Akhilesh Yadav will tie up with Chandrashekhar: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है. यादवलैंड और जाटलैंड के वोटों को बहुत हद तक अपने पाले में करने के बाद अब उनकी नजर दलित वोट बैंक पर है. विधानसभा चुनावों से पहले ही उन्होंने जयंत चौधरी के साथ गठबंधन करके पश्चिमी यूपी में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने की कोशिश की थी. यूपी विधानसभा उपचुनाव में खतौली सीट पर सपा-आरएलडी गठबंधन को जीत हासिल हुई थी.


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इस जीत में आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर ने भी प्रचार किया था. इसके बाद जयंत चौधरी की पार्टी के मदन भैया को जीत मिली थी. इस जीत के बाद सपा और आरएलडी तेजी से संगठन विस्तार में लगे हैं. अखिलेश यादव को पश्चिमी यूपी में अगर दलित नेता का साथ मिल जाए तो वो इस क्षेत्र में 2024 के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं. इसी वजह से, इस बात की संभावना जताई जा रही है कि वो दलित नेता और आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर को साथ लाने की तैयारी में हैं. माना जा रहा है कि वो लोकसभा चुनावों में चंद्रशेखर के साथ गठबंधन में चुनावी मैदान में उतर सकते हैं.


नए दांव रहा रहे अखिलेश


अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह नए-नए राजनीतिक दांव आजमाने के लिए मशहूर अखिलेश यादव 2024 के आम चुनाव से पहले फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं. अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती पश्चिमी यूपी है जहां पिछले चुनाव में 27 लोकसभा सीटों में से सपा को सिर्फ तीन पर ही जीत मिल सकी थी. हालांकि, उस समय का सियासी गठजोड़ अब टूट चुका है और मायावती के साथ गठबंधन से अखिलेश अलग हो चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने एक साथ चुनाव लड़ा था. इसमें यूपी की 80 सीटों में से सपा को 5 और बसपा को 10 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हालांकि, इसके बाद मायावती अखिलेश से अलग हो गई थीं.


अगर यूपी में लोकसभा चुनावों में ज्यादा सीटों पर कब्जा करना है तो अखिलेश यादव को यादव वोट और जाट वोट के साथ-साथ दलित वोटों की भी जरूरत होगी. इसके लिए उन्हें एक बड़े दलित चेहरे की आवश्यकता है और इस जरूरत को चंद्रशेखर आजाद पूरा कर सकते हैं. यही कारण है कि दोनों के गठबंधन में चुनाव लड़ने के कयास कफी ज्यादा लगाए जा रहे हैं.


यूपी में आखिर दलित वोट क्यों है जरूरी?
जातिगत राजनीति की बात करें तो उत्तर प्रदेश में ओबीसी के बाद दलित आबादी का राजनीति में सबसे ज्यादा दबदबा रहा है. यहां अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के वोटर्स की संख्या सबसे ज्यादा है. ओबीसी में यादव समेत 25 जातियां हैं, जिनमें अधिकतर को साधने में अखिलेश यादव सफल हो सकते हैं. वहीं, सबसे ज्यादा संख्या के मामले में दूसरे नंबर पर दलित वोटर्स का स्थान है. तीसरे नंबर पर सवर्ण और मुस्लिम समाज के वोटर आते हैं. प्रतिशत में देखें तो ओबीसी का वोट बैंक 41 फीसदी है, वहीं दलित वोट बैंक 21 फीसदी और सवर्ण व मुस्लिम वोट बैंक 19-19 फीसदी है. यही कारण है कि अखिलेश अब दलित वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं.


2022 के विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने बड़ी संख्या में बसपा से आए दलित नेताओं को अपने पाले करने में सफलता पाई थी. उन्होंने इंद्रजीत सरोज, लालजी वर्मा, मिठाई लाल भारती और रामअचल राजभर जैसे दलित नेताओं को सपा में शामिल किया था. इनके अलावा भी कई बड़े दलित नेताओं ने सपा का दामन थामा. 


चंद्रशेखर आजाद की जरूरत क्यों?
आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद इस समय यूपी में दलित समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में देखे जा रहे हैं. सहारनपुर हिंसा के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई. वो कई आंदलनों में एक्टिव रहे हैं और लगातार दलितों के मुद्दों को मुखर होकर उठाते रहे हैं. यूपी में मायावती के लिए उन्हें सबसे बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है. मायावती की पार्टी पिछले कुछ चुनावों में काफी कमजोर रही है और चुनाव दर चुनाव उनके वोट कम हुए हैं. ऐसे में चंद्रशेखर की भूमिका और भी अहम हो जाती है. कहा जा रहा है कि 2024 के आम चुनाव में दलित वोट चंद्रशेखर के पाले में शिफ्ट हो सकता है.


चंद्रशेखर कितने एक्टिव हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टाइम मैगजीन ने 100 इमरजिंग लीडर्स में उन्हें शामिल किया था. चंद्रशेखर की पार्टी पश्चिमी यूपी में काफी एक्टिव है और ये अखिलेश यादव के लिए संजीवनी का काम कर सकती है. खुद चंद्रशेखर भी वेस्ट यूपी में हमेशा से एक्टिव रहे हैं. अगर वो अखिलेश के साथ मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़ते हैं तो पश्चिमी यूपी में यादव, जाट और दलित वोट को साधकर 27 लोकसभा सीटों पर ये गठबंधन कमाल कर सकता है. पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभा सीटों में से करीब 20 सीटें ऐसी हैं जहां दलित, जाट और मुस्लमान वोटर्स का दबदबा है. यही कारण है कि अखिलेश यादव और जयंत चौधरी को यहां चंद्रशेखर जैसे बड़े दलित चेहरे की जरूरत है.


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