इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, कर्मचारी दूसरी शादी करता है..तो नहीं जाएगी उसकी नौकरी
Second Marriage: हाईकोर्ट ने यह फैसला एक मामले की सुनवाई करते हुए सुनाया है जिसमें एक शख्स ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. एक समय पर दो विवाह के आरोप में उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. इसके बाद कोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से अपनी दलील पेश की गई.
Allahabad High Court: इलाहबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह आदेश दिया है कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी इस आधार पर नहीं होगी कि पहली पत्नी के रहते हुए उसने दूसरी शादी कर ली है. असल में बहु-विवाह के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अगर कोई ऐसा मामला है जिसमें कोई सरकारी कर्मचारी पहली शादी के रिश्ते में रहते हुए कोई दूसरी शादी करता है तो उसे नौकरी से नहीं हटाया जा सकता. यह फैसला तब सुनाया गया है जब एक याचिका पर सुनवाई हो रही थी. इस याचिकाकर्ता द्वारा दलील पेश की गई थी.
दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला उत्तर प्रदेश के रहने वाले प्रभात भटनागर नाम के एक शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. यह शख्स बरेली जिला विकास अधिकारी के ऑफिस में कर्मचारी थे. यहां उनकी नियुक्ति अप्रैल 1999 में हुई थी. लेकिन एक समय पर दो विवाह के आरोप में उन्हें जुलाई 2005 नौकरी से निकाल दिया गया. जानकारी के मुताबिक भटनागर की पहली शादी 24 नवंबर 1999 को हुई थी. इसके बाद उन पर एक महिला सहकर्मी से दूसरी शादी का आरोप लगा.
बताया जा रहा है कि यह आरोप भटनागर की पहली पत्नी ने लगाए थे और सबूत के तौर पर उसने जमीन के वे पेपर दिए थे जिसमें भटनागर ने महिला सहकर्मी को अपनी पत्नी बताया था. इसके बाद विभाग के तरफ से उनको नोटिस दी गई थी जिसके जवाब पर असंतुष्टि जताते हुए भटनागर के प्रमोशन पर रोक लगा दी गई साथ ही जुलाई 2005 में नौकरी से निकाल भी दिया गया था.
इसके बाद उन्होंने मामले को कोर्ट में चुनौती दे डाली थी. कोर्ट में याचिकाकर्ता की तरफ से दलील दी गई कि सेवा से बर्खास्त करने से पहले कोई जांच नहीं की गई. अब इसी मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला पलटते हुए यह आदेश दिया कि कर्मचारी ने भले ही दूसरी शादी कर ली हो लेकिन किसी को नौकरी से नहीं हटाया जा सकता है. कोर्ट ने नाराजगी भी जताई क्योंकि उस महिला सहकर्मी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई जिससे दूसरी शादी का उस पर आरोप लगा था. बताया गया कि सुनवाई के दौरान अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार की नियमावली का भी हवाला दिया जिसमें ऐसे कर्मचारियों के लिए मामूली सजा का ही प्रावधान है.
इस पूरे मामले की सुनवाई जस्टिस क्षितिज शैलेन्द्र की अदालत में हुई है. कोर्ट ने कहा कि तथ्यात्मक और कानूनी प्रस्ताव पर विचार करते हुए, जैसा कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में बताया गया है और इस न्यायालय या प्राधिकारियों के समक्ष कोई अन्य सामग्री नहीं है, पहली शादी के अस्तित्व के दौरान दूसरी शादी करने का अनुमान लगाकर याचिकाकर्ता को दंडित करना तथ्य और कानून के अनुरूप नहीं है. यहां तक कि जब सरकारी कर्मचारी की ओर से उपरोक्त कृत्य स्थापित हो जाता है, तब भी उसे केवल मामूली दंड ही दिया जा सकता है.