ZEE जानकारी: जानिए, कंधार कांड की पूरी कहानी, जब 'परिवारवाद' से 'हाईजैक' हुआ राष्ट्रवाद
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ZEE जानकारी: जानिए, कंधार कांड की पूरी कहानी, जब 'परिवारवाद' से 'हाईजैक' हुआ राष्ट्रवाद

20 साल पहले IC-814 के यात्रियों की रिहाई के बदले, भारत को मसूद अज़हर सहित तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था. और तब से लेकर आज तक भारत को एक देश के तौर पर उस कमज़ोरी का खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है.

 ZEE जानकारी: जानिए, कंधार कांड की पूरी कहानी, जब 'परिवारवाद' से 'हाईजैक' हुआ राष्ट्रवाद

20 साल पहले IC-814 के यात्रियों की रिहाई के बदले, भारत को मसूद अज़हर सहित तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था. और तब से लेकर आज तक भारत को एक देश के तौर पर उस कमज़ोरी का खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है. आज हमने Zee News की लाइब्रेरी से 20 साल पुरानी वो तस्वीरें भी निकाली हैं, जब जनता के दबाव, उनके गुस्से और आक्रोश के सामने भारत की सरकार को झुकना पड़ा था. लेकिन देश के आम नागरिकों की बात करने से पहले, ज़रा देश के सैनिकों और उनके परिवार की बात कर लेते हैं. इससे आपको ये समझ में आएगा, एक साधारण नागरिक और एक सैनिक के परिवार की सहनशक्ति में कितना बड़ा फर्क है ?

और इसके लिए हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा कही गई दो बातों का ज़िक्र करना चाहते हैं. वो कहा करते थे. आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके.
इसके अलावा उनका ये भी कहना था...कि मैं संकट और विपदाओं से भयभीत नहीं होता. कठिन वक्त में भी मैं भागूंगा नहीं. आगे बढकर समस्याओं का सामना करूंगा.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा कही गई ये दोनों बातें सिर्फ देश के सैनिकों और उनके परिवार पर लागू नहीं होती . ये भारत के हर आम नागरिक के मन में एक मंत्र की तरह जीवित रहने चाहिए. लेकिन अफसोस की बात ये है कि, 20 साल पहले, कंधार Hijack के दौरान भारत के लोगों की मज़बूत इच्छाशक्ति, कमज़ोर पड़ गई. लेकिन इन 20 वर्षों के दौरान देश ने तीन सैनिकों और उनके परिवारों का हौसला भी देखा है. आज उन तीन सैनिकों और उनके परिवारों को भी याद करने का दिन है. इन तीन सैनिकों के नाम हैं विंग कमांडर अभिनंदन, फ्लाइट लेफ्टिनेंट K नचिकेता और नौसेना के पूर्व अफसर कुलभूषण जाधव.

इस वक्त आप जून 1999 की तस्वीरें देख रहे हैं. जब भारतीय वायुसेना के Flight Lieutenant, K Nachiketa ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात की एक बहुत बड़ी वजह थी. IC-814 की Hijacking से क़रीब 7 महीने पहले कारगिल युद्ध के दौरान 27 मई 1999 को पाकिस्तान ने भारतीय वायुसेना के Flight Lieutenant, K Nachiketa को अपने कब्ज़े में लिया था.

उस वक्त उनके साथ पाकिस्तान में अमानवीय व्यवहार किया गया. जब उऩ्होंने कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया, तो उन्हें बुरी तरह पीटा गया. जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया था. इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने उनकी सार्वजनिक परेड भी करवाई. और इस परेड का TV पर Telecast किया गया. लेकिन उस वक्त पाकिस्तान के कब्ज़े में रहने के दौरान भी K Nachiketa की हिम्मत ने जवाब नहीं दिया.

और उनके माता-पिता ने भी पूरे धैर्य के साथ अपने बहादुर बेटे के वापस लौटने का इंतज़ार किया. उन्होंने ना तो शोर मचाया, ना धरना प्रदर्शन किया. और ना ही तत्कालीन केंद्र सरकार पर अपने बेटे की जल्द रिहाई के लिए दबाव बनाया. उस वक्त स्थिति ऐसी थी, कि भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाया हुआ था. अंतर्राष्ट्रीय मीडिया K Nachiketa की ख़बर को प्रमुखता से छाप रहा था. और पाकिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र संघ का भी बहुत दबाव था.

