Air pollution: एयर पॉल्यूशन का हॉटस्पॉट बन रहे देश के छोटे शहर, ट्विन टावर विध्वंस से मिलता है ये सबक
Twin towers demolition: प्रदूषण को थामने के लिए ट्विन टावर विध्वंस के दौरान की तैयारियों से हम सीख क्यों नहीं लेते. आज हम आपको गर्मियों के प्रदूषण के ताज़ा आंकड़े भी बताएंगे और ये भी बताएंगे कि विध्वंस के Twin Tower Episode से हम पर्यावरण के लिहाज़ से क्या सीख सकते हैं.
Air pollution in small cities: सोमवार यानी 29 अगस्त 2022 को दिल्ली का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स 122 है, जबकि 28 अगस्त को नोएडा में ट्विन टावर ढहाए जाने के 5 घंटे बाद ही एयर क्वालिटी इंडेक्स 100 से नीचे आ गया था.दिल्ल-एनसीआर का औसत AQI 28 अगस्त को भी 150 के आसपास ही बना रहा. इस एक लाइन के छोटे से डाटा में बहुत बड़ा सबक छिपा है. हमने टनों के धूल के गुबार से निपटने के लिए की जो तैयारी की थी, वही तैयारी हमें हर रोज़ रखने की ज़रूरत है, क्योंकि दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, अब देश के छोटे-छोटे शहरों में गर्मियों के मौसम में भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक हो चुका है.
छोटे शहरों में बढ़ता प्रदूषण
आमतौर पर प्रदूषण की बात सर्दियों में की जाती है, जब धुंध और स्म़ॉग दिखती है. लेकिन आप शायद नहीं जानते कि भारत के छोटे बड़े हर शहर में प्रदूषण लगभग पूरे साल हमारी सांसे घोंट रहा है. सेंटर फॉर साइंस की ताजा रिसर्च के मुताबिक अब प्रदूषण के हॉट स्पॉट केवल दिल्ली और नोएडा नहीं हैं, राजस्थान का भिवाड़ी, हरियाणा का रोहतक और झज्जर तक दिल्ली जैसे ही खतरनाक वायु प्रदूषण की चपेट में हैं. तो फिर, ट्विन टावर विध्वंस के दौरान की तैयारियों से हम सीख क्यों नहीं लेते. आज हम आपको गर्मियों के प्रदूषण के ताज़ा आंकड़े भी बताएंगे और ये भी बताएंगे कि विध्वंस के Twin Tower Episode से हम पर्यावरण के लिहाज़ से क्या सीख सकते हैं.
रविवार दोपहर ढाई बजे 9 सेकेंड में ट्विन टावर के ढह जाने के बाद इतनी ही देर तक धूल का एक गुब्बारा नज़र आया. फिर सब नीचे जमा हो गया लेकिन लोगों की सांसों में घुलने के लिए हवा में ठहरा नहीं क्योंकि बिल्डिंग गिरेंगी और धूल उड़ेगी और इसका अनुमान लगाते हुए वॉटर स्प्रिंक्लर लगे थे, एंटी स्मॉग गन तैनात थी, आसपास की इमारतें कपड़े से ढकी थीं, वक्त रहते सब एक्शन में आ गए थे. नोएडा अथॉरिटी ने शाम को एयर क्वालिटी का डाटा जारी किया जो 100 के नीचे था जबकि दिल्ली एनसीआर में 100 के नीचे एयर क्वालिटी होना तेज बारिश के दिन ही नसीब होता है.
गर्मियों में भी प्रदूषण बना चुनौती
CSE के ताजा डाटा के मुताबिक इस वर्ष भारत के कई शहरों में गर्मियों में भी वायु प्रदूषण युद्धस्तर पर रहा है जो आम तौर पर सर्दियों में खराब स्तर पर होता है. रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली गाजियाबाद और नोएडा ही नहीं, उत्तर भारत के छोटे शहरों में भी प्रदूषण से लोगों का दम घुट रहा है. इस रिपोर्ट के लिहाज से भारत का सबसे प्रदूषित शहर अब राजस्थान का भिवाड़ी है जहां गर्मियों के दौरान प्रदूषण का औसत 134 रहा इसके बाद हरियाणा के मानेसर की बारी आती है जो भारत का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है यहां गर्मियों के प्रदूषण का औसत 119 रहा. तीसरे नंबर पर मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला का है जहां प्रदूषण का स्तर 110 रहा इसके बाद हरियाणा के रोहतक और उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर का नंबर आता है.
