DNA on Amarnath Cave History: इतिहास वही लोग लिखते हैं, जो शक्तिशाली होते हैं. इतिहास असल में Rulers यानी शासकों द्वारा लिखा जाता है, जो अपनी ताकत से एक बड़ी आबादी पर राज करते हैं. वर्ष 1526 से 1857 के बीच जब भारत पर मुगलों का राज था, उस समय ये इतिहास मुगलों के दरबारी इतिहासकारों द्वारा लिखा गया. इसमें मुगल शासकों को भारत के नायक के तौर पर पेश किया गया.


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अकबर को इतिहास में महान बताया गया


अकबर को Akbar The Great कहा गया. मुगलों ने हिन्दुओं पर जो अत्याचार किए और जो सैकड़ों मन्दिर तोड़ कर मस्जिदें बनाई गईं, उनकी वास्तविकता को भी मुगलों ने अपने हिसाब से इतिहास में लिखा. इसी तरह मुगलों के बाद जब अंग्रेज़ भारत आए, तब उन्होंने भी भारत के इतिहास को अपने हिसाब से बदलने की कोशिश की. अंग्रेज़ों ने भारत का जो इतिहास लिखा, उसमें भारत की सांस्कृतिक पहचान, उसके मौलिक व्यवहार और उसकी वास्तविकता को हमेशा लोगों से छिपाया गया. 



15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तब भी हमारे देश में इतिहास की रुपरेखा नहीं बदली. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आजादी के बाद भारत पर ऐसे नेताओं ने शासन किया, जो अंग्रेजों की बी-टीम का हिस्सा थे. यानी हमारे देश का इतिहास मुगल शासकों और ब्रिटिश राज के पन्नों से भरा पड़ा है. स्कूलों में बच्चों को औरंगज़ेब और बाबर के बारे में पढ़ाया जाता है और इतिहास की एक ऐसी रुपरेखा खींची जाती है, जिसमें सच कहीं पीछे छूट जाता है. 


वामपंथी इतिहासकारों ने बदल दी हिस्ट्री


आज भी हमारे देश के लोगों को अमरनाथ गुफा का वही सच पता है, जिसका दशकों तक हमारे देश के इतिहासकारों ने प्रचार प्रसार किया. सरल शब्दों में कहें तो अमरनाथ गुफा के सच के साथ हमारे देश में ऐसी सोशल इंजीनियरिंग हुई, जिसके तहत ये बताया गया कि हिन्दू श्रद्धालुओं को उस मुस्लिम गडरिए का अहसान मानना चाहिए, जिसने अमरनाथ गुफा की खोज की थी. जबकि सच ये है कि अमरनाथ गुफा की वास्तविकता, इसका इतिहास, इसका वैभव और इसकी पहचान सदियों पुरानी है.


हिंदुओं के इतिहास के साथ किया गया कपट!


भारत में इतिहास पर शोध करने वाली सबसे बड़ी संस्था भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद है. इसके निदेशक डॉ ओम जी उपाध्याय के मुताबिक पांचवी शताब्दी से लेकर वर्ष 1842 तक के सभी ऐतिहासिक ग्रंथों में अमरनाथ यात्रा और बाबा बर्फानी के भव्य स्वरूप का वर्णन मिलता है. हालांकि वर्ष 1900 के बाद एकदम से भारत की पीढ़ी को बताया जाता है कि बाबा बर्फानी की खोज तो एक मुस्लिम गड़रिए ने की थी. यह एक फर्जी नैरेटिव था, जिसे वामपंथी इतिहासकारों ने और अंग्रेजों ने फैलाया. इसकी वजह ये थी कि वे नहीं चाहते थे कि भारत के हिंदुओं को कभी उनकी गौरवमयी परम्परा का पता लग सके. वे यह भी जताना चाहते थे कि हिंदू धर्म के तीर्थ स्थल की खोज भी मुसलमानों और अंग्रेजों ने की है.


जानिए अमरनाथ का असली महत्व?


जेएनयू में इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ हीरामन तिवारी भी इस बात की पुष्टि करते हैं. उनके मुताबिक प्राचीन ग्रंथों में बताया जाता है कि भगवान शिव अपने अमर होने की वजह अमरनाथ गुफा में जाकर ही देवी पार्वती को बताते हैं. यह बात सैकड़ों वर्षो से हिन्दू मान्यताओं में मौजूद है. इसके बावजूद कश्मीर के मुस्लिम बूटा मलिक को फर्जी तरीके से गुफा खोजने का क्रेडिट देकर भारत के लोगों के दिमाग में भर दिया जाता है कि हिन्दुओं को बूटा मलिक का अहसान मानना चाहिए जिसने बाबा बर्फानी को खोजा था.


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