जिसके बाद पाकिस्तान को घुटनों पर आना पड़ा. और 3 जून 1999 को K Nachiketa को रिहा करना पड़ा. 8 दिनों तक पाकिस्तान के कब्ज़े में रहने के बाद, जब वो वापस भारत लौटे, उस वक्त भी उनके भीतर का सैनिक झुकने को तैयार नहीं था. जून 1999 में जब वो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने पहुंचे, तो पत्रकारों ने उनसे कुछ प्रश्न पूछे थे. लेकिन उनकी भाषा आम नागरिकों वाली नहीं, बल्कि सैनिकों वाली भाषा थी.

पाकिस्तान के कब्ज़े में रहने के दौरान Flight Lieutenant, K Nachiketa की रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया था. लेकिन आपने ध्यान दिया होगा, 20 साल पहले जब उनसे ये पूछा गया, कि क्या आपको पाकिस्तान में टॉर्चर किया गया, तो उन्होंने हंसते-हंसते उन सभी सवालों को टाल दिया. ये एक सैनिक की सहनशक्ति है.

ठीक इसी तरह भारतीय नौसेना के पूर्व अफसर कुलभूषण जाधव और उनके परिवार को याद कीजिए. पाकिस्तान ने इरान से कुलभूषण जाधव का अपहरण किया. और जासूसी के केस में फंसाकर उन्हें फांसी की सज़ा सुना दी. उन्हें किसी प्रकार की Consular Access नहीं दी गई. उनके Doctored Video का दुष्प्रचार करके, उनके परिवार को कमज़ोर करने की कोशिश की गई. लेकिन, इस मुश्किल परिस्थिति में भी कुलभूषण जाधव का परिवार शांत रहा.

उन्होंने उफ्फ़ तक नहीं की. वो ना तो धरने पर बैठे. और ना ही उन्होंने केंद्र सरकार पर किसी प्रकार का कोई दबाव डाला. क्योंकि, वो जानते थे, कि भारत की सरकार कमांडर जाधव की रिहाई के लिए हर संभव कोशिशें कर रही है. यहां तक कि पूरे मामले को International Court Of Justice में भी ले जाया गया .

जहां भारत को जीत मिली और कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी गई . 2016 से 2019 के बीच कई ऐसे मौके आए, जब कमांडर जाधव के परिवार को कमज़ोर करने की कोशिश की गई. आज दिसम्बर 2017 की उन तस्वीरों को भी याद करने का दिन है. जब कमांडर जाधव की मां और उनकी पत्नी, उनसे मुलाकात करने के लिए पाकिस्तान गई थीं. उस वक्त पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें मानसिक रुप से प्रताड़ित किया था. लेकिन, एक सैनिक का परिवार अपने बेटे की तरह निडर होकर खड़ा रहा.

एक सैनिक देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे देता है, लेकिन एक आम नागरिक अपने प्राणों के लिए देश की आहुति दे देता है. अब विंग कमांडर अभिनंदन की बात करते हैं. जिन्हें क़रीब 60 घंटों तक अपने कब्ज़े में रखने के बाद पाकिस्तान ने 1 मार्च को रिहा कर दिया था. 27 फरवरी 2019 को विंग कमांडर अभिनंदन ने भारत की वायु सीमा में घुसकर हमारे सैन्य ठिकानों पर हमला करने वाले पाकिस्तानी वायुसेना के F-16 लड़ाकू विमान को मार गिराया था. हालांकि, इस कार्रवाई में उनका MiG 21 फाइटर जेट, पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में क्रैश हो गया था. और उन्हें पाकिस्तान की सेना ने अपने कब्ज़े में ले लिया था. उस दौरान घायल होने की स्थिति में भी उन्हें पीटा गया. उन्हें टॉर्चर किया गया. लेकिन, दूसरी तरफ भारत में उनके माता-पिता किसी धरने पर नहीं बैठे. उन्होंने कोई विरोध प्रदर्शन नहीं किया. क्योंकि, उन्हें अपने बेटे की वापसी का भरोसा था.

ये तस्वीरें देखिए. जब इसी साल मार्च में विंग कमांडर अभिनंदन के माता-पिता, चेन्नई से दिल्ली आ रहे थे. उस वक्त जैसे ही विमान के भीतर मौजूद लोगों को इस बात की जानकारी मिली, कि वो विंग कमांडर अभिनंदन के मां-बाप हैं. विमान में मौजूद सभी लोग उनके सत्कार में ज़ोर-ज़ोर से तालियां बजाने लगे. लेकिन, तालियों के इसी शोर के बीच एक विरोधाभास भी छिपा है. क्योंकि, तालियां बजाने वाले यही लोग, अगर एक दिन के लिए भी विंग कमांडर अभिनंदन के मां-बाप की जगह आ जाएं, तो इनके विचार बदल जाएंगे. और इनके लिए परिवार देश से ऊपर हो जाएगा.