भारत के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 12 शहर दिल्ली एनसीआर के हैं. गर्मियों में भारत के सबसे कम प्रदूषित शहरों की बात की जाए तो मिजोरम का एजवाल और तमिलनाडु का गुम्मीडिपुंडी सबसे कम प्रदूषित है. हालांकि उत्तर भारत के कुछ शहर ऐसे भी हैं जहां पिछली गर्मियों के मुकाबले इस बार प्रदूषण में कमी दर्ज हुई है. पहले नंबर पर उत्तर प्रदेश का वाराणसी है जहां प्रदूषण के स्तर में 59% की कमी आई. इसके अलावा बल्लभगढ़, जालंधर, पाली, आगरा और श्रीनगर में प्रदूषण का स्तर कम हुआ है.
प्रदूषण के यह आंकड़े 1 मार्च से 31 मई के बीच के हैं.इस दौरान के सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का पीएम 2.5 डाटा को जमा कर उसका विश्लेषण किया गया है. सीपीसीबी के 356 स्टेशन से यह डाटा लिया गया. यह स्टेशन भारत के 26 राज्यों के 174 शहरों में मौजूद हैं.प्रदूषण के मामले में पूरे उत्तर भारत का हाल सबसे खराब है और दिल्ली एनसीआर गर्मियों के दौरान प्रदूषण का हॉटस्पॉट बना है. वजह है अंधाधुंध निर्माण, उद्योग और गाड़ियां, दिल्ली एनसीआर में कन्सट्रक्शन तो छोटे शहरों में इंडस्ट्री से हवा का हाल बुरा है.
कहां रहा पॉल्यूशन का पीक?
गर्मियों के मौसम में भी उत्तर भारत में पीएम 2.5 का स्तर 71 माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर रहा है. इसके बाद पूर्वी भारत का नंबर आता है जहां पीएम 2.5 का स्तर 69 ग्राम माइक्रोग्राम पर क्यूबिक मीटर रहा है. पश्चिमी भारत में यह स्तर 54 रहा है, मध्य भारत में 46 जबकि उत्तर पूर्वी भारत में 35 और दक्षिण के राज्यों में यह स्तर 31 रहा है. अगर बात इस बारे में करें कि 1 दिन में किस शहर में या किस इलाके में प्रदूषण पीक पर पहुंचता है तो उसमें बाजी बिहार ने मारी है. बिहार में गर्मियों में प्रदूषण का पीक यानी चरम 168 रहा है. उत्तर भारत में प्रदूषण का चरम स्तर 142 था पश्चिमी भारत में 106, मध्य भारत में 89, उत्तर पूर्व में 81 और दक्षिण भारत में यह स्तर 65 रहा है.
उत्तर भारत में रोहतक में भी प्रदूषण का पीक काफी खराब रहा और यह 258 तक पहुंचा. इन आंकड़ों से यह साफ होता है कि अब छोटे शहरों में भी प्रदूषण के हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं. पिछले वर्ष की गर्मियों के मुकाबले इस वर्ष गर्मियों में हर रीजन में प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है. उत्तर भारत में पिछले वर्ष के मुकाबले सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखी गई जो 23% की है. उत्तर भारत में एनसीआर रीजन में ही सबसे ज्यादा प्रदूषण बड़ा पिछले वर्ष के मुकाबले दिल्ली एनसीआर रीजन के लोगों ने 25.8% ज्यादा प्रदूषण झेला. मध्य भारत में 15% की बढ़ोतरी दर्ज हुई, पश्चिमी भारत में 4 फीसदी, पूर्वी भारत में 1.8%, दक्षिण के राज्यों में प्रदूषण नहीं बढ़ा और नॉर्थ ईस्ट के रीजन में पिछले वर्ष के मुकाबले प्रदूषण के स्तर में कमी दर्ज हुई.
सांस लेने लायक कैसे होगी हवा?
सीएससी की रिसर्चर अनुमिता रॉय चौधरी के मुताबिक गर्मियों में प्रदूषण के बढ़ने की वजह गाड़ियां, इंडस्ट्री पावर प्लांट, वेस्ट बर्नींग और धूल का ज्यादा उड़ना है. इन समस्याओं से निजात पाने के लिए बड़े स्तर पर जमीन पर काम करना होगा, जंगलों को कटने से बचाना होगा. शहरों में तापमान कम करने के तरीकों पर काम करना होगा और फसलों में और जंगलों में लगने वाली आग पर काबू पाना होगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के मुताबिक एयर क्वालिटी 50 से नीचे रहे तभी हवा को साफ मानना चाहिए. मिलीजुली कोशिशों से नोएडा ने एक दिन जो सफलता हासिल की है, उसे हर रोज़ पाया जा सकता है और हवा को सांस लेने लायक बनाया जा सकता है.हालांकि हर रोज़ पानी छिड़कने जैसे आपातकालीन उपाय की जगह दूर की सोच रखते हुए काम करने की ज़रूरत है.
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