महाराष्ट्र दंगों का असली गुनहगार कौन? पुलिस ने गृह मंत्रालय को सौंपी रिपोर्ट में किया खुलासा
पुलिस द्वारा गृह मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में कुछ मुस्लिम संगठनों और राजनैतिक पार्टियों से जुड़े लोगों की भूमिका को संदेहास्पद बताया गया है. अब गृह मंत्रालय रिपोर्ट पर कानूनी सलाह लेने के बाद जल्दी ही पुलिस को अगली कार्रवाई को लेकर निर्देश जारी कर सकता है.
मुंबई: महाराष्ट्र पुलिस ने 12 और 13 नवंबर को महाराष्ट्र के मालेगांव, अमरावती, नांदेड़ और दूसरे इलाकों में हुई हिंसा को लेकर अपनी जांच रिपोर्ट गृह मंत्रालय को सौंप दी है. ज़ी मीडिया को विश्वसनीय सूत्रों से इस रिपोर्ट में शामिल अहम जानकारियां पता चली हैं. सूत्रों का दावा है कि इस रिपोर्ट के मुताबिक दंगों की स्क्रिप्ट काफी पहले ही लिखी गई थी. महाराष्ट्र पुलिस की अब तक की जांच में सोशल मीडिया पर अपलोड की गई 60-70 ऐसी पोस्ट्स मिली हैं जिनकी दंगों को भड़काने में अहम भूमिका हो सकती है.
सूत्रों के मुताबिक सोशल मीडिया पर एक फेक पोस्ट ये भी थी कि त्रिपुरा में 7 मस्जिदों को जमीदोंज कर दिया गया है. इसके बाद कई पोस्ट्स को हजारों की संख्या में वॉट्सऐप पर फॉरवर्ड किया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इन तथाकथित सुनियोजित दंगों का जाने अंजाने में हिस्सा बन जाएं. गृह मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट में ऐसी 36 सोशल मीडिया पोस्ट्स का जिक्र है.
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रिपोर्ट के मुताबिक ये थी दंगों की टाइमलाइन
- 29 अक्टूबर को PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के सदस्य अमरावती में कलेक्टर ऑफिस में जाकर त्रिपुरा की कथित घटना पर अपना विरोध दर्ज करवाते हैं.
- 1 नवंबर को जय संविधान संघठन भी कलेक्टर के पास अपना विरोध दर्ज करवाते हैं.
- 6 नवंबर को सोशल मीडिया के जरिए सरताज नाम के एक शख्स का एक ऑडियो मैसेज वायरल किया जाता है. इस ऑडियो के जरिए अफवाह फैलते हुए कथित भड़काऊ तरीके से ये कहा गया कि त्रिपुरा में कई मस्जिदों को जमीदोज कर दिया गया है और यही वक्त है एक साथ आने का.
- 7 से 11 नवंबर तक रजा अकादमी ने त्रिपुरा में हुई घटनाओं के लिए राज्यव्यापी बंद का आह्वान किया. और साथ ही सोशल मीडिया पर कई मैसेज फारवर्ड किए गए.
- 12 नवंबर को मालेगांव, अमरावती, नांदेड़ और कुछ इलाकों में बंद की शुरुवात की गई और जिन लोगों ने दुकानें बंद नहीं कीं उनके साथ हिंसा की गई.
- 12 नवंबर की शाम को कुछ राजनैतिक कार्यकर्ताओं की ओर से दिन भर हुई हिंसा की घटनाओं के विडियोज को सोशल मीडिया पर फैलाया गया और इसके विरोध में अगले दिन एक और बंद का आयोजन किया गया.
पुलिस ने अपनी इस रिपोर्ट में जिन सोशल मीडिया पोस्ट का जिक्र किया है उनमें से कुछ पोस्ट ज़ी मीडिया के हाथ लगे हैं. 4 नवंबर की एक पोस्ट में त्रिपुरा की कई मस्जिदों को तोड़े जाने की फेक न्यूज दिखाई गई. इसी तरह 29 अक्टूबर की भी एक पोस्ट एक धर्म संप्रदाय में दूसरे धर्म की वजह से डर के माहौल का जिक्र कर रही है.
पुलिस की रिपोर्ट में ऐसे कई और पोस्ट हैं जिनमें दोनों धर्म संप्रदायों को एक दूसरे के खिलाफ भड़काया गया. खासतौर पर 12 नवंबर और 13 नवंबर को, इस तरह की बहुत सी पोस्ट्स को जानबूझकर कर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया ताकि लोगो में गुस्सा भड़काया जा सके.