20 साल पहले वर्ष 1999 में भी ऐसा ही हुआ था. फर्क सिर्फ इतना था, कि 20 साल पहले सैनिकों के बजाए, आम नागरिक फंस गये थे. और उन्हीं आम नागरिकों के परिवार वालों के चेहरे का रंग मिनटों में बदल गया था. उस समय किसी को राष्ट्र की परवाह नहीं थी . सबको IC-814 में फंसे अपने लोगों की फिक्र थी. तत्कालीन सरकार हर संभव कोशिश कर रही थी. हर रणनीति पर चर्चा हो रही थी. लेकिन लोगों का दबाव इतना ज़्यादा था. और देश का माहौल ऐसा था, कि राष्ट्र कमज़ोर पड़ गया. और हमें तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा. इस मनोदशा को समझने के लिए आपको 20 वर्ष पुरानी कुछ तस्वीरें देखनी चाहिएं और इन बातों को ध्यान से सुनना चाहिए.

20 साल पुरानी इन तस्वीरों को देखकर पता चलता है कि उस वक्त राष्ट्र कमज़ोर हो गया था. और उसी कमज़ोरी का नतीजा, हमारा देश आज तक भुगत रहा है. वर्ष 1999 में इंटेलिजेंस ब्यूरो के तत्कालीन Additional Director और वर्तमान में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल आतंकवादियों से बात करने कांधार गए थे . और उन्होंने विमान में सवार लोगों को रिहा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी . 10 साल पहले अजित डोवल ने Zee News को एक इंटरव्यू दिया था और बताया था कि कैसे उस घटना की वजह से एक राष्ट्र के तौर पर भारत कमज़ोर साबित हुआ और उसके पीछे आम जनता, और मीडिया द्वारा बनाया गया दबाव ही था .

वर्ष 1999 में भारत के Civil Aviation यानी नागरिक उड्डयन मंत्री थे शरद यादव. और IC-814 की Hijacking की घटना को उन्होंने काफी क़रीब से देखा था. 20 साल पहले भारत सरकार ने पूरी कोशिश की थी, कि सभी राजनीतिक दलों को एक साथ लेकर चला जाए. और उस मुश्किल परिस्थिति का मिलकर सामना किया जाए. लेकिन, उस वक्त देश में जिस प्रकार का माहौल था, उसकी यादें आज भी शरद यादव के ज़ेहन में ताज़ा हैं. आगे बढ़ने से पहले आपको शरद यादव का 20 साल पुराना बयान और 9 महीने पुराना बयान.. ध्यान से सुनना चाहिए.

उस वक्त सरकार पर दबाव डालने का काम सिर्फ जनता और मीडिया ने ही नहीं किया था..बल्कि उस वक्त की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी लगातार सरकार पर दबाव बना रही थी . ऊपरी तौर पर तो कांग्रेस और दूसरे विरोध दल कह रहे थे कि वो सरकार के साथ हैं...लेकिन असल में ऐसा नहीं था . Communist Party of India यानी CPI की बड़ी नेता बृंदा करात उस वक्त अक्सर बंधकों के परिवार वालों से मिलने Seven Race Course जाया करती थी . Seven Race Course Road पर देश के प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है.

और तब बंधकों के परिवार प्रधानमंत्री के आवास के अंदर ही कैंपेन कर रहे थे . पत्रकार कंचन गुप्ता के मुताबिक बृंदा करात अक्सर बंधकों के रिश्तेदारों से मिलने जाया करती थीं . और धीरे धीरे वहां ऐसा माहौल बनने लगा कि सरकार को किसी भी कीमत पर बंधकों को रिहा कराना चाहिए.

अफसोस की बात ये है, कि उस वक्त देश के लोगों की भावनाओं को भड़काने वालों में अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता भी शामिल थे . उस वक्त कांग्रेस के नेता अक्सर ये दावा करते थे कि वो सरकार के हर फैसले के साथ हैं..लेकिन बंधकों की रिहाई के कुछ वक्त बाद ही..कांग्रेस ने इस पर राजनीतिक बयानबाजी करनी शुरु कर दी थी. 20 साल पहले इस मामले पर कांग्रेस पार्टी का रुख क्या था ?

