भीड़ में से किसी ने कहा कि ये कहां से आई हैं ? और इसके बाद लोग उनके साथ धक्का-मुक्की करने लगे.'


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वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने उस पूरे वाकये को याद करते हुए ZEE न्यूज से कहा, 'स्क्वार्ड्रन लीडर अजय आहूजा की विधवा आईं, उन्होंने सबसे (प्रदर्शनकारियों) हाथ जोड़कर अपील की, मैं अपने पति को चुकी हूं, आप लोग धीरज रखें, सरकार को अपना काम करने दें. लेकिन ये लोग उल्टा उनको कोसने लगे. भाग यहां से, वो दृश्य बहुत ही दुखदायक था.'


उस वक्त शहीद अजय आहूजा पत्नी की की उम्र करीब 30 वर्ष रही होगी. इतनी कम उम्र मे अपने पति को युद्ध में खोने वाली एक महिला देशवासियों को राष्ट्र प्रेम का महत्व समझा रही थीं..और लोग उनके साथ बदसलूकी कर रहे थे उन्हें विधवा कहकर बुला रहे थे. 


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वहीं लोगों को समझाने वालों में शहीद लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के पिता कर्नल VN थापर भी शामिल थे. इनकी बात सुनकर आप समझ जाएंगे कि उस वक्त जनता के दबाव में कैसे राष्ट्रहित की आहूति दे दी गई थी . शहीद लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के पिता वीएन थापर ने बताया, 'जिनके परिवार के संबंध पैसेंजर्स के साथ था. उन्होंने अपना धैर्य खो दिया था. वो बड़ी बेसब्री के साथ सीधा सड़कों पर आ गए थे. उन्होंने प्रधानमंत्री पर इतना दबाव बनाया जो हमारी समझ से बाहर था. परिवार वाले बात करने की स्थिति में नहीं थी. बाल खेंच रहे थे, जमीन पर रेंग रहे थे. कोई किसी की बात सुनने के लिए यहां तक की हमारी बात तक सुनने को तैयार नहीं था.'


इसीलिए, तत्कालीन NDA सरकार ने 20 साल पहले हर राजनीतिक पार्टी से उसकी राय जानी. और उसके बाद ही कोई फैसला लिया. लेकिन, अफसोस की बात ये है, कि उस वक्त देश के लोगों की भावनाओं को भड़काने वालों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल थे .