इतना नहीं वर्ष 2000 में CPI के ही एक और बड़े नेता हर किशन सिंह सुरजीत ने भी सरकार पर सच छिपाने का आरोप लगाया था . पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने भी अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार पर ये आरोप लगाया था कि सरकार ने उन्हें ये तो बता दिया कि जसवंत सिंह कांधार जा रहे हैं..लेकिन आतंकवादियों के साथ हुई डील के बारे में नहीं बताया गया था .

इसी वर्ष कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी देश के मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल को कांधार High Jacking मामले का Deal Maker कहा था . कुल मिलाकर हमारे देश में आम लोगों के लिए उनका परिवार सर्वोपरि है तो राजनेताओं के लिए सत्ता सुख से बड़ा कोई सुख नहीं है. और जो समाज परिवार और सत्ता के सुख के आगे राष्ट्रहित को नहीं रख पाता...उस समाज में स्वंतत्रता को बड़ी आसानी से High Jack किया जा सकता है..और आज हमारे देश में यही हो रहा है .

IC-814 की High-Jacking के समय लाल कृष्ण आडवाणी भारत के गृहमंत्री थे. अपनी जीवनी 'मेरा देश मेरा जीवन' में लाल कृष्ण आडवाणी ने IC 814 के हाईजैक की पूरी कहानी बताई है .

इस किताब में उन्होंने बताया है कि तब सरकार की मुश्किलें क्या थीं ? लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखा है कि इस मामले में अपहरण-कर्ताओं पर कोई दबाव नहीं था और वो जब तक चाहते, बंधकों को अपने कब्जे में रख सकते थे . क्योंकि तीन बातें उनके पक्ष में थीं—पहली बात ये कि, आतंकवादी एक अनुकूल क्षेत्र में थे . तालिबान-शासित अफगानिस्तान के साथ, भारत के कोई राजनयिक संबंध नहीं थे. और तब वहां की सत्ता और प्रशासन ने अपहरणकर्ताओं पर दबाव डालने का कोई संकेत नहीं दिया.”

“दूसरी बात ये थी कि कोई भी कार्रवाई करने के लिए भारत के विमानों को पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र से होकर गुजरना पड़ता, जिसकी इजाजत निश्चित रूप से नहीं मिलती. आडवाणी जी ने लिखा है कि जब उनके पास ये विश्वसनीय सूचना भी थी कि आतंकवादी, विमान को विस्फोटक से उड़ा देने के लिए तैयार थे .

और तीसरी और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये थी कि भारत सरकार पर, बंधकों को ‘कैसे भी’ छुड़ा लाने के लिए दबाव डाला जा रहा था. आडवाणी जी ने लिखा है कि जब इस संकट ने तीसरे दिन में प्रवेश किया तो कुछ बंधकों के रिश्तेदारों द्वारा प्रधानमंत्री आवास के सामने आवेशपूर्ण प्रदर्शन किए गए. उन्होंने ये भी लिखा कि मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि ये दबाव आंशिक रूप से ही सही, बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों के उकसाने का परिणाम था. कुछ टी.वी. चैनलों ने भी दिन-रात प्रसारण करके इन प्रदर्शनों को प्रमुखता से दिखाया .

जिससे लोगों में ये धारणा बनती थी, जैसे कि इतने भारतीयों का जीवन खतरे में होने पर भी सरकार ‘कुछ नहीं’ कर रही थी. ये सब देखकर मैं हैरान हुआ कि ‘भारत के राज्य-तंत्र के बारे में कहा जाता है कि वो एक नरम तंत्र है . परंतु क्या भारतीय समाज भी एक नरम समाज बन गया है ?’ तब ये देखकर कुछ सुकून मिला कि TV पर दिखाए जा रहे इन प्रदर्शनों ने कारगिल के शहीदों के रिश्तेदारों को बाध्य किया कि वो बंधकों के रिश्तेदारों से धैर्य रखने के लिए कहें.”

“कांधार में बातचीत के लिए गई हमारी टीम ने समझौते की चर्चा मज़बूती से की . जिसके कारण वो जेल में बंद 36 आतंकवादियों को रिहा करने की माँग को कम करके केवल तीन तक लाने में सफल रहे. ”  उस वक्त विदेश मंत्री रहे जसवंत सिंह ने भी अपनी किताब 'A Call to Honour' में इस घटना का जिक्र किया है .

मुझे आज भी उस घटना को याद करते हुए शर्म आती है कि कैसे सरकार को शर्मिंदा करने के लिए उस वक्त राजनेताओं के एक गैंग ने विरोध प्रदर्शनों को प्रयोजित किया था . कार्यकर्ताओं को कहकर सड़कें जाम करा दी गईं . Press Briefings के दौरान बार बार हंगामा किया गया , और सड़कों पर लेट-लेटकर देश में डर का माहौल बनाने की कोशिश की गई . वो आगे कहते हैं कि मुझे नहीं पता कि ये लोग इतने बेहूदे तरीके से विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे थे..लेकिन इससे इन लोगों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच भारत को बदनाम करने में सफलता ज़रूर मिल गई थी.

जब IC 814 का अपहरण हुआ था. तब बंधकों के परिवार वाले बेचैन हो गए थे और सरकार पर तरह तरह के आरोप लगा रहे थे. सबकी शिकायत थी कि सरकार फैसला नहीं ले पा रही है . लेकिन ये लोग किस फैसले की बात कर रहे थे ? सब एक ही फैसला होते हुए देखना चाहते थे ..और वो था किसी भी कीमत पर घर वालों की वापसी...फिर भले ही देश की सुरक्षा से समझौता करना पड़े, आतंकवादियों को रिहा करना पड़े, कश्मीर छोड़ना पड़े और चाहे पाकिस्तान के आगे घुटने ही क्यों ना टेकने पड़े .

सरकार के पास दूसरा विकल्प क्या था ? अगर सरकार विमान में Commandos भेजने का फैसला कर लेती..और आतंकवादी विमान को उड़ा देते तो क्या इन लोगों को ये मंजूर होता ? बिल्कुल नहीं...क्योंकि हमारे देश के लोगों की भावनाएं अब भी सबसे पहले खुद से जुड़ी होती है..फिर अपने परिवार से . कई लोग राष्ट्रवाद की भावनाओं का इस्तेमाल सिर्फ अपनी राजनीति चमकाने के लिए करते हैं...शांति काल में राष्ट्रवाद की ऐसी नकली भावनाएं कुछ लोगों को रोज़गार देती है..तो युद्ध काल में कुछ लोगों को नकली राष्ट्रवाद के सहारे उत्तेजना का एहसास होता है .

वैज्ञानिकों द्वारा की गई Rsearchs के मुताबिक युद्ध काल में लोगों के शरीर में Adrenaline Harmon का रिसाव तेज़ हो जाता है . और लोग उत्साह से भर जाते हैं . लेकिन ये उत्साह कई बार नकली होता है..क्योंकि जैसे ही लोगों के सामने परिवार बचाने या देश बचाने का विकल्प आता है..लोग परिवार को चुन लेते हैं . लेकिन इजरायल जैसे देशों में ऐसा नहीं होता...इसलिए आज आपको इजरायल के उदाहरण से कुछ बातें समझनी चाहिए .

वर्ष 1976 में फिलीस्तीन के आतंकवादियों ने एक यात्री विमान का अपहरण करके इजरायल के 98 लोगों को अफ्रीका के एक देश Uganda में बंधक बना लिया था. इन बंधकों की रिहाई के लिए Israel के सामने 53 आतंकवादियों को रिहा करने की शर्त रखी गई थी. ये आतंकवादी Israel और दूसरे देशों की जेलों में बंद थे. लेकिन Israel ने इस मांग को मानने के बदले अपने Commandos को Uganda भेज दिया. और सिर्फ 90 मिनट के ऑपरेशन में लगभग सभी बंधकों को रिहा किया गया था. हालांकि इसमें Israel के 1 Commando और 3 बंधकों की जान चली गई थी.

लेकिन इसे दुनिया के सबसे शानदार Anti Terror मिशन में एक माना जाता है. इस ऑपरेशन की तैयारी में करीब 1 हफ्ते का समय लगा था. लेकिन इस दौरान बंधकों के परिजनों ने कभी Israel में धरना प्रदर्शन नहीं किया था . इसी तरह वर्ष 1972 में Palestine के आतंकवादियों ने एक विमान का अपहरण करके Israel के Tel Aviv में Ben Gurion इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उतार दिया था.

21 घंटे के बाद Israel के Commandos ने सभी बंधकों को सुरक्षित बचा लिया था. इस ऑपेरशन में Israel के वर्तमान प्रधानमंत्री Benjamin Netanyahu भी शामिल थे. जो उस समय Israel की Special Force का हिस्सा थे. यानी आतंकवाद के ऐसे ही खतरे का सामना इजरायल भी करता रहा है... लेकिन वहां सरकार और देश की जनता आतंकवादियों की मांगों के आगे..आसानी से नहीं झुकती